भौतिक धन संपत्ति सुविधाएं पद प्रतिष्ठा प्रसिद्धि आदि चाहे कितनी भी हों, यदि आप मन से दुखी हैं, तो आप का जीवन व्यर्थ है
स्वामी विवेकानंद परिव्राजक
लोग समझते हैं कि जिसके पास भौतिक धन संपत्ति मोटर गाड़ी मकान बंगला ऊंचा पद देश-विदेश में सम्मान प्रसिद्धि आदि ये सब चीजें हैं, लोग उसके आगे पीछे घूमते हैं, उसे अच्छा अच्छा भोजन खिलाते हैं, उसके साथ मीठी मीठी बातें करते हैं, उसे सब प्रकार से सम्मान देते हैं, ऐसा व्यक्ति बहुत सुखी है। परंतु यह बहुत बड़ा भ्रम है।
यह तो ठीक है, कि उस व्यक्ति के पास भौतिक सुविधाएं अधिक होने से उसका जीवन थोड़ा आसानी से चल जाता है। उसके काम आसानी से हो जाते हैं। उसका बहुत सा समय बच जाता है। परंतु इसे सुख नहीं समझना चाहिए। सुख तो मन का विषय है। ऊपर लिखी भौतिक सुविधाएं शरीर का विषय है, अर्थात इन सुविधाओं से शारीरिक जीवन जीने में तो आसानी हो जाती है। फिर भी जब तक मानसिक स्थिति अच्छी न हो, तब तक आत्मा सुखी नहीं हो सकता।
यूं तो ये भौतिक सुविधाएं भी अंत में आत्मा को ही लाभ पहुंचाती हैं, जो शरीर से भोगी जा रही हैं, और मानसिक स्थिति भी। शरीर इंद्रियां बुद्धि मन आदि, ये सब पदार्थ तो जड़ हैं। ये भोक्ता नहीं हैं। भोक्ता तो आत्मा है। परंतु विचारणीय पक्ष यह है कि “भौतिक धन संपत्ति आदि साधनों से आत्मा को अधिक लाभ होता है? या मानसिक प्रसन्नता संतोष आदि से?” इसका उत्तर सभी शास्त्रों में और व्यवहार में यही देखा जाता है, कि “जो व्यक्ति मन से प्रसन्न है, वही व्यक्ति अधिक लाभ में है। वही वास्तव में सुखी है।”
प्राचीन काल में बड़े-बड़े ऋषि मुनि साधु संत महात्मा सज्जन लोग सुखी माने जाते थे, और आज भी हैं। वे लोग किस कारण से सुखी माने जाते थे, या आज भी माने जाते हैं? क्योंकि वे मानसिक स्तर पर प्रसन्न होते हैं। उनके पास भौतिक सुविधाएं तो बहुत कम होती हैं। बड़े बड़े धनवान सेठों के पास भौतिक संपत्तियां बहुत अधिक होती हैं। फिर भी वे सेठ लोग बहुत दुखी रहते हैं। चिंता तनाव से ग्रस्त रहते हैं। और जो आजकल भी सज्जन लोग हैं, ईमानदार हैं, बुद्धिमान हैं, विद्वान हैं, धार्मिक हैं, सदाचारी हैं, चरित्रवान हैं, छल कपट आदि दोष रहित हैं, उनके पास भौतिक सुविधाएं साधन भले ही कम होती हैं, फिर भी वे धनवान सेठों से अधिक सुखी हैं। इससे पता चलता है, कि “धन संपत्ति आदि भौतिक सुविधाएं सुख का छोटा साधन हैं, और मन की प्रसन्नता सुख का अधिक बड़ा साधन है।” दोनों साधनों से सुख तो आत्मा को ही मिलता है।
अतः जो सुख का बड़ा साधन मन की प्रसन्नता है, यह मन की प्रसन्नता आती है, उत्तम गुण कर्मों के धारण करने से, तथा छल कपट आदि दोषों को छोड़ने से, इसके बिना नहीं।
इसलिए उत्तम गुण कर्मों, सभ्यता नम्रता आदि गुणों को धारण करें। ईमानदारी से जीवन जीएँ। आप मन से सदा प्रसन्न रहेंगे। तभी आपका जीवन सफल और सार्थक हो पाएगा। तथा आपकी आयु विद्या बल बुद्धि कान्ति आनन्द आदि सदा बढ़ता रहेगा।