मोदी_के_सात_वर्ष
-कविता-
मोदी तुम सात वर्ष में
इक
आस भरी कविता से लगते हो।
बस कमी यही
कि
नही
लगते हो शासक से
कुछ संत संत से
लगते हो।
माँ भारती के आराधक
भ्रष्टाचारों के संहारक
तुम
इस घुटन भरे वातावरण मे
वातायन से लगते हो
मोदी तुम
श्वांस श्वांस से लगते हो।
ऐसा नहीं कि
परिस्थिति वश हुई नहीं गलतियां तुमसे
पर
निस्वार्थ, निस्पृह, निष्कपट
हो
तो क्षम्य क्षम्य से लगते हो
प्रिय प्रिय भी लगते हो।
मोदी तुम सात वर्ष में
इक
आस भरी कविता से लगते हो।
वैश्विक इतिहास का गणित
भारत के भूगोल की चुनौती
संस्कृति रसायन का घोल
इन सबमे रचे बसे से लगते हो।
आस भरी कविता लगते हो।
विश्वगुरु के तुम पथगामी
सनातन के तुम अगुआ
आर्यावर्त्त की सहज संतति लगते हो।
आस भरी कविता लगते हो।
तुम हृदयस्थ हो कोटि कोटि भारत जन में
आशाकिरण
बलपुंज लगते हो।
समान नागरिक संहिता तक
बस तुम ही खिवैया लगते हो
मोदी तुम आस भरी कविता लगते हो।
इक
आस भरी कविता से लगते हो।
बस कमी यही
कि
नही
लगते हो शासक से
कुछ संत संत से
लगते हो।
माँ भारती के आराधक
भ्रष्टाचारों के संहारक
तुम
इस घुटन भरे वातावरण मे
वातायन से लगते हो
मोदी तुम
श्वांस श्वांस से लगते हो।
ऐसा नहीं कि
परिस्थिति वश हुई नहीं गलतियां तुमसे
पर
निस्वार्थ, निस्पृह, निष्कपट
हो
तो क्षम्य क्षम्य से लगते हो
प्रिय प्रिय भी लगते हो।
मोदी तुम सात वर्ष में
इक
आस भरी कविता से लगते हो।
वैश्विक इतिहास का गणित
भारत के भूगोल की चुनौती
संस्कृति रसायन का घोल
इन सबमे रचे बसे से लगते हो।
आस भरी कविता लगते हो।
विश्वगुरु के तुम पथगामी
सनातन के तुम अगुआ
आर्यावर्त्त की सहज संतति लगते हो।
आस भरी कविता लगते हो।
तुम हृदयस्थ हो कोटि कोटि भारत जन में
आशाकिरण
बलपुंज लगते हो।
समान नागरिक संहिता तक
बस तुम ही खिवैया लगते हो
मोदी तुम आस भरी कविता लगते हो।
– प्रवीण गुगनानी