एलोपैथी अर्थात दवा ही दर्द है – की पैथी
एलोपैथि, दवा ही दर्द है की पैथी।___________________________
खुशकिस्मत कोरोना संक्रमित अस्पताल में लंबी जद्दोजहद के बाद कोरोना वैश्विक महामारी के दानव से जो मरीज बच गए। उनका सौभाग्य ज्यादा दिन तक अखंड नहीं रह पाया उनमें से अधिकांश चिकित्सीय प्रयोगों के दुष्प्रभावों का दंश झेल रहे हैं अर्थात ब्लैक फंगस का दर्द झेल रहे हैं। ऐसे मरीजों को एलोपैथी के धुरंधर बड़े डॉक्टर साहब माने वाले जाने वाले डॉक्टरों ने उनके फेफड़ों की सूजन को कम करने के लिए उनके प्रतिरक्षा तंत्र को स्टेरॉयड दवाइयों से एकदम खत्म कर दिया एलोपैथी के 200 वर्ष के इतिहास में यही एकमात्र क्रूर तरीका है सूजन संक्रमण को खत्म करने के लिए। अब जिस मरीज का प्रतीक्षा तंत्र कमजोर कर दिया गया तो ऐसे बदकिस्मत मरीज पर अवसरवादी हवा पानी में घुले हुए म्यूक्रो माइकोसिस जैसे फफूंद का हमला अवश्यंभावी था।
ऐसे समझिए कोरोना के मामले में एलोपैथिक इलाज से मानव शरीर का तेल निचोड़ दिया गया। ठीक है ऐसे जैसे अचार की फांक जब तक तेल में डूबी होती है तो उस पर कोई फफूंदी नहीं लगती जैसे ही हम उसे तेल से बाहर निकालते हैं वातावरण में छोड़ते हैं तो तमाम फंगस उसमें लग जाती है यही इंसानी शरीर का हाल है। सफेद कोट व सफेदपोश डॉक्टर इसे जानते थे। वह जानते थे कोरोना के इलाज में अवसर छुपा हुआ है कोरोना का इलाज कीजिए उस इलाज के दुष्प्रभाव का फिर इलाज कीजिए अंतहीन सिलसिला फार्मा कंपनियों के लिए सुनहरा अवसर बन गया है। और यहां तक तो छोड़िए अब ब्लैक fungus पर ही आते हैं अब इस ब्लैक फंगस का इलाज लाइपोसोमल एमफेटोटेरेसीन बी नामक इंजेक्शन दवाई को लेकर अफरा तफरी मची हुई है। आखिर क्या है?
यह इंजेक्शन इंजेक्शन खतरनाक विष है।
जो नदियों के जल उसके रिवर बेड के किनारे पाए जाने वाले स्ट्रपटोमायसिस नोडोसस नामक जीवाणु से प्राप्त किया जाता है। सबसे पहले इस जीवाणु को वेनेजुएला की औरनिकों नदी में खोजा गया। 1952 के बाद इसे प्रयोगशाला में भी बनाया जा रहा है। यह खतरनाक विष जो जीवाणुओं से प्राप्त किया जाता है ब्लैक फंगस को तो मारेगा मार रहा है लेकिन साथ ही साथ यह मारेगा हमारी kidney को क्योंकि यह विष अर्थात Liposomal Imphototerisin B इंजेक्शन सॉल्यूशन अंत में किडनी में ही जाकर गुर्दे में ही इसका अपचयन होता है। गुर्दे इसको पेशाब के रास्ते बाहर निकालते हैं। इस काम में गुर्दे की छलनी नेफ्रॉन क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। यह जहर शरीर में पोटेशियम की मात्रा को भी खतरनाक स्तर तक कम कर देता है जिससे दिल में सूजन दिल का दौरा कभी भी पड़ सकता है। जो मरीज कोरोना से बचें उन्होंने ब्लैक फंगस को झेला उनमें से हर 100 में से 50 से अधिक मरीज गुर्दे के रोगी दिल के रोगी जरूर बन जाएंगे यह इंटरनेशनल स्टडी ट्रायल में डॉक्युमेंटेड है। शातिर सफेदपोश डॉक्टर फार्मा कंपनियां रिसर्चर इस सब को भली-भांति जानते हैं। यदि कोई नहीं जानता तो दुनिया में सर्वाधिक ब्लैक फंगस के रोगी जहां पाए गए हम भारतवासी। हमारी स्वदेशी चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद को जब यह सफेदपोश डॉक्टर सुडो साइंस अर्थात छद्म विज्ञान ऐसा विज्ञान जो अप्रमाणित है कहकर मजाक उड़ाते हैं तो हम ही इन डॉक्टरों को भगवान का दर्जा देकर इनका मौन समर्थन करते हैं।
आयुर्वेद में ब्लैक फंगस के इलाज के लिए सैकड़ों वनस्पति तेल जड़ी बूटियां है लेकिन जिस देश का स्वास्थ्य मंत्री एलोपैथी से निकला हुआ उत्पाद है जो योग व आयुर्वेद स्वदेशी चिकित्सा पद्धति पर काम करने वाले आधुनिक ऋषि रामदेव से एलोपैथी की वाजिब आलोचना के लिए सवाल जवाब करता है उस देश में ब्लैक फंगस से मरीज देव योग से बच जाए लेकिन इस देश की भोली-भाली जनता को वैचारिक वामपंथी फंगस से कौन बचाएगा? यह यक्ष प्रश्न है उभर कर सामने आता है। ब्लैक fungus से ज्यादा खतरनाक है वामपंथी वैचारिक भगवा वैदिक सन्यास परंपरा निशुल्क निरापद होलिस्टिक आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति परंपरा विरोधी वैचारिक फंगस।
एलोपैथिक दवा कंपनियों सफेदपोश डॉक्टरों के क्रूर प्रयोगों स्वार्थ आर्थिक लूट का गठजोड़ तो आपके सामने है ही।
आर्य सागर खारी✍✍✍