सावरकर के खिलाफ अपील क्यों नहीं ? – श्याम सुंदर पोद्दार

—— लोगों को आश्चर्य होता है ,जब गाँधी हत्याकांड मे सम्मिलत होने के षडयन्त्र से जस्टिस आत्मचरन ने सावरकर को ससम्मान बरी करते हुए अपने निर्णय में लिखा, २० जनवरी १९४८ से ३० जनवरी १९४८ के बीच दिल्ली में क्या हुआ, उसकी जानकारी सावरकर को नही थी। इसलिए उनको पूर्ण दोशमुक्त किया जाता है।

इसके साथ साथ जस्टिस आत्मचरन ने अपने निर्णय में यह भी लिखा कि उनका नाम इस हत्या काण्ड में घसीटा जाना दुर्भाग्यपूर्ण व लज्जाजनक है। ऐसा जस्टिस आत्मचरन ने क्यों लिखा? इस हत्या काण्ड में उनका नाम घसीटा जाना दुर्भाग्यपूर्ण व लज्जा जनक है। वास्तव में पण्डित नेहरू जब गाँधी हत्या काण्ड के तुरन्त बाद सावरकर के हिन्दु महासभा द्वारा दिए गए सुरक्षा गार्ड अप्पा कासर को गिरफ़्तार कर दूसरे दिन अपने गुंडो को सावरकर की हत्या कराने, उन पर जानलेवा हमला करवाने और हिन्दु महासभा के सैकड़ों कार्यकर्ताओं के सावरकर के निवास स्थान पर पहुँचने से व सावरकर व उनके पुत्र बिस्वास सावरकर के पिस्टल उठा लेने से कामयाब नही हो सके,तो अपने राजनैतिक प्रतिद्वंदी को खत्मकरने के लिए गाँधी हत्याकांड में फँसाया। सावरकर ने इस केस को इसी आधार पर लड़ा की उन्हें इस केस में ज़बर्दस्ती फँसाया गया है। इस बात की पुष्टि डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर जो नेहरू मंत्रिमंडल के महत्वपूर्ण सदस्य थे,उन्होंने सावरकर के वकील भोपटकर से मिलकर कहा,सावरकर निर्दोष है।उन्हें नेहरू ने ज़बर्दस्ती फँसाया है। जस्टिस आत्माचरण का यह निर्णय देना यह घटना दुर्भाग्यपूर्ण व लज्जाजनक है, इसी दिशा में इंगित करता है। नेहरू का सावरकर के गाँधी हत्याकांड में बाइज्जत बरी होने के बाद उच्च न्यायालय में अपील नही करने का कारण यही है। क्योंकि इस केस को नेहरू ने और घसीटा तो वे स्वयं इसमें फ़सेंगे। गाँधी शतवार्षिकी पर सरकार ने जो गाँधी हत्याकांड की जाँच के लिए कपूर कमीशन बनाया था,उसने आश्चर्य व्यक्त किया था,सरकार अपील में क्यों नही गयी ?

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