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स्वास्थ्य

अकवन का पौधा और डॉक्टर

#अकवनकापौधा और #डाॅक्टर :
लगभग 42 वर्ष पहले की बात होगी। उन दिनों मैं #बिहार में था। मेरी माँ को कान बहने की पुरानी बीमारी थी। शहर के एक #ENT_Specialist (जो सर्जन भी थे) उनसे इलाज चलता रहता था, उनका कहना था कि दवाई से इसको पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता है, जब तक दवा चलती रहेगी, तभी तक फायदा होता रहेगा, इसलिये स्थायी उपचार के लिये सर्जरी करा लेना उचित है, लेकिन माँ ऑपरेशन कराने के लिये तैयार नहीं होती थी। तो, ऐसे ही समय बीत रहा था।

एक बार ऐसा हुआ कि धान की फसल के समय में माँ गाँव में थी और एक दिन अचानक कान बहना शुरू हो गया, तेज दर्द के साथ। दवा पास में थी नहीं और गाँव में कान का कोई डाॅक्टर भी नहीं था। हमारे खेतों में #भुइयां जाति के लोग मजदूरी किया करते थे। [ये लोग धान के खेतों में, उन खेतों के बिलों में, बहुतायत से मिलने वाले मूसा (चूहों) को खा जाते हैं, यह भूमिज (भूमि से जुड़ा हुआ) समुदाय है, ये लोग अपना टाइटिल #मांझी और #भुइयां भी रखते हैं]। तो, माँ को दर्द से परेशान देखकर इन्हीं में से एक मजदूर ने कहा कि वह इस तकलीफ का इलाज कर सकता है। माँ ने फौरन अनुमति दे दी। वह झट से घर के पिछवाड़े में उगे अकवन के पौधों से दो छोटी मुलायम पत्तियाँ तोड़ लाया, धो-पोछकर उसमें जरा सा #सरसोंतेल का लेप किया, फिर धीमी आँच में हल्का सा सेंक कर पत्तियों को निचोड़ कर दो-चार बूँद रस कान में डाल दिया। दर्द धीरे धीरे-धीरे आराम होने लगा और अन्ततः कान का बहना भी बन्द हो गया। तीन महीने बाद शहर लौटने पर जब डाॅक्टर से दिखाया गया, तो डाॅक्टर साहब को यह देखकर घोर आश्चर्य हुआ कि कान का बहना तो बन्द हो ही चुका था, कान के #डायफ्राम में जो छेद था (जिसके कारण कान बहता रहता था) वह भी बिलकुल बन्द हो गया था। बिना किसी सर्जरी के यह चमत्कार हुआ था। डाॅक्टर महाशय को जानकारी नहीं थी कि अकवन क्या बला है! आग्रह करके उन्होंने अकवन की पत्तियाँ मँगवाकर देखा, जानकारी प्राप्त की, माँ ने जो वर्णन किया था उस चिकित्सा विधि को अपनी डायरी में नोट किया और तदनन्तर उससे कई रोगियों की सफल चिकित्सा करते रहे। तो यह #देशीचिकित्सा का कमाल था, जो उस नितान्त अनपढ़ मजदूर ने हमें सिखाया था। समाज में हम जिन्हें अति-पिछड़ा कहते हैं, जो विशुद्ध निरक्षर भट्टाचार्य हैं, उनके पास भी वंशानुक्रम से विरासत में प्राप्त ज्ञान का जो संचित भंडार है, वह हम आधुनिक शिक्षित डिग्रीधारियों के पास भी नहीं है। तो यह चिन्तनीय है कि वास्तव में #पिछड़ाकौनहै? और #शिक्षितकौनहै? वैसे, यह बात तो हम सभी लोग जानते हैं कि हमारी दादी-नानी अपने परिवार के सदस्यों के बहुत सारे रोगों की चिकित्सा #देशीनुस्खों से ही कर लिया करती थीं। #आयुर्वेदचिकित्सा की पौराणिक गरिमा को पुनर्स्थापित करना देश और समाज के हित में होगा।

ग्रामीण क्षेत्रों के सम्पर्क में रहने वाले मित्रगण तो अकवन के बारे में जानते ही होंगे, लेकिन जो नहीं जानते हैं उनके लिये थोड़ी सी जानकारी निम्नलिखित है:
अकवन को #आक, #आर्क या #मदार भी कहा जाता है। इसकी कई प्रजातियाँ हैं, कुछ दुर्लभ भी हैं। इन पौधों में सफेद, नीले और बैंगनी रंग के फूल लगते हैं। इसका वानस्पतिक नाम #Calotropis_gigantea है। अनेकों औषधीय गुणों से भरपूर यह पौधा जहरीला होता है। इसकी शाखाओं को तोड़ने पर दूध जैसा चिपचिपा द्रव निकलता है। अकवन में श्वेत मदार प्रजाति का पौधा बड़े धार्मिक महत्व का है। भगवान शिव की पूजा में इसका विशेष महत्व है। इसीलिये प्रायः शिव-मन्दिरों के प्रांगण में इस पौधे को लगाने की परम्परा है।

नोट: यह मेरा अपना संस्मरण है, लेकिन अनुरोध है कि स्वयं इस विधि का प्रयोग न करें, पहले किसी अनुभवी अच्छे #आयुर्वेदिक_चिकित्सक से परामर्श अवश्य कर लें, क्योंकि यह सर्वविदित है कि आज की मिट्टी, पानी, हवा, सरसों का तेल सभी चीजें प्रदूषित हैं, उस जमाने की बात कुछ और थी।
✍🏻राज किशोर सिन्हा

 

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