भारतीय संस्कृति का खजाना : आचार्य यम और नचिकेता का संवाद

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🔥 ओ३म् 🔥

यमाचार्य नचिकेता संवाद
[ आध्यात्मिक ज्ञान-खजाना ]

नचिकेता यमाचार्य से अध्यात्मविद्या की शिक्षा लेने गया। यमाचार्य ने ब्रह्मविद्या की महत्ता को सुरक्षित रखने के लिए और नचिकेता की इस विद्या के प्रति पात्रता जाँचने के लिए उसे कई प्रकार के प्रलोभन दिये। यमाचार्य ने नचिकेता को कहा―

शतायुषः पुत्रपौत्रान् वृणीष्व बहून् पशून् हस्तिहिरण्यमश्वान् ।
भूमेर्महदायतनं वृणीष्व स्वयं च जीव शरदो यिवदिच्छसि ।।
ये ये कामा दुर्लभा मर्त्यलोके सर्वान् कामान् छन्दतः प्रार्थयस्व ।
इमा रामाः सरथाः सतूर्या न हीदृशा लम्भनीया मनुष्यैः ।
आभिर्मत्प्रत्ताभि परिचारयस्व नचिकेतो मरणं मानुप्राक्षीः ।।
―कठो० १.२३-२५
अर्थात् तू सौ वर्षों की आयुवाले पुत्रों और पौत्रों को माँग ले, बहुत-से पशुओं अर्थात् हाथी-घोड़ों को माँग ले। जितने वर्ष तू जीवित रहना चाहे जीवित रहने का वर माँग ले, परन्तु इस अध्यात्मविद्या के विषय में मत पूछ। यदि तू चाहता है तो धन और चिरकालीन आजीविका माँग ले। संसार में जो दुर्लभ कामनाएँ हैं तू उन्हें माँग ले। मेरे द्वारा दी गई सुन्दर स्त्रियों से तू सेवा करा और निश्चितरूप से तुझे ऐसी स्त्रियाँ नहीं मिलेंगी। हे नचिकेता! तू मृत्यु की बात को मुझसे मत पूछ।

यम ने नचिकेता को बहुत-से प्रलोभन दिये, परन्तु नचिकेता की आध्यात्मिकता के प्रति दृढ़ निष्ठा थी। उसे ये सब प्रलोभन अपनी ओर आकृष्ट नहीं कर सके। उसने उत्तर दिया―

श्वोभावा मर्त्यस्य यदन्तकैतत् सर्वेन्द्रियाणां जरयन्ति तेजः ।
अपि सर्वं जीवितमल्पमेव तवैव वाहास्तव नृत्यगीते ।।
न वित्तेन तर्पणीयो मनुष्यो लप्स्यामहे वित्तमद्राक्ष्म चेत्त्वा ।
जीविष्यामो यावदीशिष्यसि त्वं वरस्तु मे वरणीयः स एव ।।
―कठो० १.२६-२७
अर्थात् ये विषय-विकार और संसार के पदार्थ कल-ही-कल रहनेवाले हैं और सब इन्द्रियों के तेज को नष्ट कर देते हैं। यह जीवन कोई लम्बे समय का नहीं है, अत्यन्त संक्षिप्त है। ये सब वाहन और नृत्य एवं गीत आपको ही मुबारिक हों। मनुष्य धन से तृप्त नहीं होता। तुझे देखकर क्या हम धन को माँगेंगे। जबतक तू चाहेगा, हम जिएँगे। इसलिए मुझे वर [ मृत्यु के पश्चात् आत्मा रहता है कि नहीं ] तो वही माँगना है।

[ “वेद सन्देश” से, लेखक: प्रा. रामविचार एम ए ]

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