क्या मदर टेरेसा सचमुच महान थीं? क्या वो वैसी थीं, जैसा उन्हें दिखाया जाता है? असल में ऐसी बात नहीं है। मिशनरी अक्सर ऐसे ही लोगों की मदद कर के उनका धर्मांतरण कराते हैं, या फिर उनसे ईसाई मजहब और जीसस में विश्वास जगाने का कार्य करते हैं।
‘The Turning: The Sisters Who Left’ नामक पॉडकास्ट में मदर टेरेसा के डार्क साइड को दिखाया गया है। इसमें एक महिला की कहानी है, जो अपने समाज की मजहबी व्यवस्था से बाहर निकलना चाहती है और मदर टेरेसा की मिशनरी में फँस जाती है।
कोलकाता के एक डॉक्टर ने भी इसका खुलासा किया था कि कैसे मदर टेरेसा द्वारा चलाए जा रहे ‘मिशनरी ऑफ चैरिटी’ में उनके साथ अत्याचार किया जाता था। एक आलोचक का कहना है कि मदर टेरेसा को गरीबी और पीड़ा देखने में मजा आता था, न कि वो इसे ख़त्म करना चाहती थीं। डॉक्टर अरूप चटर्जी ने लिखा है कि अनाथों को मिशनरी होम में बाँध कर रखा जाता था। दर्द के केस में उन्हें एस्पिरिन के अलावा कोई दवा नहीं दी जाती थी।
खर्च बचाने के लिए मदर टेरेसा एक ही इंजेक्शन के नीडल को कई बार प्रयोग में लाती थीं और उनके शेल्टर होम्स में शौचालय तक की व्यवस्था नहीं होती थी, जिससे मरीज एक साथ कहीं बैठ कर एक-दूसरे के सामने ही मलमूत्र का त्याग करते थे। हालाँकि, मदर टेरेसा की मौत के बाद हाइजीन पर ध्यान दिया जाने लगा, लेकिन वो खुद ‘सादगी’ को इस हद तक ले जाती थीं, जिससे मरीजों की जान पर बन आती थी।
सबसे ज्यादा अत्याचार तो उस मिशनरी में ननों के साथ होता था। इस सीरीज में दिखाया गया है कि ननों को मरीजों और बच्चों को छूने तक की मनाही थी और न ही वो किसी से दोस्ती कर सकती थीं। जिन बच्चों की वो देखभाल करती थीं, उन्हें ही छूने की इजाजत नहीं थी। इन ननों को खुद पर ही कोड़े बरसाने का निर्देश दिया जाता था और एक दशक में 1 बार ही वो अपने परिवार से मिलने घर जा सकती थीं।
मदर टेरेसा इसे ‘अनुशासन’ का नाम देती थीं। एक नन ने बताया कि उसका भाई अस्पताल में मर रहा था, लेकिन उसे देखने जाने के लिए मदर टेरेसा ने अनुमति नहीं दी। उसके पास रुपए तक नहीं थे और उसके सिर बालों को पूरी तरह हटा दिया गया था। साथ ही उसे पहनने के लिए कपड़े तक नहीं दिए जाते थे। एकाध जोड़ी कपड़े से काम चलाया जाता था। ननों का ब्रेनवॉश कर के उन्हें उनके परिवार से पूरी तरह काट दिया जाता था।
ये खुलासे उन्हीं महिलाओं ने किए हैं, जिन्हें मदर टेरेसा ने कभी अपने मिशनरी होम्स में रखा हुआ था। वो अनाथालय और शेल्टर होम्स, जो काफी गंदे रहते थे। ननों को काँटों वाली चेन से खुद लो बाँध कर मात्र एक मग पानी से स्नान करना होता था। ननों की भर्ती के बाद उनके बाल शेव कर के जला डाला जाता था। खुद मदर टेरेसा ईसाई मजहब के चमत्कार के सहारे ‘इलाज’ करती थीं। मदर टेरेसा को नोबेल भी मिला था और मरणोपरांत उन्हें ईसाई मजहब में ‘सेंट’ की संज्ञा दी गई।
मदर टेरेसा ननों को रोज खुद को पीटने के लिए इसीलिए कहती थीं, ताकि उन्हें इसका एहसास हो कि वो कितनी ‘पापी’ हैं। उन्हें बाकी लोगों से आइसोलेट कर के रखा जाता था। ननों को ऐसे रखा जाता था, जैसे वो ज्यादा से ज्यादा अकेलापन महसूस करें तो उन्हें एहसास हो कि वो सिर्फ ‘गॉड’ पर निर्भर हैं। मदर टेरेसा खुद कहती थीं कि गरीबों को जानने के लिए गरीब बनना पड़ेगा और सभी पर ऐसा ही दबाव डालती थीं।
अवलोकन करें:-
मदर टेरेसा ने कम्युनिस्ट तानाशाह एनवर होक्सा की कब्र पर माल्यार्पण भी किया था, जिसने अपने मूल देश अल्बानिया में हिंसक रूप से धर्म का दमन किया था। अपने घर के करीब, टेरेसा ने आपातकाल के क्रूर दौर का समर्थन किया और कहा था, ‘लोग खुश हैं, ज्यादा रोजगार भी हैं। कोई हड़ताल नहीं है।” जेसुइट पादरी डोनल्ड जे मग्वायर मदर टेरेसा का आध्यात्मिक सलाहकार था। उसने 11 साल के एक लड़के का कई बार यौन शोषण किया था।