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हीरे नहीं हरित फेफड़े चाहिए

हिंदुस्तान का हृदय कहलाने वाले राज्य मध्यप्रदेश (सरकार) के हृदय में लोभ लालच आ गया है। इस प्रदेश के छतरपुर जिले की बकस्वाहा तहसील में हजारों हेक्टेयर सघन वन क्षेत्र जमीन के नीचे धरती के गर्भ में करोड़ों कैरेट हीरे छुपे होने की मध्य प्रदेश के भूगर्भ खनिज विभाग को जानकारी क्या लगी। रातो रात सरकार ने विदेशी माइनिंग सर्वेयर कंपनी रियो टिंटो के साथ मिलकर 2लाख 15 हजार सैकड़ों वर्ष प्राचीन सागौन अर्जुन तेंदू पीपल के वृक्षों को काटने की पूरी कार्ययोजना बना दी गई है। हजारों बूढ़े पेड़ों को सर्वे के दौरान ही काट दिया गया है।

छतरपुर का मूर्ख कलेक्टर तर्क दे रहा है हम जिले में 382.131 हेक्टेयर राजस्व की जमीन में ऐसा ही सघन वन बना देंगे। हिसाब किताब बराबर हो जाएगा। नकारो तुम्हारा विश्वास कौन करेगा? तुम ईश्वर की व्यवस्थाओं को कैसे पुनः स्थापित कर सकते हो उन्हें नष्ट कर ? नकारे अधिकारियों प्राकृतिक हरित फेफड़े पेड़ों से मिलने वाली ऑक्सीजन तो दूर तो महामारी में कृत्रिम ऑक्सीजन की व्यवस्था नहीं कर पाए बात करते हो बक्सवाहा जंगल को हीरो के खनन के नाम पर खत्म कर दोबारा जंगल बनाने की।

हीरे जवाहरात जीवन रक्षक होते तो दुनिया में कोरोना महामारी इतनी तबाही नहीं मचाती।

बड़ी बड़ी अर्थव्यवस्था चौपट हो गई। हीरे के कारोबारी गुजरात में ऑक्सीजन के अभाव में तड़प तड़प कर मर गए। संयुक्त राज्य अमेरिका इटली जिसके पास दुनिया का सर्वाधिक गोल्ड रिजर्व है वहां भी लाखों लोग मर गए। जीवन का प्राथमिक अंतिम स्रोत केवल कल्याणकारी शिव के प्रतिनिधि पेड़ पौधे वनस्पति ही है।

मैं मध्य प्रदेश सरकार के इस फैसले का प्रबल विरोध करता हूं देश के पर्यावरणविदों स्थानीय मध्य प्रदेश के पर्यावरणविदो के अभियान “इंडिया स्टैंड विद बक्सवाहा” के साथ हू। आखिर बक्सवाहा का जंगल मध्य प्रदेश की विरासत नहीं वृक्षों को देवता मानने वाली सभी भारत वासियों की विरासत है।

INDIA STAND WITH BUXWAHA

आर्य सागर खारी✍✍✍

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