सच्चे गुरु के बिना जीवन सफल नहीं होता। परन्तु जिसको भी गुरु बनाएँ, वह सच्चा गुरु अर्थात वेदों का विद्वान तथा वेदानुकूल आचरणवान होना चाहिए। नकली गुरु तो स्वयं डूबेगा और दूसरों को भी डुबोएगा।
जैसे कोई यात्री किसी स्थान विशेष पर पहुंचना चाहता है, तो वह रास्ता चलते लोगों से पूछ लेता है, कि यह स्थान विशेष कहां मिलेगा? तब जो जानकार लोग
जैसे रेल मार्ग या सड़क मार्ग की यात्रा होती है, ऐसे ही जीवन की भी यात्रा होती है। जैसे रेल मार्ग या सड़क मार्ग की यात्रा का कोई लक्ष्य दिल्ली भोपाल मुम्बई आदि होता है, ऐसे ही
जीवन यात्रा का भी एक लक्ष्य है। वह लक्ष्य है सारे दुखों से छूटना तथा ईश्वरीय पूर्ण आनंद की प्राप्ति करना. इन दोनों को मिलाकर एक शब्द में कहें तो मोक्ष प्राप्त करना यह सब आत्माओं का अंतिम या सर्वोच्च लक्ष्य है।
अब इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए यदि आपको मार्ग नहीं मालूम, तो किसी जानकार व्यक्ति से मार्ग पूछना होगा। किसी को गुरु बनाना होगा, जो आपको ठीक मार्ग दिखाए, लक्ष्य तक ठीक से पहुंचा दे। सही लक्ष्य को जानने वाला सच्चा गुरु वही होगा, जो वेदों का विद्वान हो, जो संस्कृत भाषा पढ़ा हो, जो वेदों के सिद्धांतों को ठीक से समझता हो, जिसका आचरण भी वेदों के अनुसार ही हो, जिसका अपना लक्ष्य भी मोक्ष प्राप्ति हो, और वह सारे काम मोक्ष को लक्ष्य बनाकर ही करता हो, सांसारिक सुख संपत्ति भोग को लक्ष्य बनाकर वह कार्य न करता हो। तो ऐसा व्यक्ति सच्चा गुरु है। वह सही मार्ग को जानता है। ईश्वर ने ऐसे गुरु भी संसार में बनाए हैं। उन्हें ढूंढने की आवश्यकता है। जैसे महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने सच्चे गुरु की खोज की। वर्षों तक ढूंढते ढूंढते जब उन्हें सच्चे गुरु स्वामी विरजानंद जी महाराज प्राप्त हो गए, और उन्होंने पहचान लिया कि ये सच्चे गुरु हैं, तो उन्हें समर्पित होकर उनके आदेश निर्देश का पालन किया। और महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने ठीक लक्ष्य को पा लिया। आपको भी ऐसे ही सच्चे गुरु की खोज करनी होगी। उसके बिना आपका या किसी का भी कल्याण नहीं होगा।
— स्वामी विवेकानंद परिव्राजक, रोजड़, गुजरात।
प्रस्तुति : अरविंद राजपुरोहित
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