अली खान
बताया जाता है कि यह फंगस साइनस क्षेत्र से फेंफड़ों में प्रवेश करता है। कई मामलों में यह भी सामने आया है कि यह साइनस क्षेत्र से आंखों में चला जाता है, वहां से सीधा मस्तिष्क में प्रवेश करता है। ऐसे में इस फंगस का मस्तिष्क में प्रवेश बेहद ख़तरनाक है।
देशभर में कोरोना जमकर कहर बरपा रहा है। देश-प्रदेश में लगातार बढ़ते कोरोना संक्रमण के बीच सरकारें सख्त लॉकडाउन के जरिए संक्रमण की चेन तोड़ने का प्रयास कर रही हैं। पिछले कुछ दिनों में कोरोना संक्रमित मरीजों के आंकड़ों में जरूर कमी आई हैं। कई राज्यों की सरकारों ने कर्फ्यू और लॉकडाउन द्वारा संक्रमण की चेन तोड़ने का प्रयास किया है। इससे संक्रमण में जरूर कमी देखी गई है, मगर हर दिन होने वाली मौतों के आंकड़ों में कोई खास गिरावट नहीं दर्ज की गई। देश में पॉजिटिविटी की दर भी नीचे गिरी है। ऐसे में यह बहुत राहत भरी खबर है।
देश अभी कोरोना महामारी से उबरा नहीं कि एक नई आफत ने दस्तक दे दी है। देश के सामने नई आफत ब्लैक फंगस या म्यूकरमाइकोसिस के रूप में सामने आई है। इसे जायगोमायकोसिस के नाम से भी जाना जाता है। सीडीसी यानि सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक, यह एक दुर्लभ लेकिन खतरनाक फंगल इन्फेक्शन है जो म्यूकोरमाइसेट्स नाम के फफूंद यानि फंगस के समूह की वजह से होता है। यह फंगस वातावरण में प्राकृतिक तौर पर पाया जाता है। यह इंसानों पर तब ही हमला करता है, जब हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर पड़ती है। हवा में मौजूद यह फंगल स्पोर्स यानि फफूंद बीजाणु सांस के जरिए हमारे फेफड़ों और साइनस में पहुंच कर उन पर असर डालते हैं। यह फंगस शरीर में लगे घाव या किसी खुली चोट के ज़रिये भी शरीर में प्रवेश कर सकते हैं।
बताया जाता है कि यह फंगस साइनस क्षेत्र से फेफड़ों में प्रवेश करता है। कई मामलों में यह भी सामने आया है कि यह साइनस क्षेत्र से आंखों में चला जाता है, वहां से सीधा मस्तिष्क में प्रवेश करता है। ऐसे में इस फंगस का मस्तिष्क में प्रवेश बेहद ख़तरनाक है। इससे आंखों की रोशनी जाती रहती है, समय रहते इलाज नहीं करवाने की स्थिति में मौत भी हो सकती है। आज देशभर में कोरोना वायरस के विकराल रूप के बीच ब्लैक फंगस का खतरा भी बढ़ रहा है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी से ब्लैक फंगस से जुड़ा मामला सामने आया है। जिसमें 52 वर्षीय कोरोना संक्रमित और ब्लैक फंगस से पीड़ित महिला का ऑपरेशन किया गया। बीएचयू में ईएनटी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुशील कुमार अग्रवाल ने अपनी टीम के साथ सफल ऑपरेशन किया। इस ऑपरेशन में महिला की जान बचाने के लिए उनका जबड़ा और एक आंख समेत चेहरे का आधा हिस्सा निकाल दिया गया। बताया जाता है कि ऑपरेशन से पहले महिला के चेहरे पर सूजन की शिकायत थी। डॉ. अग्रवाल ने बताया कि लगभग छह माह बाद सिलिकॉन का आर्टिफिशियल चेहरा, जबड़ा और पत्थर की आंख लगाई जाएगी। यदि ऑपरेशन नहीं करते तो संक्रमण मस्तिष्क में चला जाता और उनकी मौत हो सकती थी।
विशेषज्ञों ने ब्लैक फंगस को लेकर चेताया है कि प्रतिरोध क्षमता कम और शुगर लेवल ज्यादा होने, हैवी स्टेरॉइड लेने तथा हफ्ते भर आईसीयू में रहकर इलाज करवाकर लौटे मरीजों को इससे ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। सीडीसी ने यह स्पष्ट किया है कि म्यूकरमाइकोसिस कोई संक्रामक नहीं है। इसका सीधा-सा मतलब यह है कि यह एक इंसान से दूसरे इंसान के संपर्क में आने से नहीं फैलता है।
आज हम देख पा रहे हैं कि कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों में मृत्यु 1 से 2 फीसदी के बीच पाई जा रही है। कोरोना वायरस को हराने में हमारा मजबूत इम्युनिटी बहुत मददगार है। ऐसे में बताया जा रहा है कि मजबूत इम्युनिटी के साथ ब्लैक फंगस को बड़ी आसानी के साथ हराया जा सकता है। मजबूत इम्युनिटी का मतलब हमारी बीमारियों से लड़ने की क्षमता से है। लेकिन इससे भी जरूरी यह है कि हमें ब्लैक फंगस के लक्षणों को लेकर विशेष सतर्कता बरतने की जरूरत है। म्यूकरमाइकोसिस यानि ब्लैक फंगस के लक्षणों में मुख्यत: आंख व नाक के आसपास दर्द, लालिमा व सूजन के साथ बुखार और सिरदर्द रहता है। खांसी और हांफना, खून की उल्टी, साइनोसाइटिस यानि नाक बंद होना या नाक से काले म्यूकस का डिस्चार्ज होना, दांत ढीले हो जाना या जबड़े में दिक्कत महसूस होना और नेक्रोसिस यानि किसी अंग का गलना तथा त्वचा पर चकत्ते का पड़ना इत्यादि इसके लक्षणों में शामिल हैं।
ऐसे में हमारी सतर्कता हमें ब्लैक फंगस से लड़ने में बहुत मददगार साबित होगी। मगर ध्यान देने योग्य बात यह है कि नाक बंद होने के सभी मामलों को बैक्टीरियल इंफेक्शन न समझें विशेष रूप से कोरोना मरीजों में। सबसे जरूरी यह है कि डॉक्टर की सलाह लेने और इलाज शुरू करने में बिलकुल भी देरी न करें। यदि धूल वाली जगह पर जाएं, तो मास्क का प्रयोग जरूर करें। म्यूकरमाइकोसिस मरीज के साइनस के साथ आंख, दिमाग, फेफड़ों या त्वचा पर भी हमला कर सकता है। यदि समय रहते इसे नियंत्रित नहीं किया गया तो यह जानलेवा भी साबित हो सकता है।