प्रह्लाद सबनानी
संकल्प की दृढ़ता, धैर्य और सजगता से सतत प्रयास, जिसमें योग, ध्यान, शारीरिक व्यायाम का मेल और शुद्ध सात्विक उचित आहार एवं उचित उपचार के साथ हम खुद भी इस बीमारी से बच सकते हैं तथा औरों को भी इससे बचाने के लिए सजग कर सकते हैं।
पूरे विश्व के साथ-साथ भारत में भी कोरोना महामारी के खिलाफ एक लम्बी लड़ाई लड़ी जा रही है। चिकित्सा जगत के लोग तो प्रभावित मरीजों का इलाज करते हुए अपना काम प्रभावी तरीके से कर ही रहे हैं, परंतु महामारी के ऐसे वक्त में जब भारी संख्या में देश के नागरिक इस महामारी से ग्रसित हो रहे हों एवं उनकी देखभाल के लिए उनके अपने परिवार के लोग ही उपलब्ध नहीं हो पा रहे हों, ऐसे समय में पूरे देश में सामाजिक समरसता एवं देश प्रेम की भावना को केंद्र में रखकर यदि देश के समस्त नागरिक एक दूसरे के सहयोग में साथ खड़े होंगे तो इस महामारी के दौर से बहुत ही आसानी से पार पाया जा सकता है।
अभी हाल ही में दिनांक 11 मई से 15 मई 2021 के बीच “हम जीतेंगे- Positivity Unlimited” नामक व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया था। व्याख्यानमाला की इस श्रृंखला में पूज्य शंकराचार्य, आध्यात्मिक गुरु, उद्योगपति, समाज की नामीग्रामी हस्तियों एवं संघ के परम पूज्य सरसंघचालक ने अपने विचार साझा किए। उक्त व्याख्यानमाला में सभी सम्माननीय वक्ताओं का मिलाजुला मत था कि संकट की इस घड़ी में पूरे देश के नागरिकों को सामाजिक समरसता के प्रभाव में देश प्रेम की भावना जागृत कर एक दूसरे के साथ खड़ा होना चाहिए एवं एक दूसरे की मदद करनी चाहिए। आज भारत माता की पावन धरा एक विशाल परिवार के रूप में देखी जानी चाहिए।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूजनीय सरसंघचालक डॉ. मोहन मधुकरराव भागवत जी ने अपने उद्बोधन में मार्गदर्शन देते हुए कहा कि जिन परिवारों ने अपने सदस्यों को खोया है, उन्हें सांत्वना देते हुए इस बात के प्रयास करें कि प्रभावित परिवार अपना मानसिक संबल अत्यंत ऊंचा रखें। मन में सकारात्मक विचारों का संचार करके ही कोरोना को नकारात्मक बनाया जा सकता है। किसी के भी मन में निराशा का भाव पैदा नहीं होने देना चाहिए और इसके लिए संकट की इस घड़ी में समाज के सभी सदस्यों को मिलकर काम करना चाहिए एवं प्रभावित परिवारों के साथ एकजुट होकर खड़े होना जरूरी है। मूल रूप से भारतीय बिल्कुल भी निराशावादी नहीं हैं, वे केवल जीत में ही विश्वास रखते हैं। हालांकि “यूनान, मिस्र, रोम सब मिट गये परंतु कुछ बात है ऐसी है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी” (भारत की)। यह भारतीयों की मूल भावना के चलते ही सम्भव होता आया है। अभी भी भारतीय जीतेंगे, मानवता जीतेगी और हम सभी भारतीयों का संकल्प जीतेगा। हम सभी भारतीयों को एक समूह के रूप में कार्य करना चाहिए। वर्ग भेद, जाति भेद और अन्य मानव निर्मित किसी भी तरह के भेदों को भूलकर त्वरित गति से सामूहिक सामाजिक साझा प्रयास इस महामारी से लड़ने के लिए किए जाना चाहिए।
संकल्प की दृढ़ता, धैर्य और सजगता से सतत प्रयास, जिसमें योग, ध्यान, शारीरिक व्यायाम का मेल और शुद्ध सात्विक उचित आहार एवं उचित उपचार के साथ हम खुद भी इस बीमारी से बच सकते हैं और औरों को भी इससे बचाने के लिए सजग कर सकते हैं। साथ ही अपने आप को व्यस्त रखें और देखें क्या रचनात्मक कार्य, इस वक्त में, आज के समयानुकुल, सारे नियमों का पालन करते हुए, हम लोग कर सकते हैं। जैसे कोई भी भूखा ना रहे कोई भी बगैर इलाज के ना रहे, इसके लिए प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रूप से अपने आप को सेवा से जोड़ सकते हैं। अगर प्रत्यक्ष आकर खुद नहीं कर सकते तो जो संस्थाएं इन कार्यों में लगी हुई है उन संस्थानों से जुड़ सकते हैं। नियम व्यवस्था और कानूनों का पालन करते हुए कोशिश कर सकते हैं कि जहां भी संभव हो सके, ऐसे लोगों को रोजगार दें या ऐसे कार्य करें, जिससे जो लोग अपना रोजगार खो बैठे हैं, वह रोजगारोन्मुखी कार्य कर सकें। इसको हम अलग-अलग क्षेत्रों में अपने विवेक के हिसाब से उपरोक्त संकेत को समझते हुए अपने खरीदारी में बदलाव कर, समाजसेवी कार्य कर सकते हैं।
साफ सफाई और हाइजीन का पूरा ध्यान रखना एवं मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करना भी जरूरी है और इसके बावजूद भी यदि कोरोना वायरस से संक्रमित हो जाए तो धैर्य नहीं खोना चाहिए। इस बात को छुपाना बिल्कुल भी नहीं है बल्कि अपने आसपास के लोगों को बता कर, जल्द से जल्द उचित उपचार करा कर, अपने स्वास्थ्य को ठीक कर, इससे बाहर आना है।
आदरणीय सदगुरु जग्गी वासुदेव जी महाराज ने कहा कि घबराहट, हताशा, भय, क्रोध, इनमें से कोई भी चीज हमारी मदद करने वाली नहीं है। आज हमें एक साथ मिलकर, एक राष्ट्र एवं एक मानव समाज के रूप में खड़े होने का समय है। साथ ही यह समय बहुत गहरे जाकर अपनी सांस्कृतिक जड़ों की ओर लौटने का है जो मानव के भीतर जाकर उसके स्वस्थ होने पर बल देती हैं, कम से कम भारत को यह उदाहरण विश्व के सामने स्थापित करना ही चाहिए। कई संदर्भों में विश्व इस समय भारत की ओर आशाभरी निगाहों से देख रहा है।
पूजनीय जैन मुनिश्री प्रमाण सागर जी ने बताया कि निश्चित ये बहुत त्रासदीपूर्ण काल है। लेकिन ऐसे समय में सभी लोग घबराएं नहीं बल्कि अपने मन को मजबूत बनाएं। अगर बीमारी आई है, तो ये जाएगी भी। सभी भारतीय अपने भीतर आध्यात्मिक दृष्टि रखें कि ये बीमारी तन की है, मन की नहीं। तन की बीमारी के सौ इलाज हैं, मन की बीमारी का कोई इलाज नहीं, इसलिए इस तन की बीमारी को मन पर बिल्कुल भी हावी नहीं होने दें।
द आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक व आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर जी महाराज ने कहा कि मानसिक रूप से, सामाजिक रूप से हम सबके ऊपर एक जिम्मेदारी है वह यह कि हमें अपने भीतर जो धैर्य है, शौर्य है, जोश है उसे जगाएं। जोश को जगाने से उदासीपन अपने आप हट जाएगा। आज जब व्यक्ति उदास है, दुःखी है, दर्द से पीड़ित है, ऐसे में अपने भीतर करुणा को जगाएं। करुणा जगाने से आश्य है कि अपने आप को सेवा कार्य में लगाएं। इस वक्त में हम सबको अपने भीतर ईश्वर भक्ति को भी जगाना चाहिए। योग-साधना और आयुर्वेद पर ध्यान देते हुए अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना जरूरी है।
आदरणीया पद्मश्री निवेदिता भिड़े जी ने इस बात पर बल दिया कि इस चुनौतीपूर्ण समय में सकारात्मकता बनाए रखने के लिए हम सभी मिलकर अपने परिजनों तथा आस-पास लोगों के साथ रचनात्मक गतिविधियों में सक्रियता से भागीदारी सुनिश्चित करें। इसके अलावा अपने आस-पास कोरोना से प्रभावित परिवारों की सेवा करें। संकल्प के साथ प्रार्थना करें, इससे भी वातावरण में सकारात्मक तरंगों का निर्माण होता है और माहौल में सकारात्मकता आती है। हमें भूलना नहीं चाहिए कि हम कोई साधारण राष्ट्र नहीं हैं, पहले भी ऐसी विपत्तियां व संकट हम पर आए हैं और हमने उनका सामना सफलतापूर्वक किया है, हम वर्तमान चुनौती का सामना भी सफलतापूर्वक करेंगे।
प्रसिद्ध उद्योगपति माननीय श्री अज़ीम प्रेमजी ने बताया कि इस विकट परिस्थिति में पूरे राष्ट्र को एक साथ खड़े होना चाहिए क्योंकि एक साथ रहेंगे तो हम सभी मजबूत रहेंगे। हमें सोचना चाहिए कि हमारे सारे प्रयास अब समाज के कमजोर वर्ग के लिए हों।
पूजनीय शंकराचार्य श्री विजयेंद्र सरस्वती जी महाराज ने कहा कि आज विश्व में महामारी की वजह से एक अति संकट की स्थति है। इस संकट के विमोचन के संदर्भ में वाल्मीकि रामायण में संकट मोचन हनुमान जी कहते हैं, दुःख होता है, संकट होता है, फिर भी अपना जो मनोधैर्य है, मन में जो हिम्मत है उसे छोड़ना नहीं चाहिए एवं प्रयत्न करते रहना चाहिए। संकट कैसा भी हो, यदि प्रभु में पूर्ण आस्था एवं विश्वास के साथ कार्य करेंगे तो उसका फल अवश्य मिलेगा। एक साल पहले भी इसी प्रकार के संकट के दौरान अनेक भाषाओं, अनेक प्रांतों के लोगों ने एक साथ मिलकर कार्य किया, उसका अनुकूल परिणाम भी मिला था। आज व्यक्तिगत विश्वास के साथ ही सामूहिक वातावरण बनाने की आवश्यकता है।
प्रख्यात कलाकार पद्मविभूषण सोनल मानसिंह ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि हाल ही में उन्हें कोरोना हुआ था, पर सकारात्मक विचारों, धैर्य, आत्मबल व प्रार्थना द्वारा उन्होंने नैराश्य को दूर भगाते हुए इस पर विजय प्राप्त की है। आज समाज में असीम आशा व सकारात्मकता का वातावरण बनाने की आवश्यकता है ताकि कोई भी हताश या निराश न हो। इसके लिए रचनात्मकता का सहारा लेकर मन में कृतज्ञता का भाव रखना जरूरी होगा। क्रोध, निराशा, हताशा की भावना से स्वयं को दूर रखकर समाज के साथ सकारात्मक विचारों को साझा कर दूसरों को भी संबल देने की आज आवश्यकता है।
पूजनीय साध्वी ऋतंभरा जी ने कहा कि विपरीत परिस्थितियों में ही समाज के दायरे के धैर्य की परीक्षा होती है। इन विपरीत परिस्थितियों में जबकि हमारा पूरा देश एक विचित्र महामारी से जूझ रहा है, ये वो समय है, जब हम अपनी आंतरिक शक्ति को जागृत करें। मनुष्य के साहस व संकल्प के सामने बड़े-बड़े पर्वत तक टिक नहीं पाते। नदी का प्रवाह जब प्रवाहित होता है तो वो बड़ी-बड़ी चट्टानों को रेत में परिवर्तित करने का सामर्थ्य रखता है। इसलिए इस विकट परिस्थिति में असहाय होने से समाधान नहीं होगा, अपनी आंतरिक शक्ति को जागृत करना आवश्यक है। सभी अपने आत्मबल, आत्म संयम और आत्म संकल्प को जागृत करें।
आदरणीय संत श्री ज्ञानदेवजी महाराज ने कहा कि केवल भारतवर्ष में ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में जो यह संक्रमण काल चल रहा है, इससे घबराने की आवश्यकता नहीं है, मनोबल गिराने की आवश्यकता नहीं है। जो भी वस्तु संसार में आती है, वह सदा स्थिर नहीं रहती। दुःख आया है, वह चला जाएगा। यदि कोई संक्रमित हो भी जाता है तो वो परमात्मा का चिंतन करे, गीता का पाठ करे, गुरूवाणी का पाठ करे, अपने मन को स्वस्थ रखें। भारत की परंपरागत जीवनशैली में वे सभी तत्व पहले से मौजूद रहे हैं, जिनका पालन करने के लिए हमें आज चिकित्सक कह रहे हैं। इस समृद्ध सांस्कृतिक व आध्यात्मिक परंपरा का पालन कर स्वस्थ रह सकते हैं। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि हम अपनी इन समृद्ध परंपराओं की पहचान कर उन्हें व्यवहार में लाएं।
लेखक भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवर्त उप-महाप्रबंधक हैं।