भारतीय राजनीतिज्ञों के प्रति विश्वास का संकट आजादी बाद से निरंतर बना रहा है

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” सच्ची स्वतंत्रता का अभाव ” संसार के सब देशों में वहां की जनता ‘स्वतंत्रता दिवस ‘ , ‘जनतन्त्र दिवश’ बङे उल्लास व हर्ष से मनाती है । यह दिवस उनके लिए त्यौहार है, पर्व है । हमारे देश में कूछ लोग तमाशा देखने के लिए लालकिला जाते हैं या सरकारी गाजे-बाजे सुनने के लिए पहुँचते हैं पर आम जनता के मन में प्रसन्नता नहीं । यदि देश स्वतंत्र होता, तो देश की जनता स्वतन्त्रता दिवस को त्यौहार की तरह मनाती ।

हमारा देश बातों से स्वतंत्र नहीं हुआ, बलिदानियों और खून बहाने से स्वतंत्र हुआ है । अंग्रेज अहिंसा के शक्ति के कारण भारत छोङकर नहीं गये और न ही उन्हें कांग्रेश संगठन का भय था। दूसरे विश्व युद्ध के अन्त (1945) में अंग्रेजों की स्थिति ही ऐसी हो गयी थी कि वह भारत पर शासन नहीं कर सकते थे । नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज, बम्बई में नौसैनिको और दिल्ली पुलिस के विरोध और सत्याग्रह के कारण अंग्रेजों का भारत की उनकी अपनी सैनिक शक्ति से विश्वास उठ गया था । धन की कमी तथा अन्य कारणों से अंग्रेज यहाँ अपनी विदेशी सैनिक शक्ति को नहीं रख सकते थे । अंग्रेज जानते थे कि कांग्रेसी नेता सत्ता के लिए उतावले हैं । अतः उन्होंने पाकिस्तान और हिन्दुस्तान, देश के दो टुकड़े बनाकर सदैव के लिए झगड़े की नींव रखी और दिखावे के लिए राजसत्ता काँग्रेसियो के सुपुर्द करके चले गए । अंग्रेज तो चले गये पर कांग्रेसी नेताओं की कमजोरी और स्वार्थ के कारण अंग्रेजियत कायम रही, पश्चिमी सभ्यता का प्रचार और प्रसार बढा। कांग्रेसी नेता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, उचित और अनुचित तौर पर भारतीय संस्कृति और हिन्दू धर्म को नष्ट करके अंग्रेजियत या पश्चिमी सभ्यता की इमारत खङी करने में लगे रहे । जिस देश के प्राय: लोग दूसरे धन को मिट्टी और बहन बेटी को अपनी बेटी मानते थे उन्हें कांग्रेशी शासकों ने भ्रष्टाचारी और व्यभिचारी बना दिया । अंग्रेजों ने भारत और विशेषतया हिन्दुओं का पतन करने में जो कार्य नहीं किया, वह कार्य हमारे अपने शासकों ने किया । 2014 में बङे चाव से हिन्दुओं ने राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ के एक प्रचारक (मोदी जी) को देश की सत्ता सौंपी,पर देश लगभग उसी काँग्रेस द्वारा बनाए गए ढरे पर चल रहा है । आज भी अपनी सत्ता को मजबूत करने के लिए हिन्दुओं को सिर्फ भरमाया जा रहा है । यदि देश वास्तव में स्वतंत्र होता, ईमानदारी से चुनाव कराये जाते, भारतीय संस्कृति को प्रोत्साहन दिया जाता तो जनता में शासन के प्रति विश्वास उत्पन्न होता, जनता को स्वराज्य का अनुभव होता । कुछ चालाक लोगों ने अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए देश के लोगों को स्वराज्य के नाम से भ्रमित कर रखा है । किसी भी ईमानदार देशभक्त को इन राजनेताओं के इस भ्रमजाल में नहीं फसना चाहिए ।

 

राजकुमार अग्रवाल

1 thought on “भारतीय राजनीतिज्ञों के प्रति विश्वास का संकट आजादी बाद से निरंतर बना रहा है

  1. सत्य की बहुत ही अतुलनीय खोज जय हो आपका प्रयास सराहनीय है। उगते हुए भारत को बारम्बार प्रणाम कोटि-कोटि नमन ।

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