मैं उस समय की बात कर रहा हूं जब मेरी उम्र10 या 12 वर्ष की रही होगी। पैतृक ग्राम महावड में हमारी ईख की फसल खड़ी हुई थी । पता नहीं किस कारण से उसमें एक किनारे से आग लग गई।
पूज्य पिताजी , दोनों बड़े भाई साहब, सभी आग को बुझाने में लगे हुए थे ।मैं भी अपनी बौद्धिक और शारीरिक क्षमता के अनुसार सहायता कर रहा था । खड़ी ईख में आग लग जाए तो उसको बुझाना बड़ा मुश्किल ही नहीं, असंभव कार्य होता है।ईख में आग लगी देखकर और हमारे शोर मचाने पर आस पड़ोस में कार्य करने वाले किसान भी भागकर हमारी सहायतार्थ आ गए। जिनमें एक हमारे ताऊ जात भाई थे – जगिंदर सिंह जी ।
जिन्होंने हमें बताया कि जहां पर आग लगी है इससे कुछ आगे छोड़ करके खड़ी हुई ईख को काटकर एक गैलरी बनाओ और उस गैलरी में से सारी ईख की सूखी पत्तियां भी साफ कर दो ।वहां पत्ती का भी एक अंश नहीं रहना चाहिए ।गैलरी में पानी का छिड़काव करवा दो।
वैसा ही किया गया।
उस गैलरी के बनाने के बाद जहां तक गैलरी बनाई थी वहां तक की ईख जली । शेष ईख की फसल हमारी बच गई थी।
यदि कोरोना को भी तोड़ना था ,यदि इस महामारी से बचना था तो हमें अपना बचाव करना था , लेकिन हम सभी इसके प्रति लापरवाह हुए। हमने शादियां, सामाजिक समारोह, व्यापारिक गतिविधियां, चुनाव की भीड़, बिना मास्क लगाए जनता का घूमना , किसान आंदोलन के नाम पर महीनों तक एक स्थान पर भीड़ इकट्ठी होना ,एक दूसरे से दूरी ना बना करके अपने चारों तरफ कोरोना नामक महामारी की संक्रमण रूपी आग फैलने का अवसर प्रदान हमने स्वयं किया।
संकट को समझकर भी हमने उसकी भयंकरता को नहीं समझा । सरकार ने पहले दिन से शोर मचाना आरंभ किया कि यूरोप में एक महामारी फैल चुकी है जो बड़ी तेजी से भारत की ओर आ रही है । इसलिए लोग समय रहते सावधान हो जाएं ,लेकिन किसी ने भी सरकार की उस चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया। सबके दिमाग में एक बात घूमती रही कि मौत और संकट हमसे बहुत दूर है। अब जब यह दोनों चीजें घरों में आग घुसी हैं तो लोगों की आंखें खुली हैं । उन्हें लगा है कि सरकार समय पर सही चेतावनी दे रही थी। परंतु जिन लोगों को सरकार की आलोचना ही करनी होती है उन्हें तो कोई बहाना चाहिए । अब वे इस बहाने को क्यों चूकने लगे हैं ? इसलिए वह सरकार पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए उसकी आलोचना कर रहे हैं।
यदि हम उसमें बनाई गैलरी (कोविड प्रोटोकॉल ) का उदाहरण लेकर के चलते , कोविड प्रोटोकॉल का अनुसरण करते तो यह ब्रेक हो गया होता। वहीं दूसरी लहर नहीं आती। फिर तीसरी नहीं आती ।
मैं तो इसी निष्कर्ष पर पहुंचा हूं। ग्रामीण अंचल और देहात का व्यक्ति होने के नाते अपना ही उदाहरण मैंने आज के परिवेश में प्रस्तुत करना उचित समझा।
निसंदेह रूप से राजनीतिक लोग बीमारी के प्रति लापरवाह रहे ।उनका चुनाव में ज्यादा ध्यान रहा।
तथा जनता भी लापरवाह हो चुकी थी। यह सभी
प्रश्न तो स्वाभाविक हैं। जनता के द्वारा पूछे जाने उचित हैं। क्योंकि जिनके हाथों में हमने अपने आप को सुरक्षित और सुरक्षित अनुभव करना था वह हाथ उस समय हमारे साथ नहीं थे। बाद में जब एक में आग ज्यादा फैल गई अर्थात संक्रमण ज्यादा फैल गया तथा चारों ओर त्राहिमाम त्राहिमाम मचा, तब होश आया और सरकार की नींद खुली।
परंतु यदि हम ईख में आग लगे मध्यांतर में सब एक दूसरे को दोषारोपण करते हुए होते कि तुमने यह नहीं किया और तुमने जब नहीं बताया, तुमने वह नहीं किया ? इस तरीके के आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहते तो ईख में आग लगी हुई नहीं बुझाई जा सकती थी। बल्कि वह चतुराई से, बुद्धिमानी से, और संयुक्त प्रयास से बुझाई गई थी।
इस संदर्भ में हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि सरकार की लापरवाही का आरोप वे हताश और निराश राजनीतिक दल लगा रहे हैं जो कि बंगाल चुनाव में अपना खाता तक नहीं खोल पाए हैं या जिनकी बेहद फजीहत वहां पर हुई है। उन्होंने चुपचाप टीएमसी के साथ तालमेल किया और अपनी वोट धीरे से टीएमसी के लिए दे दी या दिलवा दीं। जब उनको यह आभास हो गया कि बंगाल उनके हाथों से निकल गया है तो उन्होंने हताशा में यह कहना आरंभ किया कि जब लोग मर रहे हैं तब सरकार चुनाव करवा रही है और चुनाव में व्यस्त है । इससे एक नकारात्मक संदेश गया, परंतु यह पूछा जा सकता है कि जो राजनीतिक दल केंद्र सरकार पर इस प्रकार के आरोप लगा रहे थे उन्हीं की जिन जिन प्रांतों में सरकारें हैं उन्होंने वहां पर कौन से तीर मार दिए ? कुल मिलाकर आरोप-प्रत्यारोप का समय नहीं है, बल्कि महामारी को मिलकर परास्त करने का समय है।
वर्तमान परिवेश में हमारा सबका नैतिक, राष्ट्रीय, तथा संयुक्त उत्तरदायित्व है, बल्कि प्रथम एवं पावन कर्तव्य है कि हम उस दिशा में कार्य करें जिससे की महामारी रूपी अग्नि बुझाई जा सके ।
अभी आरोप-प्रत्यारोप का और राजनीति करने का समय नहीं है। इसका कदापि तात्पर्य यह भी नहीं कि मैं राजनीतिक लोगों की जिम्मेदारी से या उनसे जनता के द्वारा समुचित प्रश्न पूछने से मना कर रहा हूं ,नहीं मैं सहमत हूं, प्रश्न तो बनता है।लेकिन अभी पूछने का समय नहीं है पहले आग बुझा लो।
सरकार की लापरवाही, इस महामारी में डॉक्टर्स की कमी व उनके द्वारा उपेक्षित व्यवहार, लूट और कमाई के अवसर,ऑक्सीजन की कमी, कोरोना की दवाई नहीं होने की कमी, रेमदेसीविर इंजेक्शन वा फेबीफ्लू नामक दवाई ,(जो कभी स्वाइन फ्लू के लिए बनाई गई थी, )उसको कोरोना के लिए प्रयोग करना , जनता में उसके लिए खरीदने के लिए ब्लैक मार्केटिंग में मजबूर होना, कोरोना की पॉजिटिव रिपोर्ट झूठी अस्पतालों की लैब में तैयार करना ,उसके नाम पर लूट मचा ना। इन समस्त प्रश्नों के संबंध में मैं पहले विस्तृत लेख ‘उगता भारत’ समाचार पत्र के प्रमुख संपादक प्रिय अनुज डॉ राकेश आर्य के कोरोना पीड़ित होने के समय लिख चुका हूं।
देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट
चेयरमैन : उगता भारत
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।