ईसाई मुस्लिम की सर्वश्रेष्ठता की लड़ाई में स्वास्तिक पर प्रतिबंध लगाने का विरोध किया जाना जरूरी
राष्ट्र-चिंतन
स्वास्तिक घृणा नहीं, स्वाभिमान का प्रतीक है
विष्णुगुप्त
हिन्दुत्व की कसौटी पर आधुनिक इतिहास बईमान है, हर हिन्दुत्व की कसौटी को इतिहास में घृणा और हिंसा तथा सामाजिक लांक्षणा को प्रत्यारोपित किया गया है। इस सच को कोई अस्वीकार नहीं कर सकता है कि भूतकाल में जो भी इतिहास लिखे गये वह इतिहास आक्रमणकारी विजैताओं द्वारा लिखे गये, आक्रमणकारियों द्वारा लिखे गये, उन कम्युनिस्टों द्वारा लिखे गये जो विदेशी वैचारिक गुलामी के सहचर रहे हैं और जिन्हें अपनी संस्कृति और सभ्यता के साथ ही साथ अपने गौरव के सभी चिन्ह घृणा, हिंसा और समाज विरोधी दिखते हैं।
अनेक प्रश्नों का उत्तर यह है कि जब इतिहास गुलामी विदेशी मानसिकता के सहचर बन कर लिखा जायेगा, जब इतिहास आयातित हिंसक संस्कृति के सहचर बन कर लिखा जायेगा, जब इतिहास हिन्दुत्व को घृणात्मक, हिंसात्मक और समाज विरोधी मान कर लिखा जायेगा, तब आधुनिक या भूत काल का इतिहास हिन्दू विरोधी या फिर बईमान क्यों नहीं होगा? आधुनिक युग में जब आयातित संस्कृति की हिंसक और घृणात्मक सोच, अभियान और इतिहास के साथ ही साथ कम्युनिस्टों की हिन्दू विरोधी सोच की पोल खुली तब नये शोध होने लगे, इतिहास पर नयी दृष्टि डाली जानी लगी। इतिहास पर नयी सोच और नयी दृष्टि ने यह साबित कर दिया है कि हिन्दुत्व पर इतिहासकारों ने कितनी बडी साजिश की है, हिन्दुत्व को जमींदोज करने या फिर हिन्दुत्व को लांक्षित करने का एक बढकर एक जिहाद हुआ है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि वह जिहाद आज भी जारी है।
इतिहास पर नयी सोच और नयी दृष्टि ने कई साजिशों की पोल खोली है। इन साजिशों में दो प्रमुख साजिशें हैं जिस पर चर्चा होनी स्वाभाविक है। एक नयी सोच और नयी दृष्टि आर्य को लेकर है। विदेशी गुलामी मानसिकता के सहचरों और आयातित संस्कृति के जिहादियों ने इतिहास में यह दुर्भावना फैलायी कि आर्य भारतीय नही हैं बल्कि आर्य बाहरी है, संभवः आर्य जर्मनी या फिर दूसरी जगहों से पलायन कर भारत आये और द्रविड सभ्यता पर कब्जा कर बैठे। कई सर्वेक्षणों और प्राप्त पुरातत्वों के विश्लेषण के बाद आज की नयी ऐतिहासिक दृष्टि है कि आर्य बाहरी नहीं है, आर्य यही के मूल निवासी है, आर्य बाहरी हैं, यह दृष्टि अंग्रेज, मुस्ल्मि आक्रमणकर्ताओं और कम्युनिस्ट विदेशी गुलामी मानसिकताओं की उपज थी। इसी प्रकार स्वास्तिक को लेकर विवाद का समाधान हो गया है। आर्य की तरह ही स्वास्तिक को लेकर भी दुष्प्रचार हुआ, लक्षित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए स्वास्तिक को भी लांक्षित करने की कोशिश हुई। कहा गया कि स्वास्तिक हिन्दुत्व के स्वाभिमान व गर्व का प्रतीक नहीं है, बल्कि स्वास्तिक हिटलर के घृणा और हिंसा का प्रतीक है। हिटलर की स्वास्तिक में गहरी आस्था थी। हिन्दुत्व का प्रतीक स्वास्तिक ही हिटरल का प्रेरणा स्रोत था। हिटलर ने हिन्दू धर्म के इस प्रतीक चिन्ह को अपना कर न केवल जर्मनी में हिंसा बरपायी, कत्लेआम किया बल्कि पूरी दुनिया को द्वितीय विश्व युद्ध में ढकेल दिया, द्वितीय विश्व युद्ध में करोड़ों निर्दोष जिंदगियां बरबाद हुई थी, विध्वंस को प्राप्त की थी, परमाणु हमले जैसे मानव संहार का अपराध हुआ था। सिर्फ इतना ही नही बल्कि यह भी दुष्प्रचारित किया गया कि हिटलर ने यहूदियों के नरसंहार के लिए स्वास्तिक का ही सहारा लिया है, स्वास्तिक को हथकंडा बनाया। अब भी दुनिया के अंदर में स्वास्तिक को लेकर हिटलर की यही सोच बैठी हुई है।
स्वास्तिक पर भी दुष्प्रचार का अब उत्तर मिल गया है। स्वास्तिक को हिटलर की हिंसा और घृणा से जोड कर देखना एकदम ही गलत है और गलत लिखा गया इतिहास को ही प्रचारित करता है। तथ्य यह देख लीजिये। हिटलर यूरोप से बाहर की संस्कृति से बहुत ही कम ही परिचित था, उसके अंदर यूरोप से बाहर की संस्कृतियों और उसके प्रतीक चिन्हों को अपनाने का समय भी नहीं था। हिटलर पर सिर्फ यूरोप के तत्कालीन सामंतों ब्रिटेन, फ्रांस और सोवियत संघ को पराजित करना था और फिर विश्व विजैता बनना था। स्वास्तिक संस्कृत से निकला हुआ शब्द है। हिटलर या फिर हिटलर के नीति निर्देशक तत्व उस समय तक संस्कृत भाषा तक नहीं जानते थे। इसलिए यह कहना पूरी तरह से गलत है कि हिटलर की हिन्दू धर्म में गहरी आस्था थी और स्वास्तिक को हिन्दुत्व का प्रतीक समझ कर ही आत्मसात किया था। हिटलर के जिस स्वास्तिक की चर्चा होती है वह सही में स्वास्तिक है ही नहीं। जब वह स्वास्तिक है ही नहीं तक क्या है? जिस चिन्ह को हिटलर का स्वास्तिक कहा जाता है वह चिन्ह का नाम ‘हेकन क्रूज ‘ है। ‘हेकन क्रूज ‘ शब्द जर्मनी भाषा का है। ‘हेकन क्रूज ‘ का जर्मन अर्थ ‘क्राॅस‘ है। क्राॅस यीशु से जुडा हुआ है। क्राॅस को ही हिटलर ने हथकंडा बना कर यहूदियों का नरसंहार किया था। वास्तव में हिटलर ने यह स्थापित कर दिया था कि यहूदियों ने ही यीशु को सूली पर चढा कर मारा था। हिटलर की यह उक्ति काम कर गयी। जर्मनी और उसके प्रभाव वाले देशों में यहूदियों के खिलाफ ईसाई जनमत तैयार हुई और फिर यहूदियों का नरसंहार पूरी दुनिया के लिए एक जख्म के रूप में शामिल हो गया। प्रायः हर ईसाई शासक और ईसाई चर्च उस काल में यीशु की हत्या के लिए यहूदी को अपराधी मान कर उस पर हिंसा बरपाते थे।
अब यहां यह प्रश्न भी उठता है कि आखिर हिटरल के ‘हेकन क्रूज ‘ को स्वास्तिक नाम क्यों पडा या दिया गया, इसके पीछे कोइ्र्र साजिश थी क्या, और यह साजिश आज तक जारी है क्या? हिटलर के हेकन क्रूज को स्वास्तिक का नाम एक साजिश के तहत ही दिया गया। इसके पीछे चर्च की साजिश थी। चर्च के एक पादरी ने जब हिटलर के हेकन क्रूज को स्वास्तिक नाम दिया था तब उसके पीछे भारत को ईसाई देश बनाने और हिन्दुत्व को पूरी दुनिया में बदमान करने का लक्ष्य काम कर रहा था। हिटलर का हेकन क्रूज टेढा और मुडा था। अंग्रेज पादरी जेम्स मर्फी की यह करतूत और साजिश थी। अंग्रेज पादरी जेम्स मर्फी ने हिटलर की पुस्तक ‘ मीन कैम्फ ‘ का अंग्रेजी अनुबाद किया तो उसने हेकन क्रूज को स्वास्तिक करार दे दिया था। अंग्रेज पादरी की उसी करतूत को पूरी दुनिया ने सही मान लिया। जबकि अंग्रेज पादरी जेम्स मर्फी कहीं से भी स्वतंत्र विचार वाला शख्त नहीं था। वह तो चर्च का गुलाम था। चर्च के हित में ही वह काम करता था। हेकन क्रूज को स्वास्तिक नाम क्यों दिया उस पर जेम्स मर्फी ने कभी स्पष्टीकरण नहीं दिया। जब कोई किसी भी चीज का नया नाम देता है तो फिर उस पर अपना चिचार भी देता है जिसे स्पष्टीकरण के तौर पर जाना जाता है। अगर जेम्स मर्फी ने ईमानदारी नहीं दिखायी तो फिर उसे बईमान और साजिश कर्ता क्यों नहीं कहा जाना चाहिए।
हेकन क्रूज की जगह स्वास्तिक को प्रतिबंधित करने का अभियान दुनिया के अंदर में चलता रहता है, यह अभियान यहूदियों को न्याय दिलाने के लिए नहीं या फिर दुनिया को सचेत करने के लिए नहीं चलता है बल्कि इसके पीछे भी एक रहस्यमय एजेंडा है। इस एजेन्डे का समझ बुझ कर भी नजरअंदाज करने का खेल खेला जाता है। जब-जब अमेरिका और यूरोप के अंदर में राष्ट्रवाद का प्रकोप बढता है तब-तब स्वास्तिक पर प्रतिबध लगाने की मांग उठती है। इसके पीछे मुस्लिम जिहादी समर्थक हैं। मुस्लिम जिहादी समर्थक पूरे यूरोप और अमेरिका को इस्लाम के शासन मे तब्दील करना चाहते हैं। मुस्लिम जिहादियों के निशाने पर भारत भी है।
अभी-अभी अमेरिका के मेरीलैंड प्रांत के विधान सभा में एक विधेयक चर्चा के लिए लाया गया है जिसमें मांग की गयी है कि स्वास्तिक चिन्ह को प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए। मेरीलैंड विधान सभा में जो प्रतिबंध के लिए विधेयक लाया गया है उसके पीछे अमेरिका के सेक्युलर जमात की कारस्तानी बतायी जाती है। डोनाल्ड ट्रम्प के समर्थको के राष्ट्रवाद को कुचलने के लिए यह विधेयक लाया गया है। दरअसल मुस्लिम जिहादियों के कारण अमेरिका का राष्ट्रवाद गहरे संकट में है। जो बाइडेन की जीत के बाद मुस्लिम जिहादी अमेरिका में अपने लिए सुरक्षित वातावरण चाहते हैं। जबकि अमेरिका के राष्ट्रवादी यह नहीं चाहते कि उनका देश मुस्लिम जिहादी देश में तब्दील हो जाये। लेकिन अमेरिका के अंदर मे ईसाई और मुस्लिम सर्वश्रेष्ठता की लडाई में हिन्दुत्व के स्वाभिमान के प्रतीक स्वास्तिक को प्रतिबंधित करना कहां से उचित है? अमेरिका में लाखों हिन्दुओं ने इसके खिलाफ आवाज उठायी है, अमेरिकी हिन्दुओं ने इसके पीछे हिन्दुत्व को बदमाना करने की साजिश बतायी है, अमेरिकी हिन्दुओं का सीधा कहना है कि इसके कारण हिन्दुओं की चिंता बढी है। मैरी लैंड प्रांत की विधान सभा की इस करतूत पर अमेरिकी प्रशासन के शीर्ष नेतृत्व को सक्रिय और सतर्क होना होगा। अमेेरिकी और भारतीय संबंध भी बिगड सकते हैं। हिन्दुओं की नाराजगी भी अमेरिका के लिए कोई अच्छे संकेत नहीं होंगे।
मुख्य संपादक, उगता भारत