बिना पूछे या बिना माँगे किसी को सलाह न दें। आपत्ति काल में या जिज्ञासु को सलाह दे सकते हैं।
एक बार कुछ बुद्धिमानों ने बैठकर मीटिंग की। चर्चा में यह विषय निकल आया, “यह पता लगाया जाए, कि संसार में अक्ल कितनी है?” खूब तर्क वितर्क हुआ। परंतु कोई निर्णय नहीं हो पाया, कि संसार में अक्ल कितनी है? फिर यह सोचा गया, कि चलो 6 महीने तक संसार में घूम घूम कर पता लगाएं। फिर 6 महीने बाद हम यहां दोबारा मिलेंगे और इस बात का निर्णय करेंगे। मीटिंग समाप्त हो गई। सब लोग खोजबीन करने के लिए संसार भर में फैल गये।
फिर 6 महीने के बाद दोबारा मीटिंग हुई, और सब ने अपना अपना अनुभव सुनाया। एक अनुभवी वृद्ध व्यक्ति ने कहा — संसार में कुल मिलाकर डेढ़ अक्ल है। लोगों ने कहा — या तो एक कहिए, या दो कहिए। इस डेढ़ अक्ल का क्या अर्थ है? यह तो हमारी समझ में नहीं आया। हमें समझाइए। तो उस वृद्ध अनुभवी व्यक्ति ने कहा, कि — मैंने संसार में बहुत लोगों का परीक्षण किया। अधिकांश लोग ऐसा मानते हैं, कि मेरी अक्ल तो पूरी है, और बाकी सब संसार के लोगों की मिलाकर मुझसे आधी है। इस प्रकार से डेढ़ अक्ल हुई।
यह लघुकथा आपने शायद पहले भी पढ़ी/सुनी होगी। संसार के लोगों को देखने से ऐसा ही लगता है, कि प्रायः प्रत्येक व्यक्ति अपनी बुद्धि को पूर्ण अर्थात सबसे अधिक मानता है, और दूसरों की बुद्धि को आधी अर्थात अपनी बुद्धि से बहुत कम मानता है। इस कारण से वह किसी की सलाह सुनना पसंद नहीं करता। जब भी आप किसी को सलाह देंगे, तो आप देखेंगे, कि “प्रायः उसे आपकी सलाह सुनने में कोई विशेष रुचि नहीं है। उसके चेहरे के लक्षणों से भी पता चल जाता है, कि वह आपकी सलाह सुनना नहीं चाहता। बस औपचारिकता निभाने के लिए सुन रहा है।”
जब आपकी आयु 50 वर्ष से अधिक हो जाए, 55/60 या इससे भी अधिक हो जाए, तब तो इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए। जवान लोग तो वैसे ही जवानी, ताकत और अपनी अक्ल के नशे में डूबे रहते हैं। वे किसी वृद्ध अनुभवी व्यक्ति की बात सुनना पसंद ही नहीं करते। उसे आउट ऑफ डेट, पुराने विचारों का, या दकियानूसी मानते हैं। इसलिए बड़ी उम्र में, अपने घर में, बाजार में, रेल में, बस में, माॅल में, सड़क आदि पर दूसरों को सलाह देने से जितना बचें, उतना ही आपके लिए हितकर और शान्तिदायक होगा। यदि किसी को सलाह देने की आपकी तीव्र इच्छा हो, और आप स्वयं को रोक नहीं पा रहे हों, तो सलाह देने से पहले उससे पूछ लें, “मैं आपको एक सलाह देना चाहता हूं, क्या आप सुनना पसंद करेंगे?” यदि वह ‘हां’ कहे, तो उसे सलाह देवें, अन्यथा नहीं। वैसे यह नियम सभी उम्र वालों पर लागू होता है। बिना पूछे सलाह तो कोई भी व्यक्ति न दे। यह सभ्यता का एक नियम है।
इसका एक अपवाद यह है — यदि कहीं आग लग गई हो, या ऐसी ही कोई ख़तरनाक परिस्थिति हो, तो ऐसे अवसर पर तो बिना मांगे सलाह दे सकते हैं, बल्कि वहां आग बुझाने में सहयोग करना भी कर्तव्य बनता है। इसलिए ऐसे अवसरों पर तो आग बुझाने की सलाह के साथ साथ आग बुझाने आदि कार्यों में तुरंत सहयोग भी अवश्य देना चाहिए।
इसका दूसरा अपवाद यह है — यदि कोई आपका विद्यार्थी हो, आप उसके आचार्य हों, और विद्यार्थी जिज्ञासु हो, आप पर बहुत श्रद्धा रखता हो, आप की विद्या योग्यता अनुभव ज्ञान आदि गुणों से बहुत अधिक प्रभावित हो, आप से बहुत कुछ सीखना चाहता हो, तो ऐसे व्यक्ति को भी आप बिना मांगे सलाह/ सुझाव दे सकते हैं। उसे बहुत सी बातें सिखा सकते हैं।
— स्वामी विवेकानंद परिव्राजक, रोजड़, गुजरात।