भारतीय धर्म संस्कृति और इतिहास की पवित्रता में विश्वास रखने वाले हम सब भारतवासियों के लिए यह बहुत गर्व और गौरव का विषय है कि भारत ने विश्वगुरु के रूप में एक समय सारे विश्व को मर्यादा व्यवस्था और शांति का पाठ पढ़ाया था। भारत के विश्व गुरु रहते हुए संपूर्ण संसार व्यवस्थित रहा। सर्वत्र शांति का वास रहा और लोगों में अधिकारों की लड़ाई न मचकर कर्तव्य निर्वाह का आदर्श गुण उनके चरित्र का एक आवश्यक अंग बनकर उनका साथ देता रहा।
इस संदर्भ में निम्नलिखित तथ्यों पर जब गंभीरता पूर्वक, गहनता पूर्वक, ध्यान लगाकर परिशीलन एवं अनुशीलन करोगे तो पाओगे कि अतीत में विश्व में भारतवर्ष विश्व गुरु वैसे ही नहीं रहा बल्कि भारत की परंपरा, मर्यादा, शिक्षा, सौम्यता, चरित्र ,वीरता ,साहस, सौर्य, संस्कृति ,विचारधारा , भक्ति, आदर्श, सतीत्व, ब्रह्मचर्य, पुत्र धर्म के मर्मज्ञ, पित्र धर्म के सुविज्ञ, भ्रातृ भाव से ओतप्रोत भाई, वैदिक विद्वान, धर्मात्मा राजा, गंगा जैसी पवित्र नदी, हिंदी और संस्कृत में, पढ़ाई, दानवीर, कर्मवीर,और सभ्यता सभी सर्वोत्कृष्ट रहे हैं। इसीलिए भारत को देखने के लिए और भारत पर आक्रमण करके कब्जा करने के लिए पिछले करीब 14 सौ वर्षों (आपको ध्यान होगा पहला आक्रमण सन 712 में मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध के नरेश दाहिर सेन पर किया था, लेकिन अरब आक्रमणकारियों का प्रमाणिक पहला आक्रमण इतिहास में 638 ईसवी में हुआ था) से प्रयास होते रहे हैं।
विचारणीय बिंदु हैं कि …
क्यों भारत की सभ्यता संस्कृति सर्वोत्तम रही?
क्यों भारत विश्व गुरु रहा ?
क्यों भारत विश्व शिरोमणि रहा?
1. महर्षि दयानंद ने अमर ग्रंथ ‘सत्यार्थ प्रकाश’ की रचना करते हुए प्रथम समुल्लास में ईश्वर के 100 से अधिक नामों की व्याख्या की है। उन्होंने लिखा है कि यह ईश्वर के सभी नाम गुणवाचक हैं। उसका केवल एक निज नाम है ,वह है – ओ३म।
इसलिए चार वेद और छह शास्त्रों में चाहे उसे किसी नाम से कोई पुकार रहा हो लेकिन उसका एक नाम अर्थात निज नाम ओ३म है।
इस ओ३म नाम जैसा पवित्र और सार्थक कोई अन्य नाम विश्व में नहीं है।
2 – दुनिया में बहुत सारे पुत्र पैदा हुए, हर कोई व्यक्ति किसी न किसी का पुत्र है। लेकिन माता-पिता की सेवा करने में जो श्रवण का प्रथम स्थान है, ऐसा स्थान किसी और पुत्र का इतिहास में नहीं है।
3 – विश्व में कितने ताल, सरोवर, नदी होंगे, लेकिन गंगा के जैसा पवित्र नीर और कहीं नहीं है। जो हमारे द्वारा वर्तमान में अनेकों गंदे नालों को डालने के पश्चात और शवों को बहा देने के पश्चात भी अपने पावन होने के गुण को नहीं छोड़ रहा है। आज भी गंगाजल बोतल में कई महीने तक सुरक्षित रहता है,सड़ता नहीं है।
4 – फरसा बहुत लोगों ने हथियार के रूप में प्रयोग किया होगा, लेकिन परशुराम जैसा फरसाधारी और कोई नहीं है।
5 – जिस दिन से राज्य व्यवस्था प्रारंभ हुई और उसमें प्रधानमंत्री बनाने की प्रथा शुरू हुई उस दिन से कितने ही राजाओं के कितने ही प्रधानमंत्री उनकी राज्य व्यवस्था के नष्ट होने तक बने होंगे लेकिन देखिए विश्व इतिहास में महामति चाणक्य जैसा कोई प्रधानमंत्री नहीं है। ‘राष्ट्र प्रथम’ का उद्घोष करने वाला यह प्रधानमंत्री विश्व इतिहास में अद्वितीय है, जिसके इस आदर्श गुण को अपनाकर काम करने की अपेक्षा लोग आज तक अपने राजनीतिज्ञों से रखते हैं।
6 – भूमंडल पर कितनी ही सती हुई होंगी लेकिन माता सीता जैसी कोई सती नहीं। रावण के यहां करीब 11 महीने रही थीं। प्रत्येक मनुष्य के अंदर बुराई ही नहीं होती बल्कि कुछ अच्छाई भी होती है तो हम रावण के यहां एक उजले पक्ष को भी प्रस्तुत करना चाहते हैं कि उन्होंने 11 महीने के अंदर अशोक वाटिका में सीता माता के रहते हुए उनके साथ किसी प्रकार की कोई बदतमीजी अथवा गलत हरकत नहीं की थी ।उनको मनाने और समझाने का तो प्रयास किया लेकिन जोर-जबर्दस्ती कुछ नहीं हुई।
बाल्मीकि रामायण में यह भी उल्लेख नहीं है कि माता सीता को रामचंद्र जी ने वनवास दे दिया था ,अथवा घर से निकाल दिया था। इसलिए वह धोबी व उसकी पत्नी की कथा भी भ्रामक एवं कल्पित है कि धोबी व धोबन का संवाद सुनने के बाद श्री राम ने माता सीता को घर से निकाला हो , और उनकी अग्नि परीक्षा भी हुई हो।यह केवल भ्रांति मात्र है।
7 – इतिहास उठा कर के देख लीजिए 11 अक्षौहिणी सेना, जो कौरवों की अर्जुन के सामने खड़ी थी, सबको तो नहीं लेकिन अधिकतर को मारने वाला एकमात्र अर्जुन था तो कहना चाहिए अर्जुन जैसा वीर धनुर्धर भी विश्व में और कोई नहीं।
8 – रावण को युद्ध में परास्त करने के बाद रावण के द्वारा शासित भूमंडल पर श्रीराम का राज रहा।
जो आज का रूस देश है इसको त्रेता युग में सेंधव देश कहते थे। इसमें रावण के पुत्र नरांतक का राज्य था। इसके अलावा जो आज का अमेरिका है इसमें रावण के पुत्र अहिरावण का राज्य था ।जिसको उस समय पाताल देश कहते थे ,अर्थात जो पैरों की तरफ है। इनको मारने के बाद रामचंद्र जी ने लंका का राज विभीषण को दिया और शेष भूमंडल पर स्वयं राज्य किया ।मरते समय चारों भाइयों के जो 8 पुत्र थे, उन सबको राज्य को बराबर – बराबर बांट दिया था। उस समय श्री राम के राज में कहीं कोई अपराध किसी प्रकार का नहीं होता था। लोग बिना ताला लगाए सोते थे ।इसलिए उसको आज तक भी रामराज कहते हैं तो राम जैसा राज कहीं नहीं।
9 यहीं पर प्रासंगिक है कि अपने भाई राम का साथ देने वाला लक्ष्मण भी बहुत वीर पुरुष था।उसके जैसा उस समय और कोई वीर नहीं था।भाई के प्रति उसकी भक्ति जैसी थी वह कहीं अन्यत्र नहीं मिलती।
अपनी भाभी सीता को माता के समान मानते हुए वन में रहा। सीता को रावण द्वारा अपहरण करने के पश्चात उनके आभूषणों की पहचान जब कराई गई तो लक्ष्मण ने कहा था मैं केवल पैरों के नूपुर पहचानता हूं क्योंकि मैं केवल पैरों को ही देखता था – चरण स्पर्श करते समय।
क्या यह आदर्श विश्व के किसी अन्य देश में मिलता है ?
10 – गोपालक बहुत हुए हैं विश्व में। प्राचीन काल में गाय का लेनदेन वर्तमान समय में प्रचलित रुपए की तरह होता था। यही परंपरा आज भी सूक्ष्म रूप में हमारे समाज में विवाह के समय गौ दान के रूप में देखी जाती है।गौवों में बहुत अच्छी गाय हुआ करती थी। लेकिन कामधेनु जैसी गाय नहीं।
कामधेनु इसलिए कहते हैं कि जब भी दूध की आवश्यकता काम या इच्छा महसूस होती थी तभी वह दूध दे दिया करती थी। दूध की काम या इच्छा को पूरी कर दिया करती थी।
इतनी बात तो हमें भी याद है कि बहुत सी गाय बचपन में हमने भी देखी हैं , जिनका दूध जिस समय चाहो निकाल लो । यदि 2:00 बजे दुग्ध निकाला है तो 4:00 बजे किसी अतिथि के आने या बच्चे की इच्छा पर फिर निकाल लिया करते थे।
वह गाय कुछ नहीं कहती थी।जैसे एक मां अपने पुत्र को इच्छा के अनुसार दूध पिलाती रहती है ,उसी प्रकार से गौ माता भी दूध पिलाती रही है । उनको भारतवर्ष में गौमाता कहने का प्रचलन वैसे ही नहीं बना।
लेकिन गायों की सेवा करने में जो प्रथम पुरुष है वह नंद बाबा है ।नंद बाबा जैसा कोई गौ सेवक वा गोपालक नहीं।
11- बहुत योगी यहां हुए लेकिन श्री कृष्ण जैसा कर्म योगी कोई नहीं। जिन्होंने कर्म को ही योग परिभाषित कर दिया।
12- लेकिन यहां यह भी कहना प्रासंगिक है कि रावण को जितना अभिमान था वह किसी में नहीं।
रावण को दशानन कहते थे।कुछ मूर्खों ने तो इसका अर्थ यह बना लिया को उसके 10 सिर थे और 10 मुख थे।
जबकि ऐसा नहीं था ।एक मत के अनुसार चार वेद और छह शास्त्र उसको कंठस्थ थे अर्थात उसके मुख में जुबान पर रखे थे। दूसरे मत के अनुसार दसों दिशाओं में उसका राज्य था, और उसे दसों दिशाओं का ज्ञान भी था इसलिए दशानन कहते थे।परंतु अभिमान के कारण मिट गया।
13 – चाहे अपने आप को कोई कितना विद्वान समझता रहे लेकिन नारद जैसे कोई विद्वान् नहीं।
14 – आपने करण का नाम सुना होगा।
करण एक दानवीर था उसके जैसा कोई दानी नहीं था।
चाहे किसी के पास कितना ही धन हो परंतु दानवीर यदि कोई है तो केवल कर्ण। जिसने अपने कवच और कुंडल भी दान कर दिए थे। यद्यपि वह जानता था कि उसे महाभारत के भावी युद्ध में इन की बहुत आवश्यकता होगी, परंतु उसने प्राणों की परवाह न करके अपने उच्च आचरण और संस्कारों का परिचय देते हुए उन्हें भी दान कर दिया।
15 – महर्षि दयानंद जैसा वेदों का और कोई ज्ञाता व विद्वान नहीं मिलता।
16 – हनुमान को अतुलित बलधारी कहा जाता है।
जब लक्ष्मण को शक्ति लगी और हिमालय पर्वत से संजीवनी बूटी लेने के लिए हनुमान जी को भेजा गया छोटी सी बूटी लानी थी लेकिन बहुत सारी बूटी लेकर के विमान में बैठकर आकाश के रास्ते से लंका पहुंच गए थे। उनकी भुजाओं में जितना बल था उतना बल किसी और की भुजाओं में नहीं देखा गया।
17 – लेकिन यहां यह कहना भी उचित होगा कि अंगद के पैर में जितना बल था उतना बल किसी और के पैर में नहीं।
18 – हिंदी जैसी कोई समृद्ध भाषा नहीं है।
हिंदी में नाना, मामा, चाचा, ताऊ ,फूफा ,बहनोई, सबके लिए अलग-अलग संबोधन है । प्रत्येक संबोधन संबंध को विशेषता प्रदान करता है। उसको पहले से अलग बनाता वा बताता है ।ऐसी समृद्धता तो केवल हिंदी में ही है ।
अंग्रेजी की तरह सभी को अंकल कहकर ही काम नहीं चल सकता। अंकल किसी रिश्ते को विशेषता प्रदान नहीं करता। हिंदी संस्कृत से निकली है ।संस्कृत और भी समृद्ध भाषा है इसलिए हमारी हिंदी और संस्कृत की अतिरिक्त अन्य कोई भाषा इतनी समृद्ध नहीं है।
19 – उत्तर में किरीट हिमालय, दक्षिण में पैर धोता सागर, जिसकी सभ्यता, संस्कृति सर्वोत्कृष्ट ऐसा भी कोई देश विश्व पटल पर नहीं है ।वह केवल भारत है।
20 – भारतवर्ष में सदैव से यह कहा जाता रहा है कि झूठ नहीं बोलना चाहिए। असत्य को छोड़ देना चाहिए और सत्य को धारण करना चाहिए ,क्योंकि झूठ बोलना पाप है। इसलिए भारत के लोग पाप से बचकर रहते थे ।झूठ नहीं बोलते थे।
21 – भारतवर्ष में रुई कपास पैदा होती थी। रुई से कपड़े खादी के बनाए जाते थे। बंगाल की मलमल दूर-दूर देशों में बिकती थी विदेशी मुद्रा का भंडार था। मशहूर थी खादी भारतवर्ष की।खादी को पहनने के बाद मनुष्य की आभा ही अलग होती थी। इसलिए खादी जैसा भेष नहीं।
22 – ऐसी कड़वी भाषा नहीं बोलनी चाहिए जो दूसरों के हृदय को छील दे या उसमें घाव कर दे। यह भारत का हमेशा से संयम रहा है।दूसरे को ठेस पहुंचाने वाले शब्दों में हमेशा संयम रखना चाहिए। भारतवर्ष ने प्रत्येक व्यक्ति की निजता और गरिमा का सम्मान करना सिखाया। जिससे प्रत्येक व्यक्ति की स्वतंत्रता सुरक्षित रहती थी।
23 – दुर्योधन जैसी ना नहीं करनी चाहिए।
श्री कृष्ण को यह अच्छी तरीके से मालूम था कि दुर्योधन के पास 5 गांव का प्रस्ताव लेकर के जाने पर भी वह मानेगा नहीं ।परंतु श्री कृष्ण जी गए थे। जिससे कि संसार उनको भविष्य में इतिहास में दोषी ना सिद्ध करें । लेकिन दुर्योधन उस समय को नहीं समझ पाया और बिना युद्ध किए सुई की नोक के बराबर भूमि देना उसने स्वीकार नहीं किया। अगर वह ऐसा कर देता तो महाभारत नहीं होता और भारतवर्ष गारत ना होता। भारतवर्ष विश्व गुरु के दर्जे से समाप्त न होता।यह दुर्योधन की हठ थी, जिसके कारण महाभारत होने के बाद भारतवर्ष का गौरव विश्व गुरु का पद समाप्त हुआ।
24 – एक और उदाहरण देखिए राजा हरिश्चंद्र जैसा सत्यवादी कोई नहीं, जिसने यदि किसी बात के लिए हां कर दी तो उसकी हमेशा हां ही रहेगी।
25 – गौतम बुद्ध एक अच्छे महात्मा थे उनके जैसा कोई अन्य महात्मा नहीं।
26- महाराणा प्रताप जैसा और कोई देशभक्त बहादुर नहीं है।
27 – सुभाष चंद्र बोस जैसा वीर भी और कोई नहीं है।
महात्मा गांधी एवं नेहरू द्वारा उपेक्षित करने के बाद कांग्रेस के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देकर के विदेश में जाकर के सेना एकत्रित करना और फिर अंग्रेजों पर आक्रमण करना, यह बहुत बड़ी बात थी कल्पना करके देखिए।
28 – भीम जैसा कोई बली नहीं।
29 – जिस प्रकार राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने अपने पुत्र राम को वनवास गमन बिना किसी विरोध के स्वीकृति दे दी थी ऐसी कोई मां दूसरी नहीं ।
अपने पति से लड़ाई झगड़ा नहीं किया और न हीं अपनी सौतन कैकेयी से कोई भला बुरा कहा।वर्तमान युग की जैसी मां यदि कौशल्या रही होती तो वह यह कहती कि मैं अपने पुत्र को वनवास नहीं जाने दूंगी ।वह उसको अपना पुत्र बताती।
(आर्य भजनोपदेशक पंडित लखमीचंद जी की कविता के आधार पर भावार्थ)
प्रस्तुतकर्ता : देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट
चेयरमैन : ‘उगता भारत’ समाचार पत्र