आचार्य श्री विष्णुगुप्त
किसी की मौत पर खिलाफ में लिखना लोगो को अच्छा नहीं लगता है, मुझे भी अच्छा नहीं लगता पर शहाबुद्दीन जैसे गुंडे की बात हो तो फिर लिखना जरूरी हो जाता है। मै तो लोगो की मृत्यु उपरांत भी उनकी करतूतों और करास्तनियो से सभ्य समाज को जागरूक करते रहा हू। शहाबुद्दीन के आतंक और गुंडा राज को कौन नहीं जानता है। थोड़ा सा भी जागरूक व्यक्ति शहाबुद्दीन के आतंक, गुनाह, गुंडा राज को जरूर जनता है।
…… आज मुझे चन्दा बाबू की बहुत याद आ रही है। चन्दा बाबू की वीरता और निडरता अनुकरणीय है, प्रेरणादाई है, सभ्य समाज को गुंडे राज से लडने के लिए शक्ति देता है। चन्दा बाबू ने रंगदारी देने और शहाबुद्दीन के गुंडा राज के सामने हथियार डालने से साफ इनकार कर दिया था। शहाबुद्दीन को यह कैसे बरदाश्त होता, उसने चन्दा बाबू के तीन बेटों का अपहरण करा कर अपने घर मंगवा लिया। चन्दा बाबू के एक बेटा किसी तरह से भाग निकला पर चन्दा बाबू के दो बेटों को तेजाब डालकर जला कर मर दिया था। बाद में शहाबुद्दीन ने चन्दा बाबू के तीसरे बेटे जिसकी शादी कुछ दिन पहले ही हुई थी को सरेआम गोलियों से मरवा दिया था।
…… जेएनयू के छात्र लीडर और आईपीएफ माले के नेता चन्द्रशेखर जब सिवान में सक्रिय हुआ और राजनीति शुरू की तो फिर शहाबुद्दीन को यह स्वीकार नहीं हुआ। चन्द्रशेखर की भी उसने सरेआम हत्या कराई थी। चन्द्रशेखर की हत्या के बाद राजनीतिक तूफान आया था, आईपीएफ ने शहाबुद्दीन के खिलाफ जोरदार राजनीतिक मुहिम चलाई थी पर शहाबुद्दीन का बाल भी बांका नहीं हुआ। चन्द्रशेखर की बूढ़ी मां न्याय की आस में लड़ते लड़ते स्वर्ग चली गई।
…….शहाबुद्दीन के खिलाफ सरेआम कोई बोल नहीं सकता था। सरेआम बोलने का अर्थ अपनी मौत का सरेआम आमंत्रण देना था। जिस किसी ने भी मुंह खोला उसकी सरेआम हत्या होती थी। गवाह बनने का साहस करने वाले भी सरेआम मारे जाते थे। प्रशासनिक अधिकारी और पुलिस उसके लिए चमचे के लायक होते थे। लालू के जंगल राज का साथ होने के कारण प्रशासनिक अधिकारी और पुलिस लाचार होती थी। एक बार उसने पुलिस अधिकारियों को भी बन्धक बना लिया था। कहा तो यहां तक जाता है कि शहाबुद्दीन से बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव तक डरते थे और मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण संरक्षण देने का काम करते थे।
….. न्याय व्यवस्था की कमी के कारण और मुस्लिम वाद के कारण शहाबुद्दीन को जमानत मिल गई थी।उसने गुंडा राज का खौफनाक प्रदर्शन किया। पांच हजार से ज्यादा कारे और हथियार बन्द गुंडे रिहाई मार्च में शामिल थे। अपनी जमानत रिहाई को उसने अपनी गुंडा शक्ति प्रदर्शन में तब्दील कर दिया। गुंडा रिहाई प्रदर्शन को देखकर बिहार के लोग कांप उठे थे फिर से लालू के गुंडे राज की वापसी से डर गए थे। देशभर में खलबली मची थी, न्याय व्यवस्था की खिल्ली उड़ी थी। सुप्रीम कोर्ट ने जमानत रिहाई को नकार कर न्याय की रक्षा की थी। फिर से शहाबुद्दीन को जेल में डाला गया था। इस बार बिहार नहीं बल्कि तिहाड़ उसकी जेल थी।
……. बिहार की नीतीश कुमार की सरकार की भी शहाबुद्दीन पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं थी। बिहार में राष्ट्रपति शासन लागू नहीं होता और सीके अनिल जैसे ईमानदार आईएएस अधिकरी नहीं होते तो फिर शहाबुद्दीन को जेल में डालना और सजा दिलाना मुश्किल था। सीके अनिल उस समय सिवान के डीएम थे, उन्होंने न केवल शहाबुद्दीन को जेल भेजा बल्कि सबूत भी मजबूत लिए। आईएएस अधिकारी सीके अनिल को बाद में परेशानी भी हुई, उन्हें महाराष्ट्र पलायन करना पड़ा था।
……आज हमारे बीच चन्दा बाबू जिंदा नहीं है, चन्द्रशेखर की प्रेरणादाई मा भी जिंदा नहीं है। पर आज भगवान के न्याय से चन्दा बाबू और चन्द्रशेखर की मा सहित वैसे सैकड़ों लोगों की आत्मा को शान्ति मिली होगी, जो शहाबुद्दीन के गुंडा राज के शिकार हुए थे।
…. आइए आज हम शपथ लेते हैं कि चन्दा बाबू और चन्द्रशेखर की मा की तरह संघर्ष करेंगे, शहाबुद्दीन जैसे गुंडे को जेल में भेजवा कर सजा दिलाएंगे, सभ्य समाज को शहाबुद्दीन जैसे गुंडे राज से मुक्ति दिलाएंगे।
…. चन्दा बाबू और चन्द्रशेखर की मा की आत्मा को एक बार फिर मेरा प्रणाम।
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