पश्चिम बंगाल को कश्मीर बनने से रोको : हिंदुओं की जान माल की रक्षा कौन करेगा ?

राष्ट्र चिंतन

आचार्य श्री विष्णुगुप्त
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पूर्व प्रधनमन्त्री चंद्रशेखर की एक वीरता पश्चिम बंगाल की हिन्दुओं के खिलाफ टीएमसी और मुस्लिम हिंसा की कसौटी पर याद आ रही है। उस समय तमिलनाडु की द्रमुक और करुणानिधि की सरकार लगातार लिट्टे को संरक्षण दे रही थी और विघटन कारी बोल बोल रही थी। चन्द्रशेखर ने चेतावनी भी दी थी पर करुणानिधि नहीं माने। अपनी सवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए चन्द्रशेखर ने करुणानिधि सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया। करुणानिधि की सारी हेकड़ी गुम हो गई। पश्चिम बंगाल में संवैधानिक व्यवस्था का लगातार पतन हो रहा है। हिंसा और कतलेआम जैसी घटनाएं संवैधानिक व्यवस्था की मुंह चिढ़ा रही है पश्चिम बंगाल की टीएमसी और मुस्लिम परस्त हिंसा को राज्य सरकार का समर्थन प्राप्त है।
पश्चिम बंगाल की वर्तमान हिंसा को हिन्दुओं कतलेआम के तौर पर ही देखा जाना चाहिए। पश्चिम बंगाल की वर्तमान स्थिति कश्मीर की तरह बन चुकी है। एक गहरी साजिश है। यह गहरी साजिश कश्मीर की तरह ही पश्चिम बंगाल से राष्ट्र भक्त जनता को भगाने और पलायन करने के लिए मजबूर करने की है। इस साजिश में टीएमसी और कट्टर सोच वाले मुस्लिम संगठन तथा बांग्लादेशी घुसपैठिए शामिल हैं। इसकी पृष्ठभूमि चुनाव पूर्व बन गई थी। जैसे ही चुनाव सम्पन्न हुआ और टीएमसी ममता बनर्जी की जीत की घोषणा हुई वैसे ही हथियार बन्द टीएमसी के गुंडे और मुस्लिम परस्त बांग्लादेशी घुसपैठिए भाजपा कार्यकर्ताओं और हिन्दुओं पर टूट पड़े। हिंसक कतलेआम की घटनाएं सरेआम हुई हैं। भाजपा कार्यकर्ताओं पर हिंसा को चुनावी राजनीतिक दुष्परिणाम कहा जा सकता है पर हिन्दुओं के खिलाफ बर्बर, खौफनाक हिंसक घटनाओं को आप कैसे जस्टिफाई कर सकते हैं?
हिंसा और कतलेआम कितना भयानक है, कितना खौफनाक है, इसका अंदाजा इन तथ्यों से लगाया जा सकता है। हिन्दुओं के हजारों दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया, हजारों घरो को आग के हवाले कर दिया गया, उनकी संपतिया लूट ली गई। दो दर्जन से अधिक हिन्दुओं को मौत का घाट उतार दिया गया। दर्जनों हिन्दू महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना को सरेआम अंजाम दिया गया। हिन्दू महिलाओं की भी हत्या हुई है। उत्तम घोष की पत्नी का बयान है कि मुस्लिम गुंडे सरेआम उनके घरों में घुस गए, उनके पति को घर के खीच कर ले गए और बेरहमी से मार डाला, उनके पति का अपराध सिर्फ बीजेपी की रैली में जाना भर था।
हिन्दू संगठनों का दावा है कि करीब एक लाख से अधिक हिन्दू पलायन और भागने के लिए बाध्य हुए हैं। पलायन करने वाले हिन्दू असम, बिहार, झारखंड और यूपी की ओर जाने के लिए बाध्य हुए है, पश्चिम बंगाल में भी सुरक्षित जगहों पर चले गए हैं। सीधी सी बात है कि जब जान, माल और इज्जत की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं होगी तब हिन्दू पश्चिम बंगाल में क्यो रहना चाहेंगे। हिन्दू क्या पश्चिम बंगाल में अपनी जान, माल और इज्जत लुटाने के लिए रहेंगे? पश्चिम बंगाल की पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी पहले की तरह ही उदासीन और तमाशबीन बने हुए हैं।
कश्मीर का इतिहास पश्चिम बंगाल में दोहराया जा रहा है, कश्मीर की तरह ही पश्चिम बंगाल में हिन्दुओं के साथ राजनीतिक घटनाए हो रही है। सिर्फ एक अंतर है। अंतर सिर्फ घोषणा का है। कश्मीर में पाकिस्तान परस्त मुस्लिम संगठनों द्वारा सरेआम लौड़िस्पीकर पर घोषणा होती थीं कि हिन्दुओं को कश्मीर छोड़ देनी चाहिए, अन्यथा उनकी हत्या की जाएगी, उनके घरों को जलाया जाएगा, हिन्दुओं की इज्जत लूटी जाएगी, पुलिस सेना और सरकार बचाने नहीं आएगी। यह घोषणा करने वाले पाकिस्तान परस्त मुस्लिम आतंकवादी संगठन थे।जब ऐसी घोषणा हो रही थी तब कश्मीरी पंडित भी पूरी तरह से विश्वास में थे कि उनकी सुरक्षा होगी, उनके मुस्लिम भाई उनकी रक्षा करेंगे, उन्हें कश्मीर से भागने के लिए विवश नहीं किया जाएगा उनका यह विश्वास जल्द टूट गया था।मुस्लिम भाई जिन पर विश्वास था कि वे उनकी रक्षा करेंगे पर उनकी रक्षा के लिए कोई मुस्लिम भाई या फिर भी मुस्लिम संगठन सामने नहीं आए। कश्मीर से 10 लाख से अधिक कश्मीरी पंडितों को पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा। कश्मीरी पंडित पूरे देश में आज भी विस्थापन का दंश झेल रहे हैं और दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। कश्मीर घाटी में आज नाम मात्र के हिंदू रह गए हैं। कश्मीर पंडितों के लिए देश का संविधान भी बेईमान साबित हुआ था, देश के संविधान पर नागरिकों की सुरक्षा और उनके प्रदत्त अधिकार की रक्षा करने का दायित्व था। पर देश का संविधान कश्मीरी पंडितों के प्रदतअधिकार की रक्षा नहीं कर सका। आज देश का संविधान कश्मीरी पंडितों की तरह पश्चिम बंगाल के हिंदुओं की रक्षा करने में असमर्थ है। देश कार्यपालिका और न्यायपालिका बेईमान साबित हो रहे हैं। देश की राजनीतिक पार्टियां जिस प्रकार से कश्मीरी पंडितों पर खामोश रहती थी उसी प्रकार से पश्चिम बंगाल के हिंदुओं पर हिंसा और पलायन पर खामोश है।देश का चौथा स्तंभ यानी मीडिया में हिंदुओं पर होने वाली हिंसा और साजिश पर खामोशी जारी है। राष्ट्रीय चैनलों और राष्ट्रीय अखबारों में पश्चिम बंगाल के हिंदुओं पर जारी हिंसा की गंभीरता के साथ कवरेज नहीं है। सोशल मीडिया में जरूर पश्चिम बंगाल की घटनाओं पर आक्रोश है।
पश्चिम बंगाल में हिंदुओं के साथ या पीड़ा और हिंसा कोई नयी नहीं है इसका लंबा इतिहास है। आयातित संस्कृति की गर्भ से ही हिंसा निकली है। आजादी के समय में कोलकाता नोआखली में भयानक कत्लेआम हुए , कई हजार हिंदुओं का कत्लेआम हुआ, हजारों हिन्दू महिलाओं के साथ बलात्कार हुए थे। इतिहास के गर्भ में यह छिपा हुआ है कि कोलकाता नोआखली की सड़कें हिन्दुओं की लाशों से पट गई थी। उस समय के शासक जवाहरलाल नेहरू सिर्फ तमाशबीन बने हुए थे, हिन्दुओं के कतलेआम से पटी हिन्दुओं की लाशों से भी जवाहरलाल नेहरू की आत्मा नहीं द्रविड़ हुई थी। ठीक इसी प्रकार आज के शासक और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की आत्मा द्रविड़ नहीं है, खामोश, तमाशबीन है। दुखद पहलू यह है कि ममता बनर्जी अपनी पार्टी के गुंडों और मुस्लिम बांग्लादेशी घुसपैठियों को सरेआम संरक्षण दे रही है। महात्मा गांधी भी इसी कतार में खड़े थे। कोलकाता नोआखली में हिन्दुओं के कतलेआम और नरसंहार के खिलाफ महात्मा गांधी धरने और उपवास पर जरूर बैठे थे पर उन्होंने भी मुस्लिम दंगाइयों और मजहबी आधार की आलोचना नहीं की थी, खामोशी ही धारण कर रखी थी।
नेहरू की मुस्लिम परस्त राजनीति की सजा कश्मीर के हिन्दू भुगते है, पश्चिम बंगाल के हिन्दू भुगत रहे हैं। देश के अन्य जगहों पर इसी तरह की राजनीति और मानसिकता का हिन्दू शिकार रहे हैं। पश्चिम बंगाल को हिन्दुओं को भगा कर एक बर्बर इस्लामिक राज्य बनाने का खेल आजादी प्राप्ति के बाद से ही शुरू हो गया था। इसके पीछे नेहरू और कांग्रेस की मुस्लिम सोच थी। कांग्रेस ने अपनी सत्ता कायम करने के लिए मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति अपनाई थी। इसी सोच से कांग्रेस ने मुस्लिम घुसपैठियों को संरक्षण देने जैसे पाप किए है। कांग्रेस की इस सोच और सत्ता सूत्र को कम्युनिस्ट पार्टियां आंगीकर की थी। मुस्लिम तुष्टिकरण और बांग्लादेशी घुस्पथियो के बल पर ही कम्युनिस्ट पार्टियां पश्चिम बंगाल में कोई एक नहीं बल्कि 35 सालो तक राज की थी। कम्युनिस्ट पार्टियां अपने शासन काल में मुस्लिम तुष्टिकरण करने की सारी हदें पार की थीं और बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों को संरक्षण देने का अभियान चलाया था, बसाया था। कम्युनिस्ट पार्टियों की अति से जब ममता बनर्जी का जन्म हुआ तब ममता बनर्जी ने कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियो के इस सत्ता सूत्र को आंगीकार कर लिया। बांग्लादेशी घुसपैठियों के लिए संरक्षण अभियान चलाया और जमकर बसाया। मुस्लिम जिहादियों को खुश करने के लिए ममता बनजी ने दुर्गा पूजा मूर्ति विसर्जन पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। एक स्वतंत्र मीडिया का आकलन है कि ममता बनर्जी के राज में करीब एक करोड़ से अधिक बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों को संरक्षण अभियान चलाकर बसाया गया है। इन्हे साजिशन और अवैध ढ़ंग से वोटर आईडी कार्ड से लेकर आधार कार्ड तक की सभी भारतीय नागरिक अधिकार की सुविधाएं उपलब्ध करा दी गई है।
हिन्दुओं को हिंसा का शिकार बनाकर भगाने की साजिश के पीछे की अन्य वजहें भी जान लीजिए। हिन्दू पिछले लोक सभा चुनाव से भाजपा का समर्थन करना शुरू किए थे, पूरे हिन्दू भी भाजपा के साथ नहीं है। भाजपा ने सीएए कानून लेकर अाई है। इस कारण अवैध मुस्लिम बांग्लादेशी घुसपैठियों को आक्रोश ज्यादा है। इसलिए बांग्लादेशी घुसपैठिए आक्रमक और हिंसक होकर हिन्दुओं पर हमलाकर उनका विध्वंस कर रहे हैं। सम्पत्ति और व्यापार पर कब्ज़ा करने की कोशिश भी है। अभी भी पश्चिम बंगाल में जमीन और व्यापार पर हिन्दुओं का वर्चस्व है। अगर हिन्दू अपनी जमीन और व्यापार छोड़कर भागेगे तो फिर उस पर कब्जा मुस्लिम अवैध बांग्लादेशी घुस्पाथियो को ही होगा। अपनी इस नीति में अवैध मुस्लिम बांग्लादेशी घुसपैठिये कामयाब भी हो रहे है। सम्पन्न हिन्दू व्यापारी अपने व्यापार और प्रतिष्ठान को छोड़कर लगातार पलायन कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल की यह खौफनाक स्थिति बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों की जीत मानी जानी चाहिए।
पश्चिम बंगाल में क्या सविधान के अनुच्छेदों का पालन नहीं हो रहा है? जिस प्रकार से हिंसा लगातार जारी है, राज्य सरकार हिंसा को बढ़ावा देती है, संरक्षण देती है, पुलिस प्रशासन खामोश, तमाशबीन बने हुए होते हैं उस प्रकार से स्पष्ट है कि राज्य सरकार पूरी तरह से विफल है। ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार को पश्चिम बंगाल में सविधान की धारा 356 का प्रयोग करने का अधिकार मिल जाता है, दायित्व बन जाती है। इसके लिए सिर्फ राज्यपाल के समर्थन रिपोर्ट की जरूरत होती है। केंद्र सरकार को स्पष्ट चेतावनी देने की जरूरत है, अगर फिर भी ममता बनर्जी आपने सवैधनिक दायित्वों को पूरा नहीं करती है तो फिर पश्चिम बंगाल में सिर्फ राष्ट्रपति शासन का ही विकल्प बनता है। राष्ट्रपति शासन में ही बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों से उपजी समस्या का समाधान होगा।
ममता बनर्जी को खुश फहमी छोड़ देनी चाहिए। अनन्त काल तक मजहबी उन्माद से ग्रसित लोग ममता बनर्जी का समर्थन नहीं कर सकते हैं।जैसे ही उनकी शक्ति सत्ता हासिल करने लायक होगी वैसे ही ममता बनर्जी को दूध की मक्खी की तरह निकाल फेकेंगे, खुद सत्ता पर बैठ जाएंगे।
ऐसी हिंसा से हिन्दुओं की एकता भी बनेगी। हिन्दुओं को बीजेपी की झोली में गिरने के लिए बाध्य किया जाएगा। वैसे हिन्दू जो अभी भी बीजेपी के साथ नहीं है और ममता बनर्जी को ही चुनाव में समर्थन देकर वोट देते हैं, के सामने विकल्प क्या होगा, विकल्प सिर्फ बीजेपी में जाने के अलावा वैसे हिन्दुओं के पास और कोई विकल्प नहीं होगा। हमे यह नहीं भूलना चाहिए कि बीजेपी शक्ति नहीं बढ़ी, बीजेपी तीन सीट से 76 सीट तक पहुंच गई, बीजेपी की यह उफान ममता बनर्जी ही नहीं बल्कि तथाकथित सेक्युलर पार्टियों के लिए भी खतरे की घंटी है। बीजेपी अब गैर हिंदी प्रदेशों में भी बुलंदी के साथ अपनी स्थिति मजबूत कर रही है।
हर हाल में पश्चिम बंगाल को कश्मीर बनने से रोकना होगा और हिन्दुओं के जान माल और इज्जत की सुरक्षा करनी होगी, इसके लिए संवैधानिक संस्थाओं को खामोशी नहीं वीरता दिखानी होगी।
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