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संपादकीय

बंगाल में ‘हिंदू अस्तित्व’ के लिए मंडराता संकट और राष्ट्रवादी शक्तियां

आज भारत में भी हिंदुओं के लिए अपने अस्तित्व को बचाए रखना एक बड़ी समस्या बन चुकी है। भारत वर्ष के भीतर जहां – जहां मुस्लिम बहुल क्षेत्र हैं, वहाँ वहाँ हिंदू अपने अस्तित्व को बचाने के लिए मुगलिया काल से भी अधिक दयनीय स्थिति में जी रहा है। जिस पर इस समय एक गंभीर सर्वेक्षण की आवश्यकता है । यदि ऐसा गंभीर सर्वेक्षण करा लिया जाता है तो स्थिति की भयावहता को सारा देश देख सकता है, परंतु हमें लगता नहीं कि वर्तमान में ऐसा संभव हो पाएगा।
जिस आर्य धर्मी हिंदू का कभी समस्त भूमंडल पर शासन हुआ करता था वह आज सिमटते – सिमटते विश्व के एक कोने में अर्थात भारत में शेष ( या अवशेष) रह गया है और यहाँ पर भी बहुत बड़ी संख्या में ऐसे धर्मनिरपेक्ष हिंदू हैं जो अपनी मृत्यु की अपने आप ही प्रतीक्षा कर रहे हैं। इस्लाम और ईसाइयत के द्वारा अपने ऊपर होने वाले दीर्घकालिक अत्याचारों को यह धर्मनिरपेक्ष हिंदू आज भी सत्य मानने को तैयार नहीं है । उन्हें यह बीते दिनों की बात कहकर नकार देना चाहता है तो वर्तमान में यदि कहीं कुछ भी हिंदू के साथ अत्याचार जैसी चीज हो रही है तो उसे भी यह धर्मनिरपेक्ष हिंदू बहुत हल्के में ले रहा है। इसके सामने ही मेवात में हिंदुओं के 100 से अधिक गांव हिंदूविहीन कर दिए गए, परंतु यही धर्मनिरपेक्ष हिंदू उधर से आंखें बंद कर लेता है । कश्मीर में जो कुछ इसके सामने हुआ है, उसे भी यह मानने को तैयार नहीं है। केरल और पश्चिम बंगाल सहित देश के अन्य कई मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में हिंदुओं के साथ जो कुछ भी हो रहा है उसे भी यह देखकर अनदेखा कर रहा है। ‘देखकर भी अनदेखा’ करने की यही लापरवाही धर्मनिरपेक्ष हिंदू की वह फांस बन चुकी है जो इसे उलझाकर मारने की तैयारी कर रही है और उसमें यह स्वयं उलझता जा रहा है।
अपनी मूर्खताओं के चलते धर्मनिरपेक्ष हिंदू वेद – वेदांग, उपनिषद, स्मृतियां, रामायण, महाभारत उपनिषद् आदि सभी आर्ष ग्रन्थों को ग्वालों अर्थात बहुत ही निम्नतम श्रेणी के लोगों के गीत मानकर उपेक्षित करता है , जबकि पश्चिम, जो भारत की प्राचीन वैदिक संस्कृति के सामने कहीं नहीं टिकता उसकी नकल करने को यह आधुनिकता मानता है। अपनी जड़ों को सींचना यह ‘भगवा की मूर्खतापूर्ण उपासना’ मानता है और दूसरों की फलक की उपासना को यह बहुत महत्वपूर्ण मानता है।
विचारधाराओं के नाम पर यह उस विष को पीना चाहता है जिसमें इसे बताया जाता है कि भारत एक हिंदू बहुल देश है और हिंदू धर्म की स्थापना इसी देश में हुई थी। नकली विचारधाराओं का दीवाना बना यह धर्मनिरपेक्ष हिंदू ऐसा मानने वाले लोगों को यह भी नहीं बता सकता कि भारत हिंदू बहुल देश नहीं है अपितु कभी संपूर्ण भूमंडल हिंदू अर्थात आर्यों के अधीन हुआ करता था और उन्हीं की शासन व्यवस्था के अंतर्गत शासित होता था । इसलिए हम भारतवर्ष में अवशेष मात्र नहीं हैं बल्कि संपूर्ण मंडल के स्वामी हैं और वेद की उस आज्ञा के अनुसार संपूर्ण भूमंडल पर आर्यों का फिर से शासन स्थापित करने के लिए प्रयासरत हैं जिसमें कहा गया है कि मैं यह भूमि आर्यों को देता हूं। ये सेकुलर नाम का कीड़ा बना हिंदू यह डिंडिम घोष नहीं कर सकता कि यदि इस्लाम दुनिया को अपने झंडे के तले लाने के लिए 56 देश खड़े कर सकता है और ईसाइयत भी इसी प्रकार दर्जनों देश खड़े कर सकती है तो भारत को तो यह नैसर्गिक अधिकार प्राप्त है कि वह भी संपूर्ण भूमण्डल पर अपना अर्थात आर्यों का शासन स्थापित करने के लिए उठ खड़ा हो।
हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि यदि आज संसार में कुछ देश ईसाई और कुछ मुस्लिम दिखाई देते हैं तो यह सारे के सारे देश हिंदुओं के राज्यक्षेत्रों को तोड़ – तोड़ कर या छीन – छीनकर बलात मुस्लिम या ईसाई बनाए गए देश हैं। यह धर्मनिरपेक्ष हिंदू ऐसी मान्यता रखने वाले तथाकथित विद्वानों से यह भी नहीं कह सकता कि भारतवर्ष में या संसार के किसी भी देश में कभी हिंदू धर्म की स्थापना नहीं हुई, बल्कि यह भारतवर्ष के प्राचीन वैदिक आर्य धर्म का स्वाभाविक उत्तराधिकारी है ,जो आज अपनी कई कमजोरियों के कारण संसार में बहुत पिछड़ गया है।
वास्तव में भारत को अपने पूर्वजों की उस ‘सद्गुण विकृति’ पर प्रायश्चित करना चाहिए था जिसके अंतर्गत उन्होंने समय-समय पर विदेशी मतावलंबियों को या तो अपने यहां पर टिकने और विकास करने के अवसर उपलब्ध कराए या फिर उनसे कभी किसी युद्ध क्षेत्र में हार मानकर अपना धर्मांतरण किया, या जो अपच की बीमारी का शिकार होकर दूसरे मतावलंबियों द्वारा हमारे वैदिक धर्मी जनों को जबरन मुसलमान या ईसाई बना लेने के पश्चात जब उन मुसलमान और ईसाई बने लोगों ने घर वापसी की तो यह लोग उसे पचा नहीं पाए। सेकुलर नाम का कीड़ा चाहे इन चीजों पर प्रायश्चित करे या न करे, पर जो लोग आज ‘हिंदू अस्तित्व’ को लेकर चिंता में हैं, उन्हें हिंदू की मानसिकता में परिवर्तन लाने के लिए भी संघर्ष करना चाहिए। उन्हें समझना चाहिए कि आज सेकुलर नाम के कीड़ा ने अपनी संख्या बढ़ाते हुए कितने हिंदुओं को गाय का मांस खाना सिखा दिया है? जो हिंदू मांसाहारी हो जाता है, उसे समझो वह विचारों से आर्यत्व या हिंदुत्व से दूर और इस्लाम या ईसाइयत के नजदीक चला जाता है।


हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हिंदू अस्तित्व को मिटाने के लिए ही आयुर्वेद के स्थान पर एलोपैथी को भारत पर थोपा गया है । इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए संस्कृत को मृत भाषा घोषित किया गया है और हिंदी को गांव देहातियों की भाषा बताकर उपेक्षित करने की प्रवृत्ति पहले दिन से अपनाई गई है। इन दोनों भाषाओं के स्थान पर उर्दू मिश्रित ‘हिंदुस्तानी’ को हम पर थोपने का प्रयास किया गया है ।जिसे ‘हिंग्लिश’ के नाम से पुकारा जाता है। इस भाषा की कोई व्याकरण नहीं, कोई इसका वैज्ञानिक आधार नहीं, लेकिन इसका प्रचलन इस कदर बढ़ चुका है कि हर स्थान पर यही भाषा बोलचाल में प्रचलित हुई देखी जाती है। इस ‘हिंग्लिश’ भाषा ने भारत के इतिहास, संस्कृति और परंपराओं को मिटाने का हर संभव प्रयास किया है और भारत में बड़ी तेजी से ‘भारत’ को मिटाकर ‘इंडिया’ को खड़ा करने का काम किया है। जिस पर आज चिंतन करने की आवश्यकता है । ‘इंडिया’ को खड़ा करने वाले हाथों को तोड़कर और भारत को बसाने वाले लोगों को अपने साथ जोड़कर इस समय सचमुच एक ‘महाभियान’ चलाने की आवश्यकता है। जिसे राष्ट्रवादी शक्तियों को समझना ही होगा।
भारत के लोग ‘गीता’ के ‘निष्काम कर्मयोग’ को आज भी अपना आदर्श मानते हैं। यदि ‘निष्काम कर्म’ पर विचार किया जाए तो श्री अरविंद कहते हैं कि गीता मानव को मानव धर्म ( नित्य प्रति के जीवन में होने वाले सामान्य कर्तव्य कर्म ) के लिए नहीं ‘दिव्य कर्म’ के लिए प्रेरित करती है। यदि इस बात पर विचार किया जाए कि दिव्य कर्म क्या है ? तो हमें ध्यान रखना चाहिए कि इस विश्व का नियंत्रण मनुष्य नहीं कर रहा ,भगवान कर रहा है। कोई दैवीय शक्ति कर रही है। उस दिव्य शक्ति का विश्व के संचालन में जो उद्देश्य है उस उद्देश्य के साथ एकतानता उत्पन्न कर लेना, उस उद्देश को पूर्ण करने में अपनी शक्ति लगा देना ही ‘दिव्य कर्म’ है। दिव्य उद्देश्य को पूर्ण करने वाला दिव्य कर्म है और जब मनुष्य दिव्य कर्म करने लगता है तब वह स्वयं कर्म नहीं कर रहा होता है, मनुष्य को माध्यम बनाकर भगवान ही कर्म कर रहा होता है ।मनुष्य तो निमित्त मात्र रह जाता है।
राष्ट्र के संदर्भ में हमारा यह ‘दिव्य कर्म’ सरकार की उन सभी नीतियों के साथ एकतानता उत्पन्न कर लेना है जो राष्ट्रवादी विचारों को और राष्ट्रवादी चिंतन को मजबूत करती हैं या जो राष्ट्रवादी लोगों को किसी न किसी प्रकार से ऊर्जावान रखने में सक्षम हैं। यही हमारी राज्य व्यवस्था का राजधर्म या राष्ट्रधर्म है और यही हमारा सबका सामूहिक राष्ट्रीय दायित्व है। यही हमारा राष्ट्रवाद है और यही हमारा समाजवाद है। हमारा राष्ट्र धर्म, हमारा राष्ट्रवाद और हमारा समाजवाद – ये सारे एक ही दिशा में मिलकर काम करते हैं एकतानता उत्पन्न करते हैं। इस एकतानता के साथ महारास रचाना हमारी वह सामूहिक चेतना है जिसे भारतीयता या भारतीय संस्कृति कहते हैं। जो हमारी एकतानता या सामूहिक चेतना का विरोधी है अर्थात जो हमारे राष्ट्रधर्म हमारे राष्ट्रवाद और समाजवाद में किसी प्रकार से बाधा उत्पन्न करता है वही व्यक्ति राष्ट्रद्रोही है । इसलिए पश्चिम बंगाल में जो लोग बांग्लादेशियों का स्वागत कर रहे हैं और भारत के जनसांख्यिकीय आंकड़ों को गड़बड़ाकर यहां पर किसी नए देश की तैयारी कर रहे हैं , वे सारे के सारे राष्ट्रद्रोही हैं। उन राष्ट्रद्रोहियों को अपना राजनीतिक संरक्षण देने वाले वे सारे राजनीतिक दल भी राष्ट्रद्रोही हैं जो किसी भी प्रकार से ऐसी गतिविधियों को प्रोत्साहित करते हैं। मेरे द्वारा ऐसा लिखने पर यदि कोई मुझे ‘गोदी मीडिया’ कहता है तो इसे मैं अपने लिए फूल समझकर स्वीकार कर लूंगा।
सेकुलर नाम के कीड़े की उपेक्षा करके हम सबको सरकार के मजबूत इरादों को झलकाने वाले कार्यों के साथ खड़े रहना चाहिए। यह नहीं देखना चाहिए कि कितने कीड़े सेकुलर के नाम पर और कितने कीड़े किसी राजनीतिक दल के नाम पर आकर शोर मचा कर ‘अपना काम’ करने में सक्षम हो रहे हैं ? हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि इन सेकुलर कीड़ों ने देश की राजनीति को बहुत घटिया स्तर पर लाकर डाल दिया है। अभी पश्चिम बंगाल में जो कुछ हुआ है, उससे अब यह स्पष्ट हो गया है कि कांग्रेस और वामपंथियों ने केवल राष्ट्रवादी शक्तियों को पराजित करने के दृष्टिकोण से चुपचाप अपने वोटों को ममता बनर्जी के लिए खिसकने दिया । जिससे कि उनकी राष्ट्र विरोधी गतिविधियां वहां पर जारी रहें।
हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इन लोगों के ऐसे कार्यों से मुसलमानों द्वारा प्रभावित होने वाली 130 सीटें ममता बनर्जी की टीएमसी को प्राप्त हो गईं और अन्य क्षेत्रों में इनके मतों ने ऐसा प्रभाव डाला कि सत्ता से उखड़ चुकी ममता बनर्जी की जड़ें फिर से जम गईं। इसके उपरांत भी नरेंद्र मोदी की भाजपा वहां पर अपनी 77 सीटें प्राप्त करने में सफल हुई। यह बहुत बड़ी बात है। इससे समझिए कि 77 ऐसे चेहरे नरेंद्र मोदी को पश्चिम बंगाल की विधानसभा में प्राप्त हो गए जो अब वहां पर उनके संकेतों पर राष्ट्रवाद के लिए कार्य करेंगे, अर्थात पश्चिम बंगाल को वृहद बांग्लादेश बनाने की ममता बनर्जी और उन जैसे राष्ट्रविरोधी लोगों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए अब प्रमाणित 77 लोग नरेंद्र मोदी को पश्चिम बंगाल विधानसभा में प्राप्त हो गए । इसके अतिरिक्त बांग्लादेश से जो लोग अवैध रूप से आकर बंगाल में आकर बस रहे थे और हमारे हिंदुओं को उत्पीड़ित कर रहे थे, उनकी आवाज उठाने के लिए भी 77 चेहरे प्राप्त हुए। रही बात इस बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने में भारतीय जनता पार्टी के शहीद हुए कार्यकर्ताओं की तो उसके लिए हमें यह समझ लेना चाहिए कि ‘बड़े लक्ष्य’ को प्राप्त करने के लिए बलिदान तो देने हीं पड़ते हैं। देश के शेष भागों में रह रहे राष्ट्रवादी लोगों को उन शहीदों को किसी पार्टी विशेष का कार्यकर्ता नहीं मानना चाहिए बल्कि उन्हें राष्ट्र के लिए काम करने वाले ‘सिपाही’ के रूप में अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करनी चाहिए ।
मैं यह बात इसलिए भी कह रहा हूं कि अब से 8 वर्ष पहले मेरा एक भाषण कोलकाता में रखा गया था, कार्यक्रम स्थल से जब मैं भाषण देकर निकला तो कई युवाओं ने मुझे मेरा कार्ड या हस्ताक्षर आदि लेने के लिए या अपने साथ सेल्फी के लिए घेर लिया। तब मुझे वहां के कार्यक्रम आयोजकों ने यह कहकर वहां से हटाया था कि यहां पर दिन में छुरेबाजी हो जाती है। आप अपने उसी स्थान के लिए चलिए जहां पर आपको ठहराया गया है। तब मुझे पहली बार या लगा था कि वहां पर हिंदू कितना असुरक्षित है ?
इसके बाद अभी लगभग ढाई वर्ष पहले हमने वहां पर हिंदू महासभा की एक बैठक आयोजित की थी। जिसके कार्यक्रम स्थल के लिए हमें कोई अनुमति ममता बनर्जी सरकार की ओर से नहीं दी गई थी और यदि बाद में दी भी गई तो यह स्पष्ट कर दिया गया कि आप कोई भी पोस्टरबाजी शहर में कहीं पर भी नहीं करेंगे । मैंने वहां पर अपनी आंखों से यह देखा था कि किसी भी पार्टी के राष्ट्रीय या प्रांतीय नेता का कहीं पोस्टर दिखाई नहीं देता था। तब मेरे पास आकर वहां के कई हिंदू कार्यकर्ता फफक फफककर रोने लगे थे। वह कहते थे कि हमारी बहन बेटियों को जो मुसलमान हमारे हाथों से छीनकर ले जाते हैं या हमारे आगे उनके साथ बलात्कार करते हैं तो उस समय हमें अपने जीने पर भी लानत आने लगती है। आप कुछ भी करिए लेकिन हमारी बहनों का सम्मान बचाइए। तब उन हिन्दू युवा साथियों को किसी भी प्रकार से ढांढस बंधाने के लिए हमारे पास शब्द नहीं थे।
ऐसे में हमारी स्पष्ट मान्यता है कि हमें दिव्य कर्मों का निष्पादन करते हुए निष्काम कर्म की गीता की भावना के अनुरूप अपने जीवन को ढालकर पीएम श्री नरेंद्र मोदी या किसी भी पार्टी के किसी भी नेता के द्वारा ऐसे कार्यों का सम्मान और अभिनंदन करना चाहिए जिससे देश में ‘हिंदू अस्तित्व’ को बचाए रखने में सहायता मिलती हो। यह प्रसन्नता का विषय है कि पश्चिम बंगाल की विधानसभा में जब भाजपा की सदस्य संख्या पहले केवल 3 थी ,आज वह बढ़कर य
78 हो गयी है। इस पर हम सब को यह समझना चाहिए कि जागरण हो रहा है और पश्चिमी बंगाल को नया कश्मीर बनने से रोकने में नरेंद्र मोदी को इस समय बड़ी सफलता प्राप्त हुई है।
पश्चिमी बंगाल ने इस चुनाव में निश्चित रूप से एक अंगड़ाई ली है। यह हमें इन तथ्यों से स्पष्ट हो जाएगा कि पश्चिम बंगाल में जहाँ कभी भाजपा का उभरना कभी सर्वथा असम्भव माना जाता था वहाँ 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा को 17 फीसदी वोट के साथ कुल 2 सीटें मिली थीं, लेकिन 2019 में न पार्टी का न केवल वोट प्रतिशत बढ़ा, बल्कि सीटें भी बढ़ गईं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए 2019 में पश्चिम बंगाल की 40.2 फीसद जनता ने वोट किया, जिसके चलते भाजपा को 18 सीटें मिलीं। वहीं, टीएमसी ने 2014 में 34 सीटें प्राप्त की थीं और उसका वोट शेयर 39.7 फीसदी था। लेकिन 2019 में टीएमसी को 12 सीटों का नुकसान हुआ और 22 सीटें मिलीं। यद्यपि उसका वोट शेयर बढ़कर 43.3 फीसदी हो गया. बता दें कि 2016 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने 211 सीटें जीतीं और उनका वोट शेयर था 44.91 फीसदी था, वहीं बीजेपी के हाथ तीन सीटें लगी थीं और उनका वोट 10.16 फीसदी था।
यह संघर्ष निरंतर जारी रहना चाहिए। बंगाल की जनता के साथ राष्ट्रवादी लोगों को खड़ा होना चाहिए। जिससे उसे दूसरा कश्मीर बनाए जाने से रोका जा सके और अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहे ‘हिंदू’ को एक ऊर्जा सारे देश की ओर से प्राप्त हो सके।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

 

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