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इतिहास के पन्नों से भयानक राजनीतिक षडयंत्र

मजहब ही तो सिखाता है आपस में बैर रखना, अध्याय – 9 ( 4 ) तृतीय क्रूस युद्ध

 

तृतीय क्रूश युद्ध (1188-1192)

लूटपाट, डकैती और बलात्कार जब शासन के प्रमुख उद्देश्यों में सम्मिलित हो जाते हैं तो सर्वत्र अराजकता फैल जाती है। अराजकता का प्रतिशोध भी अराजकता से ही दिया जाता है। जिससे सर्वत्र महाविनाश होने लगता है। जब संसार में मजहबी शासकों के विजय अभियानों की आँधी उठी तो इन आंधियों ने भी सर्वत्र महाविनाश की लीला मचा दी।


लूटपाट ,हत्या ,डकैती और बलात्कार को अपने शासन का आधार बनाकर काम करने वाले मजहबी शासकों ने जबरन विशाल साम्राज्य स्थापित कर लिए ,परन्तु कभी भी वे इन साम्राज्यों की देर तक सुरक्षा करने में सफल नहीं हुए। इसका कारण केवल एक था कि राजा के दुर्गुणों को अंगीकार कर उस समय उनकी प्रजा भी ऐसे ही गुणों से भर गई थी । जब प्रजा भी दुर्गुणों से भर जाती है तो वह राजा के नियंत्रण से बाहर हो जाती है । वैसे भी राजा प्रजा के भीतर दुर्गुण पैदा करने के लिए नहीं बनाया जाता बल्कि सद्गुणों की वृद्धि करने के लिए बनाया जाता है। इसके लिए आवश्यक है कि राजा स्वयं भी सद्गुणी हो।
मजहबी दृष्टिकोण से दूसरों के राज्यों को हड़प हड़पकर अपने साम्राज्य में मिलाने की सोच रखने वाले इन मजहबी शासकों के साम्राज्य लड़ाई – झगड़े, कलह और बड़ी संख्या में लोगों के नरसंहार का कारण बनते रहे । कभी भी स्थायी शांति इनमें स्थापित नहीं रही। टर्की के शासकों ने भी इसी रास्ते पर चलते हुए अपना एक विशाल साम्राज्य स्थापित करने में सफलता प्राप्त कर ली थी । इस तीसरे युद्ध का कारण तुर्की की शक्ति का उत्थान ही माना जाता है। विशाल तुर्की साम्राज्य के सुलतान सलाउद्दीन (1137-1193) ने 1187 में जेरूसलम के ईसाई राजा को हत्तिन के युद्ध में परास्त कर बंदी बना लिया और जेरूसलम पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया।
इस बंदर का बचाव 1188 में करने के बाद ईसाई सेना ने दूसरे बंदर एकर को सलाउद्दीन से लेने के लिए उस पर अगस्त, 1189 में घेरा डाला। सलाउद्दीन ने घेरा डालने वालों को घेरे में डाल दिया। जब 1191 के अप्रैल में फ्रांस की सेना और जून में इंग्लैंड की सेना वहाँ पहुँची तब सलाउद्दीन ने अपनी सेना हटा ली और इस प्रकार जेरूसलम के राज्य में से केवल समुद्रतट का वह भाग, जिसमें ये बंदर (एकर तथा तीर) स्थित थे, शेष रह गया।
इस युद्ध के लिए यूरोप के तीन प्रमुख राजाओं ने बड़ी तैयारी की थी , पर वह सहयोग न कर सके और पारस्परिक विरोध के कारण असफल रहे। प्रथम जर्मन सम्राट् फ्रेडरिक लालमुँहा (बार्बरोसा), जिसकी अवस्था 80 वर्ष से अधिक थी, दूसरा फ्रांस का राजा फिलिप ओगुस्तू अपनी सेना जेनोआ के बंदर से जहाजों पर लेकर चला, पर सिसिली में इंग्लैंड के राजा से विवादवश एक वर्ष नष्ट करके अप्रैल, 1181 में एकर पहुँच पाया, तीसरे इस क्रूश युद्ध का प्रमुख इंग्लैंड का राजा रिचर्ड प्रथम था, जो फ्रांस के एक प्रदेश का ड्यूक भी था और अपने पिता के राज्यकाल में फ्रांस के राजा का परम मित्र रहा था। इसने अपनी सेना फ्रांस में ही एकत्र की और वह फ्रांस की सेना के साथ ही समुद्रतट तक गई। इंग्लैंड का समुद्री बेड़ा 1189 में ही वहाँ से चलकर मारसई के बंदर पर उपस्थित था। साम्प्रदायिक आधार पर लड़ा गया यह युद्ध भी मानवता के लिए भारी विनाशकारी रहा।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत एवं
राष्ट्रीय अध्यक्ष : राष्ट्रीय इतिहास पुनर्लेखन समिति

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