कार्ल मार्क्स : शैतान पूजा से लेकर साम्यवाद तक, भाग 2
(सीताराम येचुरी के रामायण, महाभारत के संदर्भ से हिंदुओं को हिंसक बताये जाने पर वामपंथियों को दर्पण दिखाती तीन वर्ष पुरानी मेरी पोस्ट पुन: प्रस्तुत है।)
रहस्यमयी बात है कि Oulanem उलटा नाम है Emmanuel का जो जीसस का एक बाइबिल नाम ही है।इसका हिब्रू में अर्थ है ‘ईश्वर हमारे साथ है’। नामों को उलटा कर पढ़ना काले जादू में असरदार माना जाता है।
Oulanem नाटक को और समझने के लिये हमें मार्क्स की लिखी एक और कविता ‘ द प्लेयर ‘ में उसका यह कुबूलनामा समझना पड़ेगा ,
” उठती हुयी दोजखी धुंध मेरे दिमाग को भर देती है।जबतक मैं पागल होकर मेरा दिमाग पूरा नहीं बदल जाता।यह तलवार देखी ? इसे अंधकार की रानी ने मुझे बेचा है।
और मैं मृत्यु का नृत्य करता हूं।”
इसी तरह नये शिष्य को शैतानिक कल्ट में विधिवत शामिल कर लिया जाता है।मार्क्स भी अपने युवाकाल में इसमें शामिल हो गया था।
अब यह समझना आसान है कि एक युवा ईसाई को ऐसा क्या हो गया कि उसे ईश्वर से दुश्मनी हो गई । कट्टर ईसाई होने के बावजूद भी मार्क्स की जिंदगी व्यवस्थित नहीं रही।पिता के साथ उसका पत्र व्यवहार बताता है कि वो ऐय्याशी पर अत्यधिक धन खर्च करता था और बात बात पर अपने पिता से लड़ता झगड़ता था। फिर वह अति गोपनीय शैतानिक चर्च में दीक्षित होकर इसमें रम गया और शैतान का भोंपू बन गया।
यही कारण है कि मार्क्स दुनिया का अकेला लेखक है जिसने अपनी ही रचनाओं को “मल” और “सूवराना किताबें” कह डाला। आश्चर्य नहीं कि मार्क्स की इसी बात से प्रेरित होकर रोमानिया और मोजांबीक के उसके वामपंथी अनुयायियों ने लाखों विरोधियों को जबरदस्ती उन्हीं का मलमूत्र खिलाया।
मार्क्स 18 साल तक कट्टर ईसाई रहा और इसी समय उसका अपने पिता से पत्रव्यवहार संकेतों में उसके शैतान पूजक होने का सबूत देता है। बेटे ने लिखा ,
” पर्दा गिर गया था और पवित्रतम् चकनाचूर हो गया।नये ईश्वर को प्रतिष्ठापित होना है।”
ये शब्द नवंबर 10 , 1837 में लिखे गये थे जबतक वह ईसाई था और जब उसने घोषणा भी की थी कि ईसा उसके दिल में है। परंतु अब ऐसा नहीं था। किस नये ईश्वर ने उसके दिल में जगह बनाई ?
पिता ने पत्र का जवाब दिया ,
” मैं तुमसे इस संबंध में कोई भी स्पष्टीकरण मांगने से खुद को अलग करता हूं जो एक रहस्यमय बात है।लेकिन यह अत्यधिक शक के घेरे में है।”
वो ‘रहस्यमय बात’ क्या थी आजतक कोई भी मार्क्सवादी नहीं बता पाया है।
मार्च 2 , 1837 के दिन उसके पिताने फिर पत्र में लिखा,
” यदि तुम्हारा ह्रदय शुध्द होकर मानवता के लिये ही धड़कता रहे और कोई भी शैतान तुम्हारे ह्रदय को सद्भावनाओं से दूर न कर सके तो ही मुझे खुशी होगी।”
मार्क्स , हिटलर और मोहम्मद शुरूआती कवि थे। कविताओं में असफल होकर अपने अपने कारणों से मानवता की भलाई के नाम पर शैतान पूजक बन गये। मार्क्स के पिता के उसपर शंका करने के दो साल बाद उसने 1839 में उसने पहली बार ‘ The difference Between Democritus’ aid Epicures’ Philosophy of Nature’ की प्रस्तावना में लिखा ,
” मुझे पृथ्वी और स्वर्ग के सभी ईश्वरों से घृणा है और मैं मानव चेतना की सर्वोच्च सत्ता से इनकार करता हूं।”
मार्क्स की सबसे छोटी बेटी जेनी के मुताबिक उसके पिता उसको और उसकी बहनों को चुड़ैल हंस रौकल की कभी न खत्म होने वाली डरावनी कहानियां सुनाया करते थे।इतना ही नहीं मार्क्स के शुरूआती सभी घनिष्ठ मित्र जैसे Moses Hess , George Jung , Bakunin, Proudhan आदि शैतान पूजक ही थे जिन्होंने उसे सभी ईश्वरों को स्वर्ग से खदेड़ कर सर्वहारा के नाम पर इस संप्रदाय में दीक्षित होने की प्रेरणा दी।हर शैतान पूजक चाहता है ईश्वरों को खदेड़ दिया जाये। दीक्षित होने के बाद मार्क्स ने ईश्वर को हटाकर उसकी जगह शैतान को प्रतिष्ठापित कर दिया।इसप्रकार मार्क्सवाद की नींव पड़ी जिसका ईश्वर शैतान है। मार्क्स और उसके समस्त शैतान पूजक गिरोह की सोच समान थी। Lunatcharski , एक प्रमुख दार्शनिक जो सोवियत यूनियन का शिक्षा मंत्री भी था , ने ‘ समाजवाद और धर्म ‘ पर लिखते हुये विचार व्यक्त किये ,
” मार्क्स ने ईश्वर से सारे संबंध तोड़कर सर्वहारा दस्ते के आगे शैतान को खड़ा कर दिया ।”
इसीलिए जेऐनयू जैसे अड्डों पर सेक्स , नशा , अनैतिकता की शैतानी पूजा वामपंथ के नामपर चलती है।
मार्क्स ने तीव्र मानसिक अंतर्द्वन्द के बाद शैतानवाद स्वीकार किया।इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि मार्क्स के उसके लिखे 100 खंडों की पांडुलिपियों में से मात्र 13 ही आजतक प्रकाशित हुई हैं।शेष पांडुलिपियां आज भी रुस के मौस्को स्थित ‘मार्क्स इंस्टीट्यूट’ में सुरक्षित रखी हैं।फ्रेंच लेखक ऐलबर्ट कैमस ने इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर ऐम.मेचेद्लोव को 1980 में इस सदर्भ में पत्र लिखा तो हास्यास्पद जवाब आया कि द्वितीय महायुध्द के चलते प्रकाशन कार्य बंद रखना पड़ा था। यानी युध्द समाप्त होने के 35 वर्ष बाद भी प्रकाशन कार्य शुरु नहीं किया जा सका।जबकि धन की कोई कमी नहीं थी। मार्क्स इन अनछपी रचनाओं में ऐसा क्या है जिसका डर वामपथियों को है ? ये रचनायें विस्तार से शैतान पूजा पर ही हैं ऐसा ठोस अनुमान मार्क्स को जानने वालों का है।इनके प्रकाशित होने पर वामपंथ तारतार होकर शैतानपंथ में ना बदल जाये इसीलिये इनका प्रकाशन नहीं किया गया है।येचुरी कहीं आज के हिंदुस्तान में कामरेड से सर्वोच्च शैतान पूजक न बन जाये ऐसा भय भी है।
महान क्रांतिकारी मार्क्स के चरित्र में इससे भी गंदा दाग था।जर्मन अखबार Reichsruf ने (जनवरी 9 , 1960) लिखा कि जब आस्ट्रिया के चांसलर ने तत्कालीन सोवियत यूनियन के निदेशक निकिता ख्रुश्चेफ को मार्क्स का एक मूल पत्र सौंपा तो ख्रुश्चेफ को पत्र का विषय नागवार गुजरा। ऐसा इसलिये कि पत्र ने साबित कर दिया कि मार्क्स आस्ट्रिया पोलीस का वेतनभोगी मुखबिर था जो क्रांतिकारियों की जासूसी करता था।यह पत्र संयोगवश राष्ट्रीय अभिलेखागार में मिला था।इस पत्र से खुलासा हुआ कि लंदन में निर्वासित जीवन बिताते समय मार्क्स अपने कामरेड साथियों की हर एक सूचना पोलीस तक पहुंचाने का 25 डालर लेता था।अपने निकटतम साथी रूज़ की भी उसने मुखबरी की।
पैसे का लालच यहीं नहीं खत्म हुआ।आंखे पैतृक संपत्ति पर भी गड़ी थीं।जब उसका चाचा बीमार था तो मार्क्स ने अपने मित्र एंगेल को लिखा ,
” यदि यह कुत्ता मर जाता है तो मैं विपत्ति से बाहर निकल जाऊंगा।”
जिसका जवाब एंगेल ने यह लिखकर दिया,
” वसीयत की बाधा की मौत के लिये मैं तुम्हें बधाई देता हूं।आशा करता हूं यह दिन शीघ्र आये।”
चाचा की मौत पर मार्क्स ने मार्च 8 , 1855 में लिखा ,
” कुत्ता मर गया है।खुशी का दिन ! ”
अपनी सगी मां के लिये भी मार्क्स के दिल में कोई संवेदना नहीं थी।मां से उसका बोलचाल का भी रिश्ता नहीं था।दिसंबर 1863 में उसने फिर एंगेल को लिखा,
” दो घंटे पहले मां की मृत्यु का तार मिला।जरुरी था भाग्य घर के एक सदस्य की जान ले।मेरे पैर भी कब्र में हैं।उस बुढ़िया से मुझे पैसों की ज्यादा जरूरत है।जा रहा हूं वसीयत संभालने।”
मार्क्स के अपनी पत्नी से सबंध भी खराब थे।पत्नी ने उसे दो बार छोड़ा भी।जब पत्नी की मौत हुई तो मार्क्स उसके अंतिम संस्कार में भी नही गया।
एक अमरीकी कमांडर सरजिस रीस मार्क्स का भक्त था। मार्क्स की लंदन में मौत के बाद कमांडर दुखी मन से उसके घर गया।परिवार जा चुका था और उसे घर की पुरानी नौकरानी हेलन मिली।हेलेन ने बहुत आश्चर्य जनक बात कही ,
” वह ( मार्क्स) अत्यधिक धर्मभीरु व्यक्ति था।बीमार होने पर जलती हुयी मोमबत्तियों के सामने सर पर पट्टी बांधे प्रार्थना किया करता था।”
यह शैतान पूजा थी।
मार्क्स के पुत्र ने मार्च 31 , 1854 को लिखे पत्र में अपने पिता को ” मेरे प्रिय शैतान ” कह संबोधित किया।
मार्क्स की पत्नी ने उसे 1844 में लिखे पत्र में कहा ,
” तुम्हारे आध्यात्मिक पत्र , हे उच्च पादरी और आत्माओं के पादरी , ने पुन: तुम्हारी बेचारी भेड़ों को विश्राम और शांति दी है।”
शैतान का पुजारी बुरी स्थिति में मौत को प्राप्त हुआ। मई 25 , 1883 को उसने अपने मित्र एंगेल को लिखा ,
” जिंदगी कितनी सारहीन और खाली है।फिर भी चाहत भरी !”
क्या साम्यवाद कत्ल करता है ? हां करता है। क्यों ? क्योंकि शैतान ने मार्क्स से ऐसा कहलवाया।आंकड़े इसबात की पुष्टि करते हैं।अमरीकी सिनेट की आंतरिक सुरक्षा उपसमिति की एक जांच रिपोर्ट के अनुसार साढ़े तीन करोड़ से लेकर साढ़े चार करोड़ लोग सोवियत रुस में और साढ़े तीन करोड़ से साढ़े छ: करोड़ लोग चीन में शैतानी साम्यवाद ने कत्ल किये।
…क्रमशः
-अरुण लवानिया