ज्यादा बड़ा सवाल यह है कि जो देश इस पर सहमत हैं वे अपने स्तर पर इस फैसले को लागू करने और उसके मुताबिक वैक्सीन उत्पादन में तेजी लाने के लिए क्या कर सकते हैं। चूंकि भारत इस मसले को उठाने वाले शुरुआती देशों में शामिल रहा है, इसलिए निगाहें उस पर भी टिकी हैं।
कोरोना महामारी से संघर्ष के इस असामान्य दौर में अमेरिकी सरकार का वैक्सीन के मामले में इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स से जुड़ी सुरक्षा छोड़ने को राजी होना बड़ी बात है। अमेरिका के बाद यूरोपीय समुदाय (ईयू) ने भी इसकी तैयारी दिखाई है। ध्यान रहे, डब्ल्यूटीओ के मंच पर पिछले साल जब भारत और दक्षिण अफ्रीका ने सबसे पहले यह प्रस्ताव रखा था तो इन सबने उसका विरोध किया था। आज भी वैक्सीन विकसित करने वाली बड़ी-बड़ी कंपनियां इस फैसले के खिलाफ हैं। लेकिन पूरा विश्व आज जिस तरह की चुनौतियों से गुजर रहा है, उसे देखते हुए वैक्सीन को जल्द से जल्द अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना पहली जरूरत है। अमेरिका और ईयू का इस मसले पर अपना रुख बदलना इस मकसद में सहायक हो सकता है। हालांकि प्रक्रियागत जटिलता के चलते अभी इस फैसले के तार्किक परिणति तक पहुंचने में वक्त लगने वाला है, लेकिन यह फैसला लागू होने से इतना जरूर हो जाएगा कि दुनिया भर की फार्मास्युटिकल और वैक्सीन उत्पादक कंपनियां किसी तरह की मुकदमेबाजी की आशंका के बगैर टीका बनाना सीख सकेंगी। स्वाभाविक रूप से टीके के उत्पादन और उसकी उपलब्धता पर इसका पॉजिटिव असर होगा। लेकिन डब्ल्यूटीओ के मंच पर यह मामला किस रफ्तार से और कितना आगे बढ़ता है, यह एक बात है।
बौद्धिक संपदा से आगे
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ज्यादा बड़ा सवाल यह है कि जो देश इस पर सहमत हैं वे अपने स्तर पर इस फैसले को लागू करने और उसके मुताबिक वैक्सीन उत्पादन में तेजी लाने के लिए क्या कर सकते हैं। चूंकि भारत इस मसले को उठाने वाले शुरुआती देशों में शामिल रहा है, इसलिए निगाहें उस पर भी टिकी हैं। भारत को कोवैक्सीन का इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स छोड़ना चाहिए या फिर भारत बायोटेक से खरीद कर वैक्सीन बनाने का तरीका अन्य संभावित वैक्सीन उत्पादक कंपनियों से साझा करना चाहिए। यह समझना गलत है कि ऐसा करने से दुनिया भर में वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों की लाइन लग जाएगी। इसके लिए पैटेंटेड सूचनाएं काफी नहीं हैं। उनके अलावा भी बहुत सारी जानकारी चाहिए जो उन्हीं कंपनियों के पास है जो किसी न किसी रूप में इस प्रक्रिया से जुड़ी रही हैं। सूचनाओं के अलावा वैक्सीन बनाने में लगने वाली सामग्रियों और उपकरणों की उपलब्धता का सवाल भी है जिससे यह तय होगा कि कहां कौन वैक्सीन का कितना उत्पादन कर पाएगा। बहरहाल, यह अच्छी बात है कि दुनिया के प्रमुख देश महामारी की चुनौती के मद्देनजर बौद्धिक संपदा के स्वामित्व की संकीर्णता से ऊपर उठने में सफल रहे हैं। इससे जहां वैक्सीन उत्पादन में तेजी आने की संभावना बढ़ी है वहीं यह उम्मीद मजबूत हुई है कि दुनिया की बड़ी शक्तियां वायरस के खिलाफ जारी इस लड़ाई में आवश्यक होने पर आगे भी संकीर्ण हितों से ऊपर उठने का जज्बा दिखाएंगी। किसी भी बड़ी लड़ाई में कामयाबी की यह अलिखित शर्त होती है।
( एनबीटी से साभार)