कार्ल मार्क्स : शैतान पूजा से साम्यवाद तक, भाग – 1

5 मई कार्ल मार्क्स जन्म दिन पर

(सीताराम येचुरी के रामायण, महाभारत के संदर्भ से हिंदुओं को हिंसक बताये जाने पर वामपंथियों को दर्पण दिखाती तीन वर्ष पुरानी मेरी पोस्ट पुन: प्रस्तुत है।)

” जीसस के प्रेम के जरिये हम अपने ह्रदय को अपने अंतर्मन से जुड़े भाइयों की तरफ ले जाते हैं जिनके लिये जीसस ने अपना जीवन बलिदान किया।”

युवा मार्क्स ने अपने प्रथम लेख ‘ यूनियन औफ द फेथफुल विद क्राइस्ट ‘ में एक सच्चे ईसाई की तरह लिखा।

लगभग इसी समय उसने ‘कंसिडेरेशन औफ अ यंग मैन औन चूज़िंग हिस करियर’ में लिखा ,

“… अगर हम तय कर लें कि सब कुछ जीसस के लिये ही करेंगे तो हम कभी किसी भार से कुचले नहीं जा सकते…।”

फिर तुरंत मार्क्स ने परीक्षा में छ: बार लगातार लिखा , ” डिस्ट्राय ” जैसा किसी भी अन्य छात्र ने नहीं लिखा था।फलस्वरूप उसका उपनाम पड़ गया ‘डिस्ट्राय’।
और यहीं से शैतान उसके अंदर प्रवेश कर गया । पूरी मानवता को नष्ट करने की योजना उसके अद्भुत मस्तिष्क में पनपने लगी जो उसकी मृत्यु तक साम्यवाद यानी वामपंथ में बदल गयी। उसने संपूर्ण मानवता को “कबाड़” और “दुष्टों का समूह” कहा।
परीक्षा पास करने के तुरंत बाद शैतान ने उससे एक कविता ‘ इनवोकेशन औफ वन इन डेस्पेयर’ में लिखवाया ,

” मैं बदला लेना चाहता हूं उससे जो ऊपर बैठा हम सब पर राज करता है।”

ऐसा कहते उसने यह भी मान लिया कि ऊपर भगवान बैठा है । भगवान को मानना और उसे गालियां देते हुये धर्म को अफीम कहने का सिलसिला भी एक साथ चलने लगा। यानी उसपर हावी शैतान और भगवान के बीच संघर्ष शुरू हो गया और यह शैतान अंत तक भगवान पर हावी रहा।आज भी हावी है और रहेगा भी अगर हम जेएनयू जैसे मुद्दों पर अपनी ऊर्जा जाया करते रहे बजाय यह समझने के कि मार्क्सवाद असल में है क्या। कुछ-कुछ अच्छा भी है इसमें शेष शैतानियत है।ऐसा मिश्रण होना पूरा अच्छा या पूरा शैतानियत से भरा होने से ज्यादा खतरनाक है।पूरा अच्छा है तो विरोध समाप्त हो जाता है और अगर पूरा शैतानियत से भरा है तो इससे हम लड़ सकते हैं।नयी पीढ़ी को बता सकते हैं कि यह गलत है।लेकिन मिश्रण होने के कारण नयी पीढ़ी साम्यवाद के नाम से प्रदूषित ही होती रहेगी।कन्हैया पैदा होते रहेंगे।

इस लेख का उद्देश्य ना तो मार्क्स के आर्थिक और राजनीतिक सिध्दांतो को लेकर उबाऊ बहस में उलझना है और नाही हिंदुस्तान के वामपंथियों ने कैसे कैसे आजादी के आंदोलन में गद्दारी की इसपर चर्चा करनी है।उद्देश्य बस इतना है कि मार्क्स को महान से कैसे शैतान पूजक उसके, उसके परिवार और साथियों के शब्दों से साबित किया जा सके।उसका पाखंड उजागर किया जा सके।

शैतान ने मार्क्स से उसकी एक और कविता में कहलवाया ,

” ईश्वर ने मेरा सब कुछ छीन लिया है और अब उससे बदला लेना ही बाकी है।मैं अपना सिंहासन ऊपर आसमान में बनाऊंगा।”

प्रश्न यह है कि शैतान ने मार्क्स के लिये ऊपर सिंहासन क्यों चाहा ? क्या अल्लाह से दुश्मनी रखने वाला अरबिक शैतान मार्क्स को नया अल्लाह बनाना चाहता था ? गौर करने की बात है कि मार्क्स का बचपन अभावों मे नहीं बीता था।सब कुछ था उसके पास। इसलिये मानने का सवाल नहीं कि उसने खुद ही कहा होगा कि ईश्वर ने उसका सबकुछ छीन लिया।यह बात शैतान ने ही उससे कहलवाई।

मार्क्स ने सिंहासन क्यों चाहा इसका जवाब उसी के लिखे नाटक ‘ Oulanem ‘ में छुपा है जिसे कम ही लोग जानते हैं।इसे समझने के लिये कुछ और बात जानना जरूरी है। शैतानिक चर्च का आधी रात को किया जाना कर्मकांड चर्चित है जहां शैतानिक पादरी सब कुछ उलटा करता है।काली मोमबत्तियां उलटी लगाई जाती हैं , पादरी अपने लबादे का अंदर वाला भाग बाहर पलटकर पहनता है , धार्मिक ग्रंथ का पाठ अंत से शुरूआत की तरफ करता है , क्रौस उलटा लटकाया जाता है । ईश्वर , जीसस और मैरी को उलटा पढ़ा जाता है।एक नग्न स्त्री का शरीर पूजा की बेदी बनाया जाता है , पवित्र किये किसी वस्त्र को चर्च से चुराकर इसपर शैतान का नाम लिखकर बाईबिल जलाई जाती है।इस ब्लैक मास में शामिल सभी शैतान पूजक सात घातक पाप करने की कसम खाते हैं।अंत में खुलेआम काम वासना और नशे का खेल चलता है।

…क्रमशः
-अरुण लवानिया

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