पश्चिम बंगाल चुनाव परिणाम को देखने पर अब वास्तविक तथ्यों और परिस्थितियों का विश्लेषण करने का समय आ गया है। लोकतंत्र के विषय में हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि क़िसी भी चुनाव में पक्ष और प्रतिपक्ष अपना अपना अजेंडा बना कर चुनाव लड़ता है। बंगाल विधानसभा चुनावों में उतरने से पहले भाजपा ने अपनी पुरानी उन्नति को देखते हुए २०० सीट पाने का लक्ष्य रखा तो ममता ने अपने शासन को बनाए रखने का लक्ष्य रखा।
इस चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी को २.८७ करोड़ वोट मिले जबकि भाजपा को २.३० करोड़ वोट मिले। पिछले लोकसभा चुनाव में ममता को २ करोड़ ४७ लाख वोट मिले भाजपा को २ करोड़ ३० लाख वोट मिले। क़िशी भी चुनाव में उलटफेर का मुख्य कारण होता है सत्ता विरोधी वोट व नए वोटर का वोट तथा दूसरी पार्टी से वोटों की शिफ़्टिंग। भाजपा को अपनी जीत में आशा थी इन तीनो फ़्रंट पर अतीत की तरह उसे वोट मिलेंगे व १२१ से २०० सीट पर वह सफल हो जाएगी। ऐसा इसलिए नही हो सका कि ममता ने बहिरागत इशू को सक्सेस फ़ुली बना कर सत्ता बिरोधी वोट TMC से जाने नही दिया। २८ लाख नए वोटर ने ममता को वोट दिया तथा लोकसभा चुनाव में कांग्रिस से TMC में ३४ लाख मुस्लिम वोट शिफ़्ट हुए थे वह क्रम २०२१ में भी जारी रहा व १२ लाख मुस्लिम वोट कांग्रिस से TMC में आए ममता ने ४४ सीट पाने वाली कांग्रिस पार्टी को मुस्लिम बहुल छेत्रों में ० सीट पर लाकर खडा करदिया। भाजपा एक जगह बहुत कामयाब रही, ममता के बहिरागत इशू के बावजूद TMC से जो २०१९ में ३४ लाख वोट उसे मिले थे वह पकड़े रखने में सफल रही। उसका २ करोड़ ३० लाख वोट बना रहा। आज के तीन वर्ष बाद लोकसभा के चुनाव एक परीक्षा रहेंगे। ममता ने बिधान सभा चुनावों के परिणाम के आधार पर २२ से ३७ लोकसभा सीट पाने का लक्ष्य रखा है व प्रधान मंत्री पद पर स्वयम को बैठाने की कल्पना कर रही है। वही भाजपा अपने वोट २करोड़ ३० लाख को बचाने के बाद अतीत में २ से १८ सीट पर पहुँची थी वही १८ से ३२ सीट पर पहुँचने का लक्ष्य बनाया है। देखना होगा भविष्य में कौन अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है ?
वैसे हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बंगाल विधानसभा चुनावों में मुस्लिम बहुत आराम से अपना ध्रुवीकरण करने में सफल हो गया और राजनीतिक दलों ने भी उसे ऐसा करने दिया । मुस्लिमों के इस प्रकार के ध्रुवीकरण पर कोई भी सेकुलर नेता या राजनीतिक दल कुछ नहीं बोला । सबकी नजरें इस बात पर लगी रही कि कहीं से भी हिंदू भाजपा या किसी भी हिंदूवादी राजनीतिक दल के साथ ध्रुवीकरण करने में सफल ना हो जाए। इस फैक्ट को भाजपा ने समझ कर भी राजनीतिक ढंग से सही प्रकार से लोगों तक पहुंचाने में किसी प्रकार की सफलता प्राप्त नहीं की।
कांग्रेस की तरह भाजपा भी अपने आपको हिंदूवादी दिखाने से बचती रही, इससे भाजपा के प्रति हिंदू बहुल सीटों पर बढ़ा प्रेम भी निराशा को प्राप्त हो गया।
इंजीनियर श्यामसुंदर पोद्दार