जापान में समय से पहले फूल खिलने से पर्यावरणविदो की उड़ी नींद
अनु जैन रोहतगी
इस बार जापान के लोग अपने राष्ट्रीय फूल सकूरा, यानी चैरी ब्लॉसम के खिलने पर ज्यादा खुश नहीं हुए। कई शताब्दी बाद ऐसा हुआ कि ये फूल बहुत जल्दी खिल गए। जो पीक 15-20 अप्रैल के आसपास आनी थी, वह 26 मार्च को ही आ गई। ओसाका यूनिवर्सिटी की ओर से इकट्ठा किए गए तमाम आंकड़े बताते हैं कि इससे पहले वर्ष 1409 में 27 मार्च को इस पेड़ पर फूलों की पीक आई थी। साइंटिफिक जरनल बायॉलजिकल कंजर्वेशन में छपी एक रिपोर्ट में इसके पीछे ग्लोबल वॉर्मिंग के साथ-साथ शहरीकरण की भी भूमिका बताई गई है।
जापान में इन फूलों के खिलने का मतलब पारंपरिक रूप से बसंत का आगमन और सर्दी का समापन समझा जाता है। जापान में आठवीं शताब्दी से यह परंपरा चली आ रही है। इसे जापानी अपनी संस्कृति से जोड़कर देखते हैं। इस दिन को एक बड़े उत्सव के रूप में मनाया जाता है। दोस्त, रिश्तेदार मिलकर हनामी पार्टी करते हैं, जिसका मतलब है खिले हुए फूलों को देखना और आनंद उठाना। फूल के खिलने के समय को वहां शुभ माना जाता है। इसलिए इसी दिन नए स्कूल जाने के साथ बिजनेस तक की शुरुआत की जाती है। इस बार जापानियों में बढ़ती गर्मी को लेकर थोड़ा डर है। ओसाका यूनिवर्सिटी के रिसर्चर यासूकी ओनो ने हाल ही में चैरी ब्लोसम से जुड़ी वर्ष 812 से लेकर अब तक की तमाम जानकारियां इकट्ठा की हैं। ये तमाम जानकारियां पुराने समय के राजा-महाराजा, संतों, कलाकारों की ओर से लिखी गई थी। इनमें फूलों के खिलने के समय से लेकर उसके पूरे पीक पर पहुंचने के समय का वर्णन है। लगभग एक हजार साल यानी कि 812 से 1800 तक एक अपवाद को छोड़कर इन फूलों का पीक टाइम लगभग एक समान रहा। उसके बाद इसमें बदलाव आना शुरू हो गया। इस साल यह पीक मार्च में ही आ गई जो जापानियों के लिए चिंता का विषय है।
चैरी ब्लॉसम के पहले फूल के खिलने से लेकर इसकी पीक आने तक के समय का मौसम विभाग पूरा ब्यौरा रखता है। इसके लिए जापान की अलग-अलग जगहों पर 58 चैरी के पेड़ों पर नजर रखी जाती है। ज्यादातर ये पेड़ दो हफ्ते तक फूल देते हैं। जापान में वर्ष 1953 से इन फूलों का पूरा रेकॉर्ड रखा जा रहा है। वहां मार्च 2020 में तापमान 10.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया जो वर्ष 1953 में 8.6 डिग्री सेल्सियस था। बढ़ते तापमान को सीधे तौर पर इन फूलों की पीक से जोड़कर देखा जा रहा है। जापान से यह चैरी ब्लॉसम और उससे जुड़ी परंपराएं कईं देशों में फैली हैं। वॉशिंगटन डीसी में इस पेड़ को उगाने की शुरुआत 1912 में हुई थी। दोस्ती के तौर पर यह पौधा अमेरिका को जापानियों ने भेंट किया था। इस बार अमेरिका में भी इन फूलों की पीक लगभग सात दिन पहले नोटिस की गई है।
कम ही लोग जानते हैं कि अपने देश में भी चैरी ब्लॉसम के खिलने को बहुत महत्व दिया जाता है। मेघालय की राजधानी शिलांग में चैरी ब्लॉसम का खिलना एक उत्सव की तरह मनाया जाता है। वर्ष 2019 में यहां इंटरनैशनल चैरी ब्लॉसम उत्सव भी मनाया गया था। शिलांग में भी इस बार चैरी ब्लॉसम की पीक का जल्दी आना देखा गया। हमारे देश में इस पेड़ को हिमालय की देन कहा जाता है। मेघालय के अलावा ये पेड़ हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, सिक्किम, दार्जिलिंग, उत्तराखंड और बंगाल के कुछ हिस्सों में भी पाए जाते हैं। वैसे चैरी ब्लॉसम के दीवाने देश के अन्य हिस्सों में भी अपने घरों में इसके पेड़ उगाने की कोशिश करते हैं। हालांकि ये पेड़ गर्मी के चलते ज्यादा वर्ष तक नहीं टिक पाते।
चैरी पेड़ 22 तरह के होते हैं। उनमें गहरे पिंक, बेबी पिंक और सफेद फूल लदे रहते हैं। इसके अलावा हरे और पीले फूल भी देखे जाते हैं। बहुत से पेड़ों पर सफेद फूल खिलते हैं जो धीरे-धीरे पिंक में बदल जाते हैं। इसकी खुशबू दूर तक फैलती है। जापान में गर्म पानी में इन फूलों को डालकर खुशबू का आनंद लिया जाता है।