…पार्थ तुम चलने की कोशिश तो करो, रास्ते खुद पर खुद मिल जाते हैं योगेश्वर श्रीकृष्ण
आरएन तिवारी
श्री भगवान ने कहा – मैं इस सम्पूर्ण संसार को नष्ट करने वाला महाकाल हूँ, इस समय इन समस्त प्राणियों का नाश करने के लिए लगा हुआ हूँ, यहाँ स्थित सभी विपक्षी पक्ष के योद्धा तेरे युद्ध न करने पर भी भविष्य में नही रहेंगे।
कुरुक्षेत्र की धर्म भूमि में भगवान अर्जुन को अपने विराट स्वरूप के दर्शन भी करा रहे हैं साथ में यह उपदेश भी दे रहे हैं— हे अर्जुन !
चलने की कोशिश तो करो, दिशाएँ बहुत हैं,
रास्ते पर बिखरे काँटों से मत डरो,
तुम्हारे साथ दुआएँ बहुत हैं।
यह संदेश केवल अर्जुन के लिए ही नहीं है, बल्कि समस्त मानव जाति के लिए है। आइए ! गीता ज्ञान की तरफ चलें—
अब अर्जुन आगे के श्लोकों में मुख्य-मुख्य योद्धाओं का भगवान के विराट स्वरूप में प्रवेश होने का वर्णन करते हैं।
अमी च त्वां धृतराष्ट्रस्य पुत्राः सर्वे सहैवावनिपालसंघैः ।
भीष्मो द्रोणः सूतपुत्रस्तथासौ सहास्मदीयैरपि योधमुख्यैः ॥
वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति दंष्ट्राकरालानि भयानकानि ।
केचिद्विलग्ना दशनान्तरेषु सन्दृश्यन्ते चूर्णितैरुत्तमाङ्गै ॥
अर्जुन कहते हैं- हे प्रभों! धृतराष्ट्र के सभी पुत्र अपने समस्त सहायक वीर राजाओं के सहित तथा पितामह भीष्म, द्रोणाचार्य, सूत पुत्र कर्ण और हमारे पक्ष के भी प्रधान योद्धा भी आपके भयानक दाँतों वाले विकराल मुख में तेजी से प्रवेश कर रहे हैं, और उनमें से कुछ तो दाँतों के दोनों शिरों के बीच में फ़ंसकर चूर्ण होते हुए दिखाई दे रहे हैं। यहाँ भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण का विशेष रूप से नाम लेने का तात्पर्य है कि, ये तीनों ही अपने कर्तव्य का पालन करने के लिए युद्ध में आए थे।
भीष्म जी की प्रतिज्ञा दुनिया भर में प्रसिद्ध है। उन्होने अपने पिताजी को प्रसन्न करने के लिए विवाह न करने की प्रतिज्ञा की और जीवन पर्यंत अखंड ब्रह्मचारी रहे। इस प्रतिज्ञा पर वे इतने डटे रहे कि उन्होंने अपने गुरु परशुराम के साथ युद्ध किया, पर अपनी प्रतिज्ञा नहीं तोड़ी। इसी महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने हाथ में हथियार न ग्रहण करने की प्रतिज्ञा की थी। परंतु जब भीष्म ने प्रतिज्ञा कर ली कि यदि आज भगवान से शस्त्र नहीं ग्रहण नहीं करवा दिया तो शांतनु का पुत्र नहीं। तो भगवान को भी अपनी प्रतिज्ञा छोड़कर चाबुक और चक्र लेकर भीष्म की तरफ दौड़ना पड़ा। भीष्म की प्रतिज्ञा तो बनी रही किन्तु भगवान की प्रतिज्ञा टूट गई। धन्य हैं भगवान, अपने भक्त की लाज रखने के लिए अपनी प्रतिज्ञा तक तोड़ देते हैं।
द्रोणाचार्य दुर्योधन का अन्न खा रहे थे इसलिए अपना कर्तव्य समझ कर दुर्योधन के पक्ष से युद्ध कर रहे थे, किन्तु उनमें निष्पक्षता थी। उन्होने अर्जुन को ब्रह्मास्त्र छोड़ना और उसको वापस लेने की भी विद्याएँ सिखाई थीं, जबकि अपने पुत्र अश्वत्थामा को केवल ब्रह्मास्त्र छोड़ना ही सिखाया, वापस लेने की विद्या नहीं सिखाई। कर्ण विचित्र दानवीर थे। इंद्र के मांगने पर अपने कवच कुंडल दे दिए थे। माता कुंती के माँगने पर उन्होने उनके पाँच पुत्रों के बने रहने का वचन दिया था और कहा था, कि मैं युधिष्ठिर, भीम, नकुल, सहदेव को मारूँगा नहीं, पर अर्जुन के साथ मेरा युद्ध होगा। अगर अर्जुन मुझे मार देगा तो तेरे पाँच पुत्र रहेंगे ही और अगर मैंने अर्जुन को मारा तो मेरे सहित तेरे पाँच पुत्र रहेंगे।
यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति ।
तथा तवामी नरलोकवीराविशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति ॥
अर्जुन कहते हैं- हे प्रभों! जिस प्रकार नदियों की अनेक जल धारायें बड़े वेग से समुद्र की ओर दौड़तीं हुई प्रवेश करती हैं, उसी प्रकार सभी वीर योद्धा भी आपके आग उगलते हुए मुखों में प्रवेश कर रहे हैं।
यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतंगाविशन्ति नाशाय समृद्धवेगाः ।
तथैव नाशाय विशन्ति लोकास्तवापि वक्त्राणि समृद्धवेगाः ॥
जिस प्रकार कीट-पतंग अपने विनाश के लिये जलती हुई अग्नि में बड़ी तेजी से प्रवेश करते हैं, उसी प्रकार ये सभी लोग भी अपने विनाश के लिए बहुत तेजी से आपके मुखों में प्रवेश कर रहे हैं।
लेलिह्यसे ग्रसमानः समन्ताल्लोकान्समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भिः ।
तेजोभिरापूर्य जगत्समग्रंभासस्तवोग्राः प्रतपन्ति विष्णो ॥
हे विश्वव्यापी भगवान! आप उन समस्त लोगों को जलते हुए सभी मुखों द्वारा निगलते हुए सभी ओर से चाट रहे हैं, और आपके भयंकर तेज प्रकाश की किरणें सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को आच्छादित करके झुलसा रहीं है।
आख्याहि मे को भवानुग्ररूपोनमोऽस्तु ते देववर प्रसीद ।
विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यंन हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम् ॥
हे सभी देवताओं में श्रेष्ठ ! कृपा करके आप मुझे बतलाइए कि आप इतने भयानक रूप वाले कौन हैं? मैं आपको नमस्कार करता हूँ, आप मुझ पर प्रसन्न हों, आप ही निश्चित रूप से आदि भगवान हैं, मैं आपको विशेष रूप से जानना चाहता हूँ क्योंकि मैं आपके स्वभाव को नहीं जानता हूँ। भगवान के उग्र रूप को देखकर अर्जुन इतने घबरा जाते हैं कि अपने ही सखा श्रीकृष्ण से पूछ बैठते हैं कि आप कौन हैं?
श्रीभगवानुवाच
कालोऽस्मिलोकक्षयकृत्प्रवृद्धोलोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः ।
ऋतेऽपित्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः ॥
श्री भगवान ने कहा – मैं इस सम्पूर्ण संसार को नष्ट करने वाला महाकाल हूँ, इस समय इन समस्त प्राणियों का नाश करने के लिए लगा हुआ हूँ, यहाँ स्थित सभी विपक्षी पक्ष के योद्धा तेरे युद्ध न करने पर भी भविष्य में नही रहेंगे।
तस्मात्त्वमुतिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून्भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम् ।
मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् ॥
भगवान ने कहा– हे सव्यसाची ! अर्जुन
(बाए हाथ से भी बाण चलाने में कुशल थे इसलिये उनको सव्यसाची कहा जाता है।) जब तुमने यह देख लिया कि तुम्हारे मारे बिना भी ये प्रतिपक्षी जीवित नहीं बचेंगे, तो तुम यश को प्राप्त करने के लिये युद्ध करने के लिये कमर कस लो और शत्रुओं को जीतकर सुख सम्पन्न राज्य का भोग करो। ये सभी पहले ही मेरे ही द्वारा मारे जा चुके हैं, तू तो युद्ध में बस केवल निमित्त बन जा।
द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च कर्णं तथान्यानपि योधवीरान् ।
मया हतांस्त्वं जहि मा व्यथिष्ठायुध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान् ॥
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं— द्रोण, भीष्म, जयद्रथ, कर्ण आदि महारथी मेरे द्वारा मारे जा चुके हैं। इन महान योद्धाओं से तू बिना किसी भय के युद्ध कर, इस युद्ध में तू ही निश्चित रूप से शत्रुओं को जीतेगा।
जिसके माथे पर भगवान का हाथ हो उसे कौन परास्त कर सकता है?
मूकं करोति वाचालं पङ्गुं लङ्घयते गिरिम् ।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम् ॥
श्री वर्चस्व आयुस्व आरोग्य कल्याणमस्तु
जय श्री कृष्ण