मुकुल व्यास
भविष्य में किसी अपराधी को पकड़ने के लिए जासूसों और जांचकर्ताओं को सतह से डीएनए के नमूने उठाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। वे हवा से ही डीएनए के नमूने एकत्र करके अपराधी का पता लगा लेंगे। आपको यह जान कर अचरज होगा कि हम हर जगह अपना डीएनए छोड़ते रहते हैं। हवा में भी हमारे डीएनए के अंश मौजूद होते हैं। रिसर्चरों ने पहली बार हवा के नमूनों से जंतु-डीएनए एकत्र किया है। मनुष्य और अन्य जीव-जंतुओं द्वारा वातावरण में छोड़े जाने वाले डीएनए को पर्यावरणीय डीएनए कहा जाता है। इसे वैज्ञानिक ‘ईडीएनए’ भी कहते हैं। वैज्ञानिक पिछले कुछ समय से पानी में रहने वाली प्रजातियों का पता लगाने के लिए पानी के नमूनों से ईडीएनए निकाल रहे थे लेकिन अभी तक किसी ने भी हवा से जंतु-ईडीएनए निकालने की कोशिश नहीं की थी।
लंदन की क्वींस मेरी यूनिवर्सिटी की इकॉलजिस्ट और इस अध्ययन की प्रमुख लेखक एलिजाबेथ क्लेयर ने कहा कि हम यह देखना चाहते थे कि क्या हम हवा से ईडीएनए को छान कर जमीनी जानवरों की उपस्थिति का पता लगा सकते हैं। उन्होंने कहा कि हमारी दिलचस्पी यह पता करने में भी है कि क्या बिलों या गुफाओं में रहने वाले जीवों का अंदाजा पाने के लिए ईडीएनए का उपयोग किया जा सकता है। इन स्थानों में रहने वाली प्रजातियों तक पहुंच पाना या उन्हें पकड़ना मुश्किल होता है।
अपने प्रयोग में क्लेयर और उनके सहयोगियों ने एक एनिमल फैसिलिटी से ईडीएनए एकत्र करने की कोशिश की जहां नेकेड मोल रेट (पूर्वी अफ्रीका का एक चूहा) को रखा गया था। आश्चर्य की बात यह थी कि रिसर्चरों को इस जंतु के बाड़े और बाड़े वाले मकान से एकत्र हवा के नमूनों से नेकेड मोल रेट और मनुष्य दोनों के डीएनए मिले। अमेरिका की टेक्सस टेक यूनिवर्सिटी के इकॉलजिस्ट मैथ्यू बार्न्स ने कहा कि इस प्रयोग से सिद्ध होता है, हवा के नमूनों से बड़े जानवरों के डीएनए भी एकत्र किए जा सकते हैं। बार्न्स ने कहा कि हम हवाई डीएनए से उन वन जीवों का पता लगा सकते हैं जिनके लुप्त होने का खतरा है।
रिसर्चर भविष्य में इस तकनीक का उपयोग दुर्गम स्थलों में रहने वाली प्रजातियों की निगरानी के लिए करेंगे। जानवर के बाड़े में मनुष्य के डीएनए की मौजूदगी से रिसर्चरों को हैरानी अवश्य हुई। बार्न्स ने कहा कि लगभग हर नमूने में मनुष्य के डीएनए मिलना एक बड़ी बाधा भी थी। एक तरफ इससे पता चलता है कि डिटेक्शन का यह तरीका बहुत ही संवेदनशील है। दूसरी तरफ इससे यह भी जाहिर होता है कि हवा के नमूने रिसर्च टीम के डीएनए से भी प्रदूषित हो सकते हैं। इस तरह के प्रदूषण से बचने के लिए रिसर्चरों को एयर फिल्टर, गाउन और हेयर नेट आदि का प्रयोग करना पड़ेगा ताकि वे हवा के नमूनों में अपना डीएनए न मिला सकें।
पिछले दशक में वानस्पतिक प्रजातियों और जीव-जंतुओं के अध्ययन और प्रबंधन के लिए ईडीएनए के संकलन और विश्लेषण का सिलसिला आरंभ हुआ। इस अध्ययन से पहले कुछ रिसर्चरों ने हवा से वानस्पतिक डीएनए एकत्र करने की कोशिश की थी। इनमें ज्यादातर प्रयोगों में ऐसे पौधों को सम्मिलित किया गया था जो पराग और बीजों के रूप में हवा में डीएनए छोड़ते हैं। जाहिर सी बात है कि जानवर ऐसा नहीं करते। लेकिन वे अपने थूक और त्वचा की कोशिकाओं के जरिए वातावरण में अपना डीएनए छोड़ते रहते हैं। वैज्ञानिकों की इस नई खोज से हवाई डीएनए विश्लेषण का एक नया क्षेत्र विकसित हो सकता है। जो टेक्नॉलजी सिर्फ पर्यावरणीय आकलन के उद्देश्य से विकसित की गई थी वह दवाओं, अपराध विज्ञान और एंथ्रोपॉलजी में भी बहुत उपयोगी हो सकती है। नई टेक्नॉलजी की मदद से हम कोविड जैसी हवा के जरिए फैलने वाली बीमारियों को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं। इस समय सोशल डिस्टेंसिंग के नियम हवा में वायरस की पहुंच सीमा के आधार पर बनाए गए हैं। लेकिन नई तकनीक से हम हवा से वास्तविक नमूने एकत्र करके सोशल डिस्टेंसिंग के ज्यादा प्रभावी नियम निर्धारित कर सकते हैं। रिसर्चर अब इस टेक्नॉलजी के विविध उपयोग के लिए कंपनियों के साथ बात कर रहे हैं।
(एनबीटी से साभार)