दूसरों की गलतियां माफ करना सीखे, थोड़ी सहनशक्ति भी बढ़ाएं
गलती हो जाती है। यह तो मनुष्य का स्वभाव है। दूसरों की गलतियां माफ़ करना सीखें। थोड़ी सहनशक्ति भी बढ़ाएं।
संसार में ऐसा कौन व्यक्ति है, जो गलती नहीं करता? ईश्वर को छोड़कर, सभी मनुष्य आदि प्राणी गलतियां करते हैं। छोटी या बड़ी, किसी न किसी प्रकार की, कोई न कोई, गलती सबसे होती है। क्यों हो जाती हैं गलतियां?
इसलिए कि आत्मा अल्पज्ञ और अल्पशक्तिमान है। अल्पज्ञ होने से उसे बहुत जगह पर भ्रांतियां हो जाती हैं। अनेक स्थानों पर संशय हो जाते हैं। और उसका शक्ति सामर्थ्य भी कम है। वह सब जगह सावधानी रख भी नहीं पाता। इन कारणों से कभी न कभी, कहीं ना कहीं, कुछ-न-कुछ, गलती सभी से हो ही जाती है।
अल्पज्ञता अल्पसामर्थ्य आदि कारणों से व्यक्ति से अनजाने में गलतियां हो जाती हैं। कहीं कहीं वह अपने स्वार्थ के कारण, अपने क्रोध लोभ अभिमान आदि दोषों को न रोक पाने के कारण, जानबूझकर भी गलतियां कर देता है। अर्थात कुछ गलतियां अनजाने में हो जाती हैं, और कुछ जानबूझकर भी की जाती हैं।
जो गलतियां अनजाने में या अविद्या के कारण हो गई, अथवा छोटी-छोटी गलतियां हो गई, वे तो 2 / 4 बार माफ की जा सकती हैं। परंतु जो जानबूझकर गलतियां की जाएँ, बार बार समझाने पर भी न छोड़ी जाएं, अब उसे तो ‘गलती’ नहीं कहेंगे; बल्कि अब तो उसे ‘धोखाधड़ी दुष्टता धूर्तता’ इत्यादि नाम से कहेंगे। ऐसी धूर्तता दुष्टता आदि करने पर, उस व्यक्ति को माफ नहीं किया जा सकता। उसको तो दंड ही देना होगा। क्योंकि वेदों का यह सिद्धांत है, कि, दंड के बिना कोई सुधरता नहीं है.
यदि कोई व्यक्ति छोटी मोटी गलती करे, एक दो बार करे, तो उसे माफ़ करें। अपनी सहनशक्ति बढ़ाएँ। और उसको समझाएं भी, कि वह भविष्य में सावधानी का प्रयोग करे, और आगे ऐसी गलतियां न करे। उसे 2 / 4 बार समझाएं। इतने मात्र से उसे कोई बड़ा दंड नहीं दिया जाना चाहिए। अर्थात उसकी भारी पिटाई नहीं कर देनी चाहिए, अथवा उससे संबंध तोड़ नहीं देना चाहिए। जैसे किसी पुस्तक का एक पन्ना फट जाए, तो आप पूरी पुस्तक फाड़कर नहीं फेंक देते।
हां, जो व्यक्ति बार-बार गलतियां करे, जानबूझकर करे, धूर्तता और दुष्टता करे। बार बार समझाने पर भी न सुधरे। उससे भी मार पीट तो न ही करें, उससे संबंध तोड़ कर अलग हो सकते हैं। यही उसके लिए वर्तमान में बहुत बड़ा दंड होगा। ऐसी स्थिति में आप अपने जीवन में अशान्ति उत्पन्न न करें, उसे ईश्वर के न्यायालय में छोड़ दें। बाकी बचा हुआ दंड उसे ईश्वर दे देगा, ऐसा सोचकर आप उससे अलग हो सकते हैं, और शान्ति से जी सकते हैं।
हो सकता है, ऊपर बताया हुआ समाधान कुछ लोगों को समझ में न आए। वे बदला लेने को ही उद्यत हों, और यह मानते हों, कि हम उसे ऐसे कैसे छोड़ देंगे? हम तो उससे पूरा बदला लेंगे। तो ऐसे लोग भले ही न्यायालय में जाएं। और यदि वहां न्याय मिलता हो, तो ले लें। उसमें मुझे कोई आपत्ति नहीं है।
परंतु यदि न्यायालय में भी न्याय न मिलता हो, अथवा 15/20 वर्ष तक लाखों रुपए फीस खर्चने के बाद भी, तथा इतने वर्षों तक चिंता एवं तनाव का दुःख भोगने के बाद भी यदि संतोषजनक न्याय न मिले, तब उसकी अपेक्षा तो ऊपर बताया समाधान अधिक अच्छा है। अब दोनों रास्ते आपके सामने हैं। संबंध तोड़ने का, और न्यायालय में जाने का। आपको जो अच्छा लगे, उसी पर चलिए।
– स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।