Categories
आर्थिकी/व्यापार

लॉकडाउन अंतिम विकल्प के मायने

मदन सबनवीस

पिछले साल जब कोरोना महामारी ने पंजा मारा तो दुनिया सन्न रह गई। जवाबी कदम उठा भी तो लॉकडाउन का। भारत ने मार्च 2020 के आखिरी हफ्ते में इस दिशा में कदम बढ़ाए। अगले दो महीनों में इसे पूरी सख्ती से लागू किया। जून में अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हुई। इस दौरान लाखों लोगों की रोजी-रोटी का जरिया छिन गया। दुकानें और दूसरी इकाइयां बंद करनी पड़ीं। खरीद-फरोख्त घट गई। निवेश तो ठप सा हो गया। टैक्स कलेक्शन घटने से सरकार के राजस्व पर भी आंच आई।

इस साल मार्च में पिछले साल जैसी ही चीज दोबारा होती दिखी। लेकिन इस बार दो बातें अलग हैं। एक तो यह कि कोरोना के मामले 3 लाख से ऊपर चले गए हैं। पिछले साल आंकड़ा बहुत कम था। दूसरा अंतर यह है कि पिछले साल तो सब अवाक रह गए थे, लेकिन इस बार हमें पता होना चाहिए था कि क्या किया जा सकता है और क्या नहीं। इस बार केंद्र ने राज्यों पर छोड़ दिया है कि वे वायरस से निपटने की रणनीति तय करें। प्रशासन में एक ही जगह से सारे फैसले नहीं किए जा रहे और अब फोकस वैक्सीन मुहैया कराने पर है।

राज्यों की दुविधा
वायरस से निपटने के लिए राज्यों ने अलग-अलग कदम उठाए। महाराष्ट्र ने अप्रैल के आखिर तक लॉकडाउन का फैसला किया। दिल्ली, जयपुर, बेंगलुरु, इंदौर जैसे शहरों में अलग-अलग लेवल का लॉकडाउन लगा है। अधिकतर राज्य दूसरे राज्यों से आने वालों से नेगेटिव कोविड रिपोर्ट की मांग करने लगे हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि इन कदमों का क्या असर होगा?

लॉकडाउन लगने के बाद घर लौटते प्रवासी मजदूर

पहली बात तो यह कि वायरस पर कब तक काबू पा लिया जाएगा, यह कोई नहीं जानता। लिहाजा पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि पहली मई को लॉकडाउन या दूसरी पाबंदियों में ढील मिलेगी। चुनावी राज्यों और कुंभ मेला के लिए उत्तराखंड में सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों की जिस तरह धज्जियां उड़ाई गईं, उसके चलते आने वाले दिनों में कोरोना के मामले बढ़ेंगे। हरिद्वार में ऐसा दिख भी चुका है। इसका मतलब यह भी है कि राज्य दुविधा में फंस जाएंगे कि पाबंदियों में ढील दी जाए या नहीं।

दूसरी बात यह है कि लॉकडाउन जैसा भी हो, लोगों की आवाजाही घटती है और इससे कंजम्पशन पर असर पड़ता है। होटल, टूरिज्म, एयर ट्रैवल, रिटेल शॉपिंग जैसी सेवाओं का उपभोग काफी घटेगा। जिन चीजों और सेवाओं को आवश्यक श्रेणी में नहीं रखा गया है, उनसे जुड़ी दुकानें या इकाइयां बंद करनी पड़ें तो कारोबार पर असर पड़ता है।

तीसरी अहम बात यह है कि वस्तुओं और सेवाओं के उपभोग में भले ही लोकल लेवल पर असर पड़े, लेकिन इससे अधिकतर कंपनियों की उत्पादन की योजनाएं प्रभावित होंगी। पुणे में ऑटो कंपनियां पहले ही उधेड़बुन में हैं कि कारखाने पूरी क्षमता से चलाए जाएं या नहीं क्योंकि एक महीने का लॉकडाउन दो महीनों तक भी खिंच सकता है। ठीक यही बात टेक्सटाइल्स के बारे में भी है, जिसे आवश्यक वस्तु नहीं माना जाता। लॉकडाउन में ई-कॉमर्स साइट्स पर भी अगर कपड़ों के ऑर्डर नहीं दिए जा सकेंगे तो डिमांड घटेगी। इससे इस इंडस्ट्री के उत्पादन पर असर आएगा।

चौथा पहलू यह है कि कंस्ट्रक्शन की तमाम गतिविधियां रुक गई हैं। मझोले और छोटे उद्यमों यानी MSME को हालात बिगड़ने का डर सता रहा है। ऐसे में महाराष्ट्र से एक बार फिर प्रवासी मजदूरों ने अपने-अपने राज्यों का रास्ता पकड़ना शुरू कर दिया। अनिश्चितता बढ़ने पर लौटने वालों की तादाद में इजाफा होगा। महाराष्ट्र सरकार ने 5 हजार 550 करोड़ रुपये के राहत पैकेल का ऐलान किया है। इसे तुरंत लागू किया जाना चाहिए ताकि कामगारों का भरोसा बहाल किया जा सके और वे राज्य में ही बने रहें। पिछले साल प्रवासी मजदूरों ने जो कुछ झेला, उसे वे भूले नहीं हैं।

पांचवीं बात यह है कि सरकारी राजस्व पर भी असर पड़ेगा। पिछले साल सभी राज्य GST कलेक्शन को लेकर मुश्किल में फंस गए थे। कलेक्शन में बड़ी गिरावट दिखी। सेस फंड के जरिए राज्यों को इस कमी की भरपाई नहीं कर पाया था केंद्र। छठी बात यह है कि कई उद्यमों के बंद होने का असर फाइनैंशल सेक्टर पर भी पड़ेगा। किसी भी कंपनी या इंडस्ट्री की जो उत्पादन क्षमता होती है, उसके उपयोग में अगर कमी आएगी तो आमदनी और मुनाफे पर भी असर पड़ेगा। इससे कर्ज चुकाने की क्षमता भी प्रभावित होगी। यह एक बड़ी चिंता है बैंकिंग सेक्टर के लिए। मार्च के अंत में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बैंकिंग सेक्टर कर्ज वापसी को लेकर पहले ही सांसत में है। इसके डूब सकने वाले कर्ज का आंकड़ा बढ़ सकता है।

अनुमान में कमी
तो ये जो सारी बातें हैं, इनको जोड़कर देखें तो कैसी तस्वीर बनती है? अनुमान है कि मौजूदा वित्त वर्ष में भारत का GDP पिछले साल के मुकाबले 10 फीसदी से ज्यादा रहेगा। केयर रेटिंग्स का अनुमान था कि GDP ग्रोथ 11 फीसदी से अधिक होगी। लेकिन महाराष्ट्र और कारोबार के दूसरे बड़े ठिकाने अब लॉकडाउन के साये में हैं। लिहाजा GDP ग्रोथ के अनुमान में 0.5 से 0.6% तक की कमी आ सकती है। यानी एक महीने के लॉकडाउन के चलते भी करीब 70 हजार करोड़ रुपये का फर्क दिख सकता है। लॉकडाउन लंबा खिंचने पर नुकसान भी बड़ा होगा। जो राज्य पाबंदियां लगाएंगे, उनके राजस्व पर भी आंच आएगी।

पिछले साल देशभर में लॉकडाउन लगा। इस बार अलग-अलग जगहों पर है। लिहाजा उत्पादन के मोर्चे पर कुल नुकसान पिछले साल जितना नहीं है। लेकिन वायरस का प्रसार बढ़ रहा है और इसके चलते देश में कई दिक्कतें उभर सकती हैं।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version