‘नामचीन’ राजनेताओं के पुत्रों की स्तरहीन राजनीति
अजय कुमार
नेता पुत्रों ने राजनीति का स्तर इतना गिरा दिया है कि जब भी यह मुंह खोलते है ‘जहर’ ही उगलते हैं। राहुल गांधी तो इस खेल में बदनाम हैं ही, बहन प्रियंका भी कम नहीं हैं। दोनों नेताओं को मोदी-योगी सरकार की फजीहत करने में मजा आता है।
चंद राजनैतिक दलों के नेताओं और कुछ किसान नेताओं की हठधर्मी और जुगलबंदी ने देश और मोदी सरकार के लिए संकट खड़ा कर दिया है। महामारी के इस दौर में भी यह लोग अपनी जहरीली जुबान बंद रखने को तैयार नहीं हैं। महामारी के इस दौर में जब इन नेताओं को देश की जनता में विश्वास पैदा करने के लिए काम करना चाहिए था, तब यह जनता को बरगलाने और भड़काने में लगे हैं। झूठी खबरें फैलाई जा रही हैं। यह वह नेता हैं जिन्हें जनता बार-बार ठुकरा चुकी है। इसमें बड़ी जमात अपने जमाने के दिग्गज नेताओं के उन पुत्रों की भी है जो कभी जनता की कसौटी पर खरे नहीं उतर पाए। यह वह नेता हैं जो अपने आप को महाज्ञानी समझते हैं जबकि इनके पास बेसिक जानकारी भी नहीं रहती है।
इन नेता पुत्रों ने राजनीती का स्तर इतना गिरा दिया है कि जब भी यह मुंह खोलते है ‘जहर’ ही उगलते हैं। राहुल गांधी तो इस खेल में बदनाम हैं ही, बहन प्रियंका भी कम नहीं हैं। दोनों नेताओं को मोदी-योगी सरकार की फजीहत करने में जितना मजा आता है, उतनी ही इनकी जुबान कांग्रेस शासित राज्यों को लेकर बंद रहती है। वर्ना महाराष्ट्र, राजस्थान, पंजाब और झारखंड के हालात भी कम खतरनाक नहीं हैं। अन्य नेता पुत्र भी राहुल-प्रियंका के पदचिन्हों पर चलते नजर आ रहे हैं। स्थिति यह है कि अखिलेश यादव हर समय योगी सरकार की खाामियां गिनाते रहते हैं। हद तो तब हो जाती है जब अखिलेश कहते हैं कि मोदी सरकार गरीबों को फ्री में कोरोना से बचाव का इंजेक्शन नहीं लगा रही है। जबकि यह इंजेक्शन शुरू से फ्री में ही लग रहा है। योगी सरकार को घेरने की दौड़ अखिलेश अकेले नहीं लगा रहे हैं इस रेस में प्रियंका गांधी भी पीछे नहीं हैं क्योंकि वह भी अखिलेश-मायावती की तरह 2022 में यूपी का सीएम बनने का सपना पाले हुए हैं। ऐसा ही कारनामा बिहार में लालू के पुत्र कर रहे हैं। वह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ जनता के गुस्से को भड़काने में लगे हैं। एक तरफ यह नेता पुत्र जनता को भड़का रहे हैं तो दूसरी तरफ किसान आंदोलन को भी हवा देने में लगे हैं। महामारी के दौर में जब हर कोई चाह रहा है कि किसान आंदोलन वापस लेकर सुरक्षित घरों में जाकर रहें तब यह नेता किसान आंदोलन की आवाज बने हुए हैं।
बहरहाल, महामारी के इस दौर में किसान आंदोलनकारियों के हौसले इसलिए तो बढ़े हुए हैं ही कि कुछ नेताओं की इससे सियासत चल रही है, वहीं सकट इसलिए और बड़ा होता जा रहा है क्योंकि आंदोलनकारी किसानों के दोनों हाथों में लडडू हैं। यदि सरकार सख्ती नहीं करती है तो किसान नेता मनमानी पर उतर आते हैं और सख्ती करती है तो किसान नेता भोले-भाले किसानों को भड़का कर आगे कर देते हैं। यही वजह है तीनों केंद्रीय कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ दिल्ली-एनसीआर के बॉर्डर पर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों के किसानों का धरना जारी है। कोरोना वायरस संक्रमण के बढ़ते खतरे और प्रभाव के बीच संयुक्त किसान मोर्चा धरना प्रदर्शन से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है। धीरे-धीरे किसान आंदोलन का एक सच यह भी सामने आने लगा है कि प्रदर्शनकारी तीनों कृषि सुधार कानूनों की अच्छाई को न समझ कर अपने नेताओं-आकाओं के हाथ की कठपुतली बन गए हैं। खासकर संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं के अलावा, भाकियू (चढ़ूनी) के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी और भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत लगातार किसानों का गुमराह कर रहे हैं। कोरोना को लेकर भी यह नेता भ्रम की राजनीति में लगे हैं।
कृषि कानूनों में सुधार के खिलाफ चल रहे आंदोलन में गुरनाम सिंह चढ़ूनी गत दिनों टीकरी बॉर्डर के मंच पर पहुंचे। मंच पर आए गुरनाम चढ़ूनी ने कहा कि सरकार हमारे आंदोलन को जबरन खत्म नहीं करवा सकती। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि सरकार यह न सोचे कि किसानों को दबाव में घर भेज दिया जाएगा। आंदोलन स्थल पर कोरोना का कोई खतरा नहीं है। यहां पर बता दें कि दिल्ली में लॉकडाउन लगने से पहले ही भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने ऐलान कर दिया था कि लॉकडाउन लगने के बावजूद यूपी बॉर्डर पर किसानों का प्रदर्शन नहीं थमेगा। दरअसल, राकेश टिकैत का किसानों पर प्रभाव है, ऐसे में उनके बयान असर करते हैं। यही वजह है कि किसान न तो तीनों कृषि सुधार कानूनों की अच्छाई समझ पा रहे हैं और न ही इस पर हो रही राजनीति की गहराई तक पहुंच सके हैं।