इतिहास पुनर्लेखन के यक्ष प्रश्न
शक्ति वर्मा
‘भारत के स्वर्णिम इतिहास के कुछ पृष्ठ’ पुस्तक इतिहास के पुनर्लेखन की एक कोशिश के रूप में प्रस्तुत की गई है। भारत में एक वर्ग है जो मानता है कि देश के इतिहास के साथ न्याय नहीं किया गया है। भारत का इतिहास पश्चिमी नजरिये से लिखा गया और देशवासियों के साथ भेदभाव बरता गया। इन लेखकों के मुताबिक ज्ञान विज्ञान से लेकर (शौर्य प्रदर्शन) बहादुरी तक में भारतवासियों के आगे कोई नहीं टिकता था। चाहे आयुर्वेद हो, जहाज बनाने का मामला हो या और कई खोजें। दुनिया में उसके आविष्कार और खोज से पहले ही ये तमाम चीजें भारत में मौजूद थीं।
इसी तरह मुस्लिम शासकों और आक्रमणकारियों ने यहां की गौरवशाली परंपरा को नष्ट कर दिया और हिंदू राजाओं द्वारा बनवाई गई मीनारों और गुंबदों के अपने नाम कर लिया। डॉ. राकेश कुमार आर्य ने भी अपनी पुस्तक ‘भारत के स्वर्णिम इतिहास के कुछ पृष्ठ’ में कुछ ऐसी ही बातें कही हैं। पुस्तक में 22 लेख हैं, जिनमें कुछ ऐतिहासिक व्यक्तियों और कुछ ऐतिहासिक इमारतों का वर्णन किया गया है। पहला लेख है रामप्यारी गुर्जर और तैमूर लंग शीर्षक से। इसमें तैमूर लंग के आक्रमण की कहानी है। इसमें रामप्यारी गुर्जर की कहानी है, जिसने 40 हजार महिलाओं की सेना का नेतृत्व किया और तैमूर लंग को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बुरी तरह हराया। तैमूर को जान बचाकर भागना पड़ा।
‘कुतुब मीनार है प्राचीन विष्णु ध्वज’, अनंगपाल तोमर ने बनवाया था दिल्ली का लालकिला, लेख में यह साबित करने की कोशिश की गई है कि इसे बनवाया किसी ने, इतिहास में दर्ज है किसी और का नाम। लेखक बताते हैं कि इसका निर्माण चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के शासनकाल में बराह मिहिर ने करवाया था। वे लिखते हैं कि कुतुबुद्दीन ने केवल नामकरण अपने नाम पर करवा दिया। इसी तरह डा. आर्य लालकिला के संबंध में बताते हैं कि कई वर्ष पूर्व वह उगता भारत टीम के साथ लालकिला के भ्रमण पर गए थे। वहां उन्होंने एक आश्चर्यजनक चीज अपने साथियों को दिखाई। वह लिखते हैं कि एक भवन के मुंडेर की पुताई की ऊपरी परत उतर रही थी। नीचे वाली लेयर पर हिंदू देवी देवताओं के चित्रों की सुंदर चित्रकारी दिखाई पड़ रही थी। स्पष्ट है कि बाद की पुताई के द्वारा ढंक दिया गया होगा। लेखक तकरीबन अपने हर लेख में यह लिखना नहीं भूलते कि इतिहास पर पड़ी धूल को पोछने का समय आ चुका है।
देश की सरकारों को चाहिए कि लाल किला और ताजमहल सहित प्रत्येक ऐसे ऐतिहासिक स्थल की पड़ताल कराई जाए, जिसके निर्माण का श्रेय विदेशी मुगलिया तुर्क को दिया जाता है। यह भविष्य में पता चलेगा कि केंद्र सरकार डॉ. आर्य की सलाह पर कितना अमल करती है और उसका क्या परिणाम निकलता है। यह देखना बड़ा रोचक होगा कि उनके जैसे इतिहासकार पुनर्लेखन के जरिये इतिहास को कितना बदल पाने में कामयाब होते हैं।
पुस्तक : भारत के स्वर्णिम इतिहास के कुछ पृष्ठ लेखक : डॉ. राकेश कुमार आर्य प्रकाशक : साहित्यागार, धामाणी मार्केट की गली, जयपुर पृष्ठ : 128 मूल्य : रु. 300.