महाभारत लेखन की कुछ विचारणीय बातें
महाभारत लेखन की विचारणीय बातें :—
राजा भोज ने अपने “संजीवनी” नामक ऐतिहासिक ग्रन्थ में लिखा है कि,
वेदव्यास जी ने चार सहस्त्र चार सौ श्लोक में ‘जय’ ग्रन्थ की रचना की, जिसके रचयिता (वक्ता) स्वयं वेद व्यास जी व श्रोता वैशम्पायन थे |
उनके शिष्य वैशम्पायन ने पांच सहस्र छः सौ श्लोक जोड़कर दस सहस्त्र श्लोकों का ‘भारत’ ग्रन्थ बनाया, जिसके रचयिता अर्थात वक्ता वैशम्पायन व श्रोता जन्मजेय व उग्रश्रवा थे, तथा स्थान हस्तिनापुर का नागयज्ञ था |
तत्पश्चात उग्रश्रवा जी ने वक्ता बनकर नैमिषारण्य में विभिन्न घटनाओं का प्रक्षेपण कर श्रोता शौनक आदि मुनि को सुनाते हुए ‘भारत’ को ‘महाभारत’ का रुप बना दिया |
महाराज विक्रमादित्य के समय बीस सहस्त्र, राजा भोज के पिता के समय पच्चीस सहस्त्र तथा स्वयं भोज के समय तीस सहस्त्र श्लोक रहा है |
वर्तमान में, प्रक्षिप्तांश के बहुतायत हो जाने से तिरानवे सहस्त्र एक सौ छियासी श्लोक हैं |
“संशोधित महाभारत” ग्रन्थ के रचयिता यशपाल शास्त्री जी का कथन है कि,
महाभारत के मूल रचनाकार ,
श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यास जी महाभारत के घटनाओं के समकालीन ही नहीं, बल्कि कथा में एक पात्र और कौरव-पांडवों के रक्त सम्बन्धी भी थे |
उनके “जय” ग्रन्थ में, कौरव-पांडवों के जन्म के कुछ पूर्व पांडु के वनगमन से लेकर दुर्योधन की मृत्यु तक की कथा होनी चाहिए | वेदव्यास जी ने “जय” ग्रन्थ में स्वयं का वर्णन किया ही नहीं होगा | क्योंकि महाभारत में, वेदव्यास जी ने अपना वर्णन किया होता तो उत्तम पुरुष (मैं) रुप में किया होता, परन्तु अन्य पुरुष (वे) के रुप में किया गया है | और इतना बड़ा साहित्यिक अशुद्धि वेदव्यास जी जैसे विद्वान पुरुष नहीं कर सकते हैं |
वैशम्पायन जी ने “भारत” ग्रन्थ का विस्तार शान्तनु का गंगा से विवाह और भीष्म पितामह के जन्म से लेकर भीष्म पितामह की मृत्यु और अश्वमेध यज्ञ तक किया होगा | वैशम्पायन जी ने वेदव्यास जी का वर्णन उत्तम पुरुष में नहीं करके अन्य पुरुष के रूप में किया है |
उग्रश्रवा जी ने “महाभारत” ग्रन्थ का विस्तार पुरुवंश के आरम्भ से लेकर पांडवों के वनगमन तक किया गया होगा | इस ग्रन्थ में, वैशम्पायन, जन्मेजय तथा उग्रश्रवा के मुख से कितने ही असम्बद्ध कथाओं का समावेश किया गया |
वर्तमान महाभारत में,
जितने भी वैशम्पायन उवाच, जनमेजय उवाच हैं,
प्रसंग विरुद्ध और पुनरुक्त प्रसंग है,
अलौकिक, अप्राकृतिक, सृष्टिकर्म विरुद्ध तथा वरदान और अभिशाप पर आधारित प्रसंग वर्णित है,
वे सब प्रक्षिप्त हैं |
इन प्रक्षिप्तांशों ने मूल कथा को कंकड़ युक्त चावल बना दिया है और मूल ग्रन्थ को वृहद और महाग्रन्थ बना दिया है |
इस कथा को शुद्ध करना एक महत्वपूर्ण कार्य है | और यह सभी शोध का विषय भी है |
…… राजेश बरनवाल |