वैदिक सृष्टि संवत की वैज्ञानिकता और कालगणना

 

नवसंवत्सरोत्सव चैत्र सुदि’प्रतिपदा सृष्टि संवत्- 1960853122 विक्रम संवत्- 2078 और शक्संवत- 1943 के शुभ अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।


आज हम विचार करेंगे कि सृष्टि के निर्माण को कितने वर्ष व्यतीत हो चुके हैं ?
इसके अलावा चारों युगों की काल गणना ,आयु सीमा अर्थात् कालावधि कितनी है ?
कितना समय चारों युगों के योग का होता है?
वैसे ही अनेक संबंधित एवम प्रासंगिक बिंदुओं पर विचार करते हैं।
प्रश्न : कलयुग का प्रारंभ कब हुआ?
उत्तर : कलयुग का प्रारंभ सन के अनुसार 20 फरवरी 3102 ईसा पूर्व को समय 2 बजकर 27 मिनट 30 सेकंड पर हुआ था।
प्रश्न : कलयुग का अब तक का कितना समय गुजर चुका है?
कलयुग का अब तक जो समय 5123वर्ष हो चुके हैं।

प्रश्नचारों युगों क्रमश: सतयुग, त्रेता ,द्वापर, कलयुग का कुल समय अलग-अलग व चारों का योग क्या होता है ?
उत्तर
सतयुग का 17 लाख 28 हजार वर्ष का समय होता है , त्रेता 12 लाख 96000 वर्ष , द्वापर 8 लाख 64 हजार वर्ष व कलयुग का 432000 वर्ष का समय होता है.। एक चतुर युगी 43,20000 वर्ष की होती है।

प्रश्नमहा युग किसे कहते हैं?
उत्तर
चारों युगों को एक साथ जोड़ कर जो समय 43 लाख 20000 वर्ष का बनता है उसको एक महा युग कहते हैं।

प्रश्न : मन्वन्तर क्या होता है?
उत्तर_एक कालगणना है।
जब 71 बार चारों युग या दूसरे शब्दों में कहें महायुग व्यतीत हो जाते हैं तो यह एक मन्वन्तर होता है।
स्पष्ट होता है कि एक मन्वन्तर में 71 महायुग (अर्थात चारों युगों का संयुक्त जोड़ )होते हैं।

प्रश्न : 71 महायुग का कुल कितना समय होता है?
उत्तर: 30 करोड़ 67 लाख20000 हजार वर्ष होते हैं।

प्रश्न ,: प्रलय कब होती है?
उत्तर : -14 मन्वन्तर गुजर जाने के बाद प्रलय होती है।

प्रश्न : -कल्प क्या होता है?
उत्तर :- 14 मन्वन्तरों का एक कल्प होता है।

प्रश्न – अब तक इस सृष्टि के कितने मन्वन्तर बीत चुके हैं ?
उत्तर – 6 मन्वन्तर बीत चुके हैं।

प्रश्न – ब्रह्मा का दिन क्या होता है?
उत्तर_ ब्रह्मा के 1 दिन को कल्प कहते हैं अथवा सृष्टि समय कहते हैं ।जिसमें चार अरब 32 करोड वर्ष होते हैं।

प्रश्न ,- 14 मन्वन्तर में कितनी चतुर्युगी बीत जाती हैं?
उत्तर ,- एक सहस्त्र अर्थात 1000 चतुर्युगी।

प्रश्न – स्वायम्भुव मनु किसे कहते हैं ?
उत्तर :- जिस समय नाक्षत्रिक सृष्टि उत्पन्न होती है उस काल को स्वायम्भुव मनु कहते हैं। सरल भाषा में जिस समय केवल आकाश में नक्षत्र उत्पन्न होते हैं उस काल को नाक्षत्रिक सृष्टि कहा जाता है।

प्रश्न – वैवस्वत मनु क्या होता है?
उत्तर :- जब मानव सृष्टि उत्पन्न होती है, उसको वैवस्वत मनु कहते हैं ?

प्रश्न :- मनु की अब तक कितनी चतुर युगी बीत चुकी हैं? अर्थात वैवस्तव मनु या मनुष्य की सृष्टि उत्पन्न हुए कितना समय हो चुका है?

उत्तर :- वैवस्तव मनु की 27 चतुर्युगी बीत चुकी हैं । यह 28 वां कलियुग चल रहा है ।इसके बाद अर्थात इस कलयुग के बाद 28 चतुर्युगी संपन्न हो चुकी होंगी।

प्रश्न – क्या यह सब कल्पित एवं गपोड़ हैं ?
उत्तर :- यह सब वैज्ञानिक ज्योतिष गणना के आधार पर है अर्थात कल्पित नहीं है।

प्रश्न – 27 चतुर्युगियों का जोड़ कितना वर्ष का होता है?
उत्तर_ 11,66,40,000 वर्ष।

प्रश्न वैवस्वत मनु से आज तक का योग क्या होता है ?
उत्तर : 12,05,33,122 वर्ष

प्रश्न :- ये व्यवस्था क्या ज्योतिष के सिद्धांतों पर अवलंबित है?
उत्तर_ज्योतिष के सिद्धांतों पर तो अवलंबित है ही परंतु वहीं तक परिमित नहीं है ,अपितु महाभारत और बाल्मीकि रामायण तक भी हैं ।अतएव युगों के द्वारा ठहराया हुआ सृष्टि सम्वत आधुनिक वैज्ञानिक खोजों से कहीं अधिक विश्वास के योग्य है।
इसी साधन से हम कह सकते हैं कि सृष्टि उत्पन्न हुए 6 मन्वन्तर ,27 चतुर्युगी तीन युग और चौथे कलियुग के 5122 वर्ष बीत चुके हैं।

प्रश्न – पृथ्वी कब बनी और मनुष्य सृष्टि कब हुई ?
उत्तर – नक्षत्र सृष्टि के समय पृथ्वी की उत्पत्ति हुई। पृथ्वी में से टूटकर चंद्रमा का निर्माण हुआ। नाक्षत्रिक
सृष्टि की वर्ष संख्या कुछ कम 2अरब वर्ष है। जिसका ऊपर हम उल्लेख कर चुके हैं ।परंतु यह समय मनुष्य की उत्पत्ति का नहीं है ।यहां यह अंतर सावधानीपूर्वक एवं समझदारी से समझ लेना चाहिए ।यह समय सृष्टि की उत्पत्ति के आरंभ से आज तक का है। सृष्टि उत्पत्ति तब से मानी जाती है जब से नक्षत्र सृष्टि का बनना आरंभ हुआ था। यह वह समय है जब प्रलय का समय पूरा होकर सृष्टि का बनना आरंभ हुआ था। अर्थात उन्मुक्त प्रकृति का परस्पर संघात आरंभ हुआ था । परमाणु से अणु आदि आरंभ होते हैं। इस समय से लेकर सूर्य, ग्रह, नक्षत्र आदि बनने तक के समय को स्वायम्भुव मनु कहते हैं। स्वायम्भुव मनु के समय में उत्पन्न उत्तानपाद ध्रुव आदि नक्षत्र आकाश में विद्यमान हैं ।जिस प्रकार स्वायम्भुव मनु के समय नक्षत्र जगत तैयार हुआ, उसी प्रकार दूसरे स्वारोचिष मनु के समय में पृथ्वी तैयार हुई।
तीसरे मनु के समय में पृथ्वी से चंद्रमा पृथक हुआ। चौथे मनु में समुद्र से भूमि निकली। पांचवे में वनस्पति हुई ।छठी में पशु और सातवें वैवस्तव मनु में मनुष्यों का जन्म हुआ था ।
जिन का हिसाब ऊपर हम 27 चतुर युगी के बाद दे चुके हैं।
जब प्रलय काल आएगा तो यह क्रम विपरीत हो जाएगा पहले मनुष्य नष्ट होगा । उसके बाद पशु नष्ट होंगे। ऐसा ही प्रत्येक के विषय में पढ़ें व मान लें अर्थात जान लें।
एक समय महर्षि नारद उद्यालक मुनि महाराज, पापड़ी मुनि महाराज, सनत मुनि महाराज , स्वायम्भुव मुनि महाराज ,कोपात्रीजी ,महर्षि कपिल मुनि महाराज आदि ऋषियों का एक समाज विराजमान था ।वहां वर्णन होने लगा कि सतयुग क्या है? त्रेता क्या है ?द्वापर क्या है ?और कलयुग क्या है?
जब तीनों कालों का वर्णन हो चुका और कलयुग का वर्णन होने लगा तो देव ऋषि नारद मगन होने लगे। पापड़ी मुनि महाराज ने कहा कि आप मगन क्यों हो रहे हो ?तब देवऋषि नारद मुनि महाराज ने कहा था कि जिस समय द्वापर समाप्त हो जाएगा उस समय इतना बड़ा अज्ञान हो जाएगा कि जिसकी जैसी बुद्धि होगी उसी के अनुसार धर्म की मर्यादा चलने लगेगी।
तब दार्शनिक समाज ने नारद मुनि से प्रश्न किया कि भगवन ऐसा क्यों होगा? उन्होंने कहा था कि जिस काल में अज्ञानता आ जाती है ,जिस काल में धर्म की मर्यादा समाप्त हो जाती है। उसी काल का नाम कलयुग माना गया है।
जैसे मानव की बाल अवस्था, युवा अवस्था, मध्यम अवस्था ,वृद्धावस्था यह चार अवस्थाएं हैं ।इसी प्रकार से सत्य युग , त्रेता द्वापर और कलयुग हैं ।जब मानव की वृद्धावस्था हो जाती है उस समय बुद्धि समाप्त हो जाती है। अज्ञानता छाने लगती है।
नारद मुनि ने कहा कि जिस काल में निधि समाप्त हो जाती है तो वहां अज्ञान के मत चल जाते हैं ।
आगे चलकर के जब कलयुग आएगा उस काल में नाना प्रकार के मतों में चलकर तथा वेद के मतों में नहीं चल कर वेद के अनुयाई तो बनेंगे परंतु वेद के वाक्यों को न मानकर अपनी जठराग्नि की पूर्ति के ही प्रयत्न किए जाएंगे।
वर्तमान में अर्थात आधुनिक काल में यदि जातिवाद चल रहा है तो चलने दो इसमें हमारा क्या प्रयोजन है इसमें हमें किसी प्रकार की आपत्ति नहीं है। हम तो उस वाक्य का उच्चारण करेंगे जो हमारे आदि ऋषियों ने नियुक्त किया है। यदि हम किसी की अज्ञानता भरी वार्ताओं को मान लें तो हमारी आत्मा की हानि हो जाएगी। अर्थात् वेद वाक्यों की हानि हो जाएगी।

प्रश्न :- सूर्य वंश और चंद्रवंश के राजाओं की प्रधान शाखाएं कब से प्रारंभ हुई ?
उत्तर :- हमारे आर्य कुलभूषण क्षत्रिय ही राजा थे । सूर्यवंश और चंद्रवंश राजाओं की दोनों प्रधान शाखा में वैवस्वत मनु से ही आरंभ होती है ।इसके पूर्व का कोई छत्रिय वंश नहीं जाना जाता। इससे प्रतीत होता है कि मनुष्य जाति का प्रादुर्भाव वैवस्वत मनु के समय से हुआ। परंतु हमारी सृष्टि की संख्या नाक्षत्रिक सृष्टि के आरंभ से है , वैवस्वत मनु से नहीं है । सृष्टि के आरंभ का अर्थ है छूटे हुए परमाणुओं का फिर से मिल जाना।
जब से परमाणु मिलने लगते हैं तभी से सृष्टिका आरंभ माना जाता है ।तभी से ब्रह्मा का दिन शुरू होता है। तभी से कल्प का आरंभ होता है।
जब तक 1 -1 परमाणु अलग-अलग न हो जाए तब तक सृष्टि ही समझी जाती है अर्थात परमाणुओं का बिल्कुल छूट जाना ही पूर्ण प्रलय है।
यह स्मरण रखना चाहिए कि मनुष्य, प्राणी, सूर्य ,चंद्र ,पशु ,पक्षी , वनस्पति या पल्लव के बाद ही उत्पन्न हुआ है । इन सब के रहते ही मनुष्य का अंत हो जाएगा। अर्थात सबसे पहले मनुष्य का ही अंत होगा।
यद्यपि 12करोड़ 5लाख 33 हजार 122 वर्षों का जो विवरण हम ऊपर दे करके आए हैं ,यह अविश्वसनीय सी लगती है परंतु यह संख्या विज्ञान व ज्योतिष के आधार पर सही निकलती है। यही काल मनुष्य की उत्पत्ति का होता है।

प्रश्न :- मनुष्य की उत्पत्ति सर्वप्रथम कहां पर हुई
उत्तर – त्रिविष्टप पर्वत जिसकी एक शाखा उत्तर में चीन की तरफ जाती है पूरब में असम तक जाती है और पश्चिम में हिंदू कुश पर्वत माला जाती है । तीन शाखाओं का होने के कारण त्रि शब्द का प्रयोग किया गया है ,जिसे अब हम तिब्बत कहते हैं, पर मनुष्य की उत्पत्ति हुई। यहीं से भारत की प्राचीन सभ्यता जैसे-जैसे भारत के आर्य लोग बाहर जाते रहे। उन देशों में किसी न किसी घटना के आरंभ होने से अपना संवत ,साका या कालगणना चली आ रही हैं। उन सब संवत के कालगणनाओं के आधार पर भी मनुष्य करोड़ों वर्ष से अपनी ऐतिहासिक वर्ष संख्या चला रहा है। यह ऐतिहासिक घटनाएं हैं। जो झूठी नहीं हो सकती ।ऊपर दिए हुए आर्यों के मौलिक संवत से चीनियों का सम्वत कुछ ही कम है उसकी वर्ष संख्या 9 करोड़ 60 लाख 2429 है। खताई लोगों का संवत 8 करोड़ 88 लाख 40 हजार 301 वर्ष का है।
इन संवतो की लंबी संख्याओं को असत्य न समझना चाहिए ।
चाईलडिया वाले पृथ्वी की उत्पत्ति को 215 मिरियाद वर्ष बतलाते हैं 1 मिरियद 10000 वर्ष का होता है इसलिए उनका संवत दो करोड़ 1500000 वर्ष तक जाता है, परंतु यह पृथ्वी की उत्पत्ति का समय नहीं है किंतु उनके किसी संवत का समय है।

आदि सृष्टि से संकल्प संवत
एक अरब 97 करोड़ 29 लाख 49 हजार 122 वर्ष।
परंतु वैवस्वत मनु से आर्य संवत क्या है?
12 करोड़ 5लाख 33 हजार 122वर्ष।

चीन के प्रथम राजा से चीनी संवत क्या है?
9 करोड़ 60 लाख 2 हज़ार 429 वर्ष।

खता की प्रथम पुरुष से खटाई संवत क्या है?
8 करोड़ 88 लाख 40 हजार 301 वर्ष।

पृथ्वी की उत्पत्ति का चाल्डियन संवत क्या है?
2 करोड़ 1500000 वर्ष।

ईरान के प्रथम राजा से ईरानियन संवत क्या है?
1लाख 89हजार 908 वर्ष है।

आर्यों के फिनिशिया जाने का समय क्या है उनका संवत क्या है?
30000 वर्ष।

आर्यों के इजिप्ट मिश्र जाने के समय से इजिप्शियन संवत क्या है?
28, हजार 582 वर्ष।

मूसा के धर्म प्रचार से मूसाई संवत क्या है?
३४९६ वर्ष।

ईशा के जन्मदिन से ईसाई संवत क्या है?
हम सभी जानते हैं इसको 2021।

उपरोक्त सभी संवत को देखने से यह निष्कर्ष निकलता है कि मनुष्य की उत्पत्ति का समय बहुत अच्छी प्रकार से मिल जाता है ।चीन और खता के संवतो से हमारा संवत कुछ ही अधिक है। इसका कारण यही है कि यह मूल से संबंध रखता है। वे बाकी शाखाओं से संबंध रखते हैं। इनमें से कुछ को लेकर संसार के इतिहास विभाग बनाए जाते हैं।
ऊपर जो संवत और सृष्टि के उत्पत्ति के अंक दिए गए हैं, उनमें से कुछ वह समय सूचित करते हैं। जब जातियां आर्यों से पृथक होकर भारत से विदेश को गई ।मनुष्यों को उत्पन्न हुए करीब 12 करोड वर्ष हुए ज्ञात होता है । उत्पत्ति के तीन करोड़ वर्ष बाद सबसे पहले चीन वाले पृथक हुए । उनके चीन को गए 9 करोड़ वर्ष बीते हैं ।यह वह समय है जब तिब्बत से हिमालय पर ऊंचाई की तरफ सृष्टि का प्रथम प्रारंभ होता है।
इनके बाद खटाई लोगों को गए आठ करोड़ वर्ष बीत गए । इनके बाद चाल्डिया वालों को पृथक हुए 2 करोड वर्ष हो गए।
इसके पश्चात यहाँ ज्योतिष ग्रंथों के लिखने का समय आता है ।सूर्य सिद्धांत को लिखे 21,65000 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। बाल्मीकि रामायण में रामचंद्र को हुए 12 लाख 69 हजार वर्ष हो गए।

फिनिशिया वाले यहां से दोबारा गए उस समय को 30000 वर्ष हो गए । मिश्र वालों को 28000 वर्ष से अधिक हो गए । 22000 वर्ष के ब्राह्मण ग्रंथ विद्यमान है।
मेगास्थनीज के समय की वंशावली भी आज तक 9000 वर्ष की होती है और 4000 वर्ष से अधिक की अनु पूर्वी भारतीय वंशावली उपस्थित है। इस प्रकार इतिहास के मुख्य खंड बनाए जा सकते हैं।
इस प्रकार भारत वर्ष के इतिहास से संसार भर का पूरे आर्यवर्त का संबंध है। यह सब यहां से गए हैं और बहुतों के जाने का समय उपयुक्त संवतों से ज्ञात होता है ।
विश्व के इतिहास की यही सामग्री है और भारत के करोड़ों वर्ष का चुंबक इतिहास है। संसार भर के प्राचीन संवत और इतिहास से स्पष्ट हो जाता है कि आर्यों का सृष्टि संवत और मनुष्य उत्पत्ति काल कितना प्रमाणिक है।
हम अपने वैज्ञानिक और सृष्टि नियमों के अनुकूल सृष्टि संवत को मनाएं और सृष्टि नियमों के विपरीत अवैज्ञानिक और अतार्किक नव वर्ष मनाने की परंपरा को भूल जाएं। यदि हम ऐसा करेंगे तो निश्चित रूप से हम अपने धर्म संस्कृति और इतिहास की परंपराओं की रक्षा कर पाएंगे। पुनः नए सृष्टि संवत का आगमन होने पर आपको बहुत-बहुत बधाई।

देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट
चेयरमैन : उगता भारत

1 thought on “वैदिक सृष्टि संवत की वैज्ञानिकता और कालगणना

  1. जिस बात को मैं इतने दिनो से लोगो को बताना चाहता था ,वो सारी बाते यह बहुत ही व्यवस्थित ढंग से लिखी गई है ।
    जिस भी महापुरुष ने ये कार्य किया है , वो धन्य है ।।

    आज के लोग कुछ भी कह ले , वास्तविक इतिहास ही यही है ।।

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