भारत के चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टॉफ़ जनरल बिपिन रावत ने कहा है चीन के पास भारत के ख़िलाफ़ साइबर हमले करने की क्षमता है और वो देश की बड़ी व्यवस्था में गड़बड़ी पैदा कर सकता है।
दिल्ली के थिंक-टैंक विवेकानंद इंटरनेशनल फ़ाउंडेशन के एक वर्चुअल कार्यक्रम में जनरल रावत ने भारत और चीन की साइबर क्षमताओं की तुलना तो की ही, साथ ही रक्षा क्षेत्र में तकनीक के महत्व पर भी बात की।
जनरल रावत ने चीन की ओर से पेश साइबर ख़तरे की बात ऐसे वक्त की है, जब पिछले साल अक्तूबर में मुंबई में ब्लैकआउट हो गया था और कई हलकों में इसके पीछे चीन की धरती से किए गए कथित साइबर हमले को ज़िम्मेदार ठहराया गया।
रविवार को ईरान के नतांज़ परमाणु केंद्र में हुए नुक़सान के लिए एक कथित साइबर हमले को ही ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है। साल 2015 में यूक्रेन में बिजली ब्लैकआउट के लिए रूस के कथित साइबर हमले को ज़िम्मेदार बताया गया था।
12 अक्तूबर को मुंबई में बिजली गुल हो गई. लोकल ट्रेन, अस्पताल, जीवन के हर पक्ष पर उसका असर पड़ा।
ब्लैकआउट को भारत-चीन सीमा विवाद और सीमा पर सैनिकों के बीच झड़पों से जोड़कर देखा गया।
अमेरिका की साइबर सिक्योरिटी कंपनी रिकॉर्डेड फ़्यूचर के मुताबिक़ भारत की ऊर्जा पैदा करने वाली कंपनियों और बंदरगाहों पर इस साइबर हमले के पीछे “चीन से जुड़े” रेड इको नाम के ग्रुप का हाथ है।
बॉस्टन की इस इंटेलिजेंस कंपनी के सीईओ क्रिस्टोफ़र ऐलबर्ग ने बताया कि पिछले साल छह से आठ महीने तक इस ग्रुप को ट्रैक किया गया और बाद में ये दिखा कि ये ग्रुप ख़ासकर भारतीय ऊर्जा स्टेशंस को निशाना बना रहा है।
ऐलबर्ग के मुताबिक़ उन्होंने उन दिनों में जब संबंधित भारतीय अधिकारियों से संपर्क किया, तो अधिकारियों ने जानकारी ले तो ली, लेकिन बातचीत को आगे नहीं बढ़ाया।
दूसरी ओर राष्ट्रीय साइबर सिक्योरिटी कोऑर्डिनेटर लेफ्टिनेंट (डॉ) जनरल राजेश पंत ने कहा कि उन्हें घटना के बारे में महाराष्ट्र से रिपोर्ट का इंतज़ार है और उसके बिना कुछ भी कहना अटकलबाज़ी होगी।
उन्होंने बताया, “हमारे पास जब रिपोर्ट राज्य से आएगी, तभी पता चलेगा कि क्या है, क्योंकि हमारे रिकॉर्ड के मुतबिक़… बाक़ी हमारी एजेंसीज़ हैं, उनके हिसाब से ये साइबर हमला नहीं है।”
चीन साइबर हमलों के आरोपों से इनकार करता रहा है।
उधर एक जानकार सूत्र ने इस कथित हमले में भारत को हुए “भारी नुक़सान” का दावा करते हुए कहा, “आप इस हमले की तुलना एमआरआई मेडिकल प्रक्रिया से कीजिए। जब आपका एमआरआई होता है, तो आपके शरीर की हर कमज़ोरी दिख जाती है. इसी तरह हैकर्स को भारतीय पावर कंपनियों के सिस्टम्स की कमज़ोरियों, उनमें किन उपकरणों का इस्तेमाल किया गया, उन्हें कहाँ से ख़रीदा गया था, इन सबका पता चल गया होगा।”
आईआईटी कानपुर में कंप्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग के प्रोफ़ेसर डॉक्टर संदीप शुक्ला को डर है कि हो सकता है कि चीनी मैलवेयर अभी भी भारतीय सिस्टम्स में मौजूद हों।
मैलवेयर यानी कंप्यूटर्स को प्रभावित करने वाला सॉफ्टवेयर। वो कहते हैं, “ये मैलवेयर अपनी मौजूदगी की जानकारी अपने कमांड और कंट्रोल सर्वर को भेजते रहते हैं कि वहाँ मौजूद हैं। (और अगर मैलवेयर अभी मौजूद हैं तो) किसी भी मौक़े पर चीन में मौजूद कमांड और कंट्रोल सर्वर इन्हें इस्तेमाल कर सकता है।”
यानी जानकारों के मुताबिक़ ख़तरा कितना बड़ा है और उसका स्वरूप क्या है, ये अभी पता नहीं है।
प्रोफ़ेसर शुक्ला कहते हैं, “चीन अभी इसलिए कुछ नहीं कर रहा है कि क्योंकि ऐसा करना युद्ध की घोषणा करना जैसे होगा और उसके कूटनीतिक और अन्य परिणाम भी होंगे।”
यहाँ विशेषज्ञ बार-बार याद दिलाते हैं कि साइबर दुनिया में कोई तीसरा पक्ष भी तकनीक का इस्तेमाल कर ऐसा दिखाने की कोशिश कर सकता है कि हमला चीन की तरफ़ से किया गया है, लेकिन ऐसा करने के लिए उन्हें चीन के सर्वर को अपने क़ाबू में करना होगा, जो आसान नहीं है।
(विनीत खरे
बीबीसी संवाददाता)
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