दिन काशी शास्त्रार्थ। सांय काल का समय था।
आज प्रात: काशी के प्रमुख पंडितों से बनारस के महाराजा की अध्यक्षता में, हजारों काशी के निवासियों के समक्ष वेदों के प्रकाण्ड पंडित स्वामी दयानंद की वीर गर्जना की “वेदों में मूर्ति पूजा का विधान नहीं हैं ” को कोई भी जब असत्य न कह सका तो धोखे का प्रयोग कर सत्य को छुपाने का प्रयास किया गया था।परन्तु अपने आपको विद्वान कहने वाले कशी के प्रकाण्ड पंडित यह भूल गए की सत्य सूर्य के समान होता हैं जो कुछ काल के लिए बादलों में छिप तो सकता हैं परन्तु उसके बाद जब वह अपनी किरणों से बादलों का छेदन कर चमकता हैं तब उसका तेज पहले से भी अधिक होता हैं।
स्वामी दयानंद शास्त्रार्थ स्थल से लौट कर अपने निवास स्थान पर आ गए। उनसे मिलने नगर के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति (महन्त ज्योति स्वरूप उदासी) आये।
स्वामी जी तब एक उद्यान में टहल रहे थे। कई देर तक स्वामी जी के साथ विचार विमर्श करने और सत्संग करने के बाद भी उन व्यक्ति का कहना था की आज स्वामी दयानंद के साथ इतना बड़ा अन्याय शिक्षा और धर्म की नगरी काशी में हुआ था पर स्वामी दयानंद के चेहरे पर तनिक भी शिकायत का आभास तक नहीं था।
धन्य हैं वीतराग सन्यासी जो परनिंदा से अपने आपको सुरक्षित रखे हुए थे।
आज सभी आर्यों को स्वामी दयानंद के जीवन की इस प्रसंग से शिक्षा लेनी चाहिए की सदैव परनिंदा में अपने बहुमूल्य और कीमती समय को न लगाकर तप, स्वाध्याय और ईश्वर उपासना से जीवन का उद्धार करे।
स्वामी दयानंद के जीवन के इस सन्देश को आर्यों को अपनाने की प्रबल आवश्यकता हैं तभी देश, जाती और धर्म का कल्याण होगा।
#डॉविवेकआर्य.