विश्व स्वास्थ्य दिवस पर विशेष…
डॉ. वंदना सेन
जिसके पास स्वस्थ शरीर है, उस पर मानसिक तनाव भी अपना प्रभाव छोड़ पाने में असमर्थ ही होता है। एक कहावत है पहला सुख निरोगी काया। यानी जीवन का प्रथम और सबसे बड़ा सुख अगर कोई है तो वह केवल और केवल स्वस्थ जीवन है। स्वस्थ जीवन का तात्पर्य केवल इतना भर नहीं है कि अच्छा आहार लिया जाए, बल्कि इसमें अन्य बातें भी समाहित हैं।
विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर लोगों को इस बात के लिए प्रेरित किया जाता है कि विश्व का मानव समुदाय स्वस्थ कैसे रहे। विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना दिवस पर मनाए जाने वाले इस दिन पर विश्व के अनेक देशों में स्वास्थ्य पर आधारित कार्यक्रमों के माध्यम से जनता को जागरूक किया जाता है। वर्तमान में कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दिशानिर्देश जारी किए हैं। जिसके कारण कोरोना के फैलाव में कुछ सीमा तक रोक भी लगी है। अगर यह दिशानिर्देश जारी नहीं किए जाते तो विश्व की हालत क्या होती, इस बारे सोचने मात्र से कंपकंपी छूट जाती है। कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन से प्राप्त निर्देशों के आधार पर कई देश अनेक प्रकार के अभियान भी चला रहे हैं, जिसमें अपेक्षित सफलता भी मिली है। भारत ने इस दिशा में उल्लेखनीय योगदान दिया है। कोरोना रोकने वाला टीका बनाकर भारत के वैज्ञानिकों ने विश्व में अपना नाम रौशन किया है। भारत का स्वभाव सदैव ही सर्वे संतु निरामयाः वाला रहा है। इस बार भी भारत ने विश्व के अनेक देशों में वैक्सीन पहुंचाकर विश्व को निरोग रखने का अपना संस्कार कायम रखा है।
वर्तमान में एक और बड़ी स्वास्थ्य समस्या मानसिक तनाव की भी है। तनाव के कारण भी कई व्यक्ति अनेक बीमारियों को आमंत्रण दे रहे हैं। जिसके चलते मधुमेह, रक्तचाप आम बीमारी सी होती जा रही हैं। आज विश्व के लगभग सभी देशों में 3 से 12 प्रतिशत व्यक्ति इस बीमारी की चपेट में हैं। इस बीमारी के बारे में यही कहा जाता है कि यह अनुवांशिक होती है, लेकिन आजकल मधुमेह की बीमारी का कारण खानपान में लापरवाही और शारीरिक निष्क्रियता भी है। व्यक्ति को कितना खाना और कितना श्रम करना इसका एक निर्धारित परिमाण है, लेकिन आज के व्यक्ति यह परिमाण या तो भूल गए हैं या फिर लापरवाह हो गए हैं। जिसके कारण शारीरिक असमानता भी एक विकार बनकर उभर रही है। जो बीमारी का बड़ा कारण है।
शारीरिक स्वास्थ्य जीवन की ऐसी बहुमूल्य संपत्ति है, जिसे धन से न कोई खरीद सका है और न ही खरीदा जा सकता है। विश्व के कई धनाढ्य व्यक्तियों को भी बीमार होते देखा है। भारतीय चिंतन के अनुसार स्वस्थ जीवन जीने के कुछ आवश्यक दिनचर्या बनाई गई है, उसके अनुसार जीवन जीने वाला व्यक्ति अपने शरीर को लेकर बहुत ही जागृत रहता है। इस दिनचर्या के अनुसार अगर दिन के 24 घंटों को विभाजित किया जाए तो यही कहना समुचित होगा कि आठ घंटे अपने लिए, आठ घंटे समाज के लिए और आठ घंटे परिवार के लिए होने चाहिए, लेकिन आज का व्यक्ति पूरे समय परिवार के स्वार्थ पूर्ति का साधन मात्र ही बनता जा रहा है। उसे न अपने शरीर की चिंता है और न ही उसके पास समाज के लिए समय है। पैसे कमाने के लिए स्वास्थ्य से खिलवाड़ किया जा रहा है, जबकि सच्चाई यह है कि स्वास्थ्य संसार की वो दौलत है, जिसके सामने धन संपत्ति का कोई मूल्य नहीं। इसी प्रकार आजकल दिनचर्या नाम की कोई चीज बहुत दूर होती जा रही है। कई लोग सुबह का उगता हुआ सूरज नहीं देख पाते। इसका एक मात्र कारण रात्रि में देर तक जागना ही है। जिसके कारण भोजन पचाने की शारीरिक क्षमता कम होती जाती है।
शरीर के स्वास्थ्य के लिए कैसा आहार लेना चाहिए, इसकी जानकारी का अभाव बढ़ता जा रहा है। आहार की शुद्धता बहुत ही आवश्यक है। भारतीय संस्कृति कहती है कि जैसा खाओगे अन्न, वैसा बनेगा मन। इस कहावत के अनुसार अपने शरीर को देने वाले आहार का चिंतन किया जाए तो सारी असलियत समझ में आ जाएगी। आजकल बाजारों में चाट बाजारों में लगने वाली भीड़ यही प्रमाणित करती है कि हमारा खानपान दूषित हो चुका है। मैदा से निर्मित पदार्थों को पचाने के पाचन तंत्र को कठिनाई होती है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो मैदा निर्मित खाद्य पदार्थ पच ही नहीं पाते। जिससे हम मोटापे का शिकार होते जा रहे हैं। यही मोटापा आगे चलकर कई शारीरिक समस्याओं के पैदा करने का कारण बनता है।
भारत के ऋषि मुनियों द्वारा शरीर को स्वस्थ रखने के लिए योग की प्रक्रिया दी है। योग एक ऐसी विधा के रूप स्वीकार की जाने लगी है, जिससे शारीरिक विकार दूर किए जा सकते हैं। यही कारण है कि दिनोंदिन योग की महत्ता बढ़ती जा रही है। योग करने से जहां एक ओर मानसिक शांति मिलती है, वहीं शारीरिक शक्ति का भी प्रकटीकरण होता है। हमारी सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि हम योग की कीमत तब ही समझ पाते हैं, जब हम बीमार होते हैं। अगर इस सत्य का पालन पहले से ही करने की ओर प्रवृत्त हो जाएं तो हो सकता है कि ऐसी नौबत ही न आए। इसके लिए हमें योग की शक्ति की पहचान करना आवश्यक है। हमें बीमारियों से दूर रहना है तो हमको हमेशा उल्लास और प्रसन्नता के साथ जीवन जीना चाहिए।
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार एवं सहायक प्राध्यापक हैं)
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डॉ. वंदना सेन, सहायक प्राध्यापक
पीजीवी साइंस कॉलेज, जीवाजीगंज
लश्कर, ग्वालियर (मध्यप्रदेश)
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