जब अंग्रेजों द्वारा काट लिए गए थे महान क्रांतिकारी वीरांगना नीरा आर्या के स्तन

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नीरा आर्या भारत के क्रांतिकारी आंदोलन की एक ऐसी महान शख्सियत है जिन्होंने अपने अद्भुत व्यक्तित्व और कृतित्व से क्रांतिकारी आंदोलन को सहायता और बल प्रदान किया। भारत के क्रांतिकारी आंदोलन से नफरत करने वाले कम्युनिस्ट और कांग्रेसी मानसिकता के इतिहासकारों ने इस महान देशभक्त नारी कोई इतिहास में उचित स्थान नहीं दिया है। जबकि नीरा आर्या के व्यक्तित्व में ऐसी बहुत सारी विशेषताएं हैं जिन्हें अपनाकर आज की युवा पीढ़ी देश के लिए बहुत कुछ कर सकती है। ‘राष्ट्र प्रथम’ का संदेश यदि किसी महान नारी के जीवन से निकलता है तो वह केवल नीरा आर्या हैं। उनका व्यक्तित्व कांग्रेसी मानसिकता के इतिहासकारों द्वारा गढ़ी गई इस धारणा को झुठलाने का एक पर्याप्त प्रमाण है कि भारत को गांधी जी के नेतृत्व में बिना खड़ग बिना ढाल आजादी मिल गई थी।
नीरा जी ने अपने व्यक्तित्व से यह प्रमाणित किया कि देशभक्ति के सामने परिवार भक्ति कोई मायने नहीं रखती और यदि कभी जीवन में परिवार और राष्ट्र में से किसी एक का चुनाव करने का अवसर आए तो परिवार को त्याग कर व्यक्ति को राष्ट्र को ही चुनना चाहिए। ऐसी महान वीरांगनाओं को यदि इतिहास से मिटाने का प्रयास किया गया है तो इससे बड़ा कोई पाप नहीं हो सकता। देश उन ‘चाटुकार राज भक्त’ गांधीवादी लोगों के कारण आजाद नहीं हुआ जिन्होंने जेलों में भी पर्याप्त सुविधाएं प्राप्त कीं और जो कभी भी अंग्रेजों के विरोध में आकर सड़कों पर काम करते हुए दिखाई नहीं दिए। जिन्होंने पूरे जीवन ब्रिटिश राज भक्ति के प्रति वफादार रहने का संकल्प लिया और राष्ट्र के प्रति संकल्पित लोगों की उपेक्षा और उपहास किया। ब्रिटिश राज भक्ति से प्रेरित इन लोगों के आंदोलनों को बढ़ा चढ़ाकर इस प्रकार प्रस्तुत किया गया कि जैसे ही उनके कारण ही देश को आजादी मिली थी। ऐसे लोग ही आज हमारे देश के चाचा, बापू, गुरुदेव या मदर बने बैठे हैं। ब्रिटिश राज भक्ति के प्रति समर्पित और वफादार इन लोगों को उपकृत करते हुए अंग्रेजों ने जाते-जाते सत्ता सौंप दी। उस सत्ता का अनुचित लाभ उठाते हुए इन लोगों ने पूरे देश में यह मुनादी करा दी कि आजादी तो केवल हमारे कारण आई।
सत्ता स्वार्थी इन लोगों के द्वारा इतिहास के साथ की गई गंभीर छेड़छाड़ पर हमने भी कभी ध्यान नहीं दिया और हम भी चाचा बापू की जय बोलते आगे बढ़ते चले गए। बहुत देर बाद जाकर पता चला कि जिन लोगों ने देश के लिए काम किया था वह तो आजादी के बाद भी असीम यातनाओं के बीच जीवन व्यतीत करते रहे।
नीरा आर्या जी उन्हीं क्रांतिकारियों में से एक रहीं जो आजादी के बाद सड़कों पर फूल बेचते हुए अपना जीवन व्यतीत करने पर मजबूर हो गईं । कभी किसी एक कांग्रेसी ने जाकर उनकी ओर नहीं देखा। किसी ने इतना साहस नहीं किया कि उन्हीं के फूलों में से एक फूल लेकर किसी 15 अगस्त या 26 जनवरी जैसे राष्ट्रीय पर्व के अवसर पर उन्हें सम्मानित कर देता। जो क्रांतिकारी देश के लिए आंसू बहाते रहे और अपने जीवन के खून पसीने को गारा बनाकर राष्ट्र निर्माण के कार्य में लगाते रहे , उनको लेकर किसी ने कभी कोई शेरो शायरी नहीं की , कभी कोई कविता नहीं लिखी , कभी कोई राष्ट्रगान नहीं लिखा ? हमने नीरा को ही उपेक्षित किया हो ऐसा नहीं रेलवे पर चाय बेचकर अपना जीवन बसर करने वाले तात्या टोपे के वंशजों की ओर भी हमने नहीं देखा और ना ही लाल किले की जेल में पड़े वीर सावरकर की ओर जाकर देखने का समय निकाला। ऐसे अनेकों तात्या टोपे ,सावरकर और नीरा रहे जो गरीबी और परेशानी का जीवन जीते हुए संसार से चले गए।
नीरा आर्या को नीरा नागिन के नाम से भी जाना जाता हैं। नीरा को यह नाम सुभाष चंद्र बोस ने दिया था। नीरा आर्या और उनके भाई बसंत कुमार दोनों आज़ाद हिन्द फ़ौज के सिपाही थे।
उनके बारे में यहाँ पर हम यह लेख साभार प्रस्तुत कर रहे हैं :-

नीरा नागिन और उनके भाई बसंत कुमार के जीवन पर कई लेख लिखे गए हैं। कई लोक गायको ने दोनों भाई-बहन के जीवन पर लोक गीत, काव्य संग्रह तथा भजन भी लिखे हैं। नीरा आर्या नीरा नागिन के नाम से प्रसिद्द हैं तथा इनके नीरा नागिन नाम से एक महाकाव्य की भी रचना की लेखकों द्वारा की गई हैं। नीरा आर्या का पूरा जीवन संघर्ष, थ्रिलर और सस्पेंस का मिश्रण हैं।
नीरा आर्या के जीवन पर एक मूवी निकलने की भी खबर कई बार आई हैं। नीरा आर्या एक महान देशभक्त, क्रन्तिकारी, जासूस, सवेदनशील लेखक, जिम्मेदार नागरिक, साहसी और स्वाभिमानी महिला थी। जिन्हे गर्व और गौरव के साथ याद किया जाता हैं। हैदराबाद की महिला नीरा आर्या को पेदम्मा कहते थे।


नीरा आर्या ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के प्राण की रक्षा के लिए सेना में अफसर अपने पति जयकांत दास की हत्या कर दी थी। मौका देखकर जयकांत दास ने सुभाष चंद्र बोस पर गोलियाँ दागीं लेकिन वे गोली सुभाष बाबू के ड्राइवर को जा लगीं । तभी नीरा आर्या ने अपने पति जयकांत दास के पेट में खंजर घोंप कर उसकी हत्या कर दी और राष्ट्र नायक के रूप में विख्यात हो चुके नेताजी सुभाष चंद्र बोस के प्राणों की रक्षा की।
अपने पति की हत्या करने के कारण सुभाष बाबू ने नीरा आर्या को नागिन कहा था। आज़ाद हिन्द फौज के समर्पण के बाद जब दिल्ली के लाल किले में मुक़दमे चला तब आज़ाद  हिन्द फौज के सभी सिपाही बरी कर दिए गए लेकिन नीरा आर्या को अपने अंग्रेज अफसर पति की हत्या के आरोप में काले पानी की सजा सुनाई गई तथा वहाँ इन्हे घोर यातनाएँ दी गईं। आज़ादी के बाद नीरा आर्या ने फूल बेच कर जीवन यापन किया।
नीरा आर्या के भाई बसंत कुमार ने भी आज़ादी के बाद सन्यासी बनकर जीवन यापन किया था। स्वतंत्रता संग्राम में अपनी भूमिका पर नीरा आर्या ने अपनी आत्मकथा भी लिखी हैं। उर्दू लेखिका फरहाना ताज को नीरा आर्या ने अपने जीवन के अनेक प्रसंग सुनाये थे।  प्रसंगों के आधार पर फरहान ताज ने एक उपन्यास भी लिखा हैं,  आज़ादी की जंग में नीरा आर्या के योगदान को रेखांकित किया गया हैं। उन्होंने अपनी आत्मकथा में काले पानी की सजा के दौरान अपने साथ हुईं अमानवीय घटनाओं के बारे में लिखा है कि –

“मैं जब कोलकत्ता जेल से अंडमान की जेल में पहुँची, तो हमारे रहने का स्थान वही कोठरियाँ थी, जिनमे अन्य राजनितिक अपराधी महिला रही थी अथवा रहती थी।
हमें रात के 10 बजे कोठरियों में बंद कर दिया गया और चटाई, कम्बल का नाम भी नहीं सुनाई पड़ा। मन में चिंता होती थी कि इस गहरे समुद्र में अज्ञात द्वीप में रहते स्वतंत्रता कैसे मिलेगी, जहाँ अभी तो ओढ़ने बिछाने का ध्यान छोड़ने की आवश्यकता आ पड़ी हैं ?
जैसे-तैसे जमीं पर लोट लगाई और नींद भी आ गई। लगभग 12 बजे एक पहरेदार दो कम्बल लेकर आया और बिना बोले-चाले ही ऊपर फेंक कर चला गया। कम्बलों का गिरना और नींद का टूटना भी एक साथ ही हुआ। बुरा तो लगा लेकिन कम्बलों को पाकर संतोष भी आया।
अब केवल वही एक लोहे के बंधन का कष्ट और रह-रहकर भारत माता से जुदा होने का ध्यान साथ में था।
सूर्य निकलते ही मुझे खिचड़ी मिली और लोहार भी आ गया, हाथ का सांकल काटते समय चमड़ा भी कटा परन्तु पैरों में से आड़ी-बेड़ी काटते समय केवल दो-तीन बार हथौड़ी से पैरों की हड्डी को जाँचा कि कितनी पुष्ट हैं?
मैंने एक बार दु:खी होकर कहा “क्या अँधा हैं, जो पैर में मारता हैं ? पैर क्या हम तो दिल में भी मार देंगे क्या कर लोगी ? उसने मुझे कहा था।
तुम्हारे बंधन में हूँ कर भी क्या सकती हूँ ? फिर मैंने उसके ऊपर थूक दिया और बोला औरत की इज़्ज़त करना सीखो।
जेलर भी साथ में था उसने कड़क आवाज में कहा “तुम्हे छोड़ दिया जाएगा, यदि तुम सुभाष चंद्र बोस का ठिकाना बता दोगी।”

“वे तो हवाई दुर्घटना में चल बसे” मैंने जवाब दिया  “सारी दुनिया जानती हैं।”
“नेताजी जिन्दा हैं”, तुम झूठ बोलती हो कि वे किसी हवाई दुर्घटना में मर गए” जेलर ने कहा।
“हाँ नेताजी जिन्दा हैं। ”
“तो कहा हैं ?”
“मेरे दिल में जिन्दा हैं वो” जैसे ही मैंने कहा तो जेलर को गुस्सा आ गया था और उसने बोला था कि “तो तुम्हारे दिल से हम नेताजी को निकाल लेंगे।” और फिर उन्होंने मेरे आँचल पर ही हाथ डाल दिया और मेरी आंगी फाड़ते हुवे फिर लोहार की ओर संकेत किया । लोहार ने एक बड़ा सा जम्बूड़  हथियार जैसा फुलवारी में इधर-उधर बढे पत्तों को काटने के काम में आता हैं उस ब्रेस्ट रीपर को उठा लिया और मेरे दाएँ स्तन को उसमे दबाकर काटने चला था, लेकिन उसमे धार नहीं थी, ठूँठा था और उरोजों(स्तन) को दबाकर असहनीय पीड़ा देते हुए दुस्तरी तरफ से जेलर ने मेरी गर्दन पकड़ते हुए कहा, “अगर दुबारा जबान लड़ाई तो तुम्हारे ये दोनों गुब्बारे छाती से अलग कर दिए जाएँगे। ”
उसने फिर चिमटानुमा हथियार मेरी नाक पर मारते हुए कहा “शुक्र मानो महारानी विक्टोरिया का कि इसे आग से नहीं तपाया, आग से तपाया होता तो तुम्हारे दोनों स्तन पूरी तरह उखड जाते। ”
नीरा आर्या की कहानी पढ़ कर कितनी भी कोशिश कर लो आँखों से आशु टपक ही पड़ते हैं। रूह काँप जाती हैं ऐसी कहानियाँ हमें बताती हैं कि हमारी माताओं बहनों ने अपना सब कुछ इस राष्ट्र के लिए न्यौछावर कर दिया था। नीरा आर्या आज़ाद हिन्द फौज में रानी झाँसी रेजिमेंट की सिपाही थी, नीरा आर्या पर अंग्रेजो ने गुप्तचर होने का भी इलज़ाम लगाया था।

नीरा आर्या का जीवन परिचय:-

नीरा आर्या का जन्म 5 मार्च 1902 दो तत्कालीन संयुक्त प्रान्त के खेकड़ा नामक जगह पर हुआ था।वर्तमान में खेकड़ा भारत के उत्तरप्रदेश राज्य में बागपत जिले का एक शहर हैं।  नीरा आर्या के पिताजी एक प्रसिद्द व्यापारी थे। जिनका व्यापर मुख्यतः कोलकत्ता तथा देश के विभिन्न जगहों पर फैला था। नीरा आर्या के पिताजी का नाम सेठ छज्जूमल था। नीरा आर्या का जन्म एक धनि-मनी संपन्न परिवार में होने की वजह से उनकी आरंभिक शिक्षा-दीक्षा की बहुत ही उत्तम व्यवस्था थी। नीरा आर्या का शिक्षा कोलकत्ता के प्रसिद्ध विद्यालय में संपन्न हुई।
नीरा आर्या कई भाषाओं की जानकार थीं। उनकी हिंदी, अंग्रेजी, बांग्ला  साथ-साथ अनेक भाषाओं पर अच्छी पकड़ थी। बड़े उद्योग पति होने के कारण सेठ छज्जूमल ने अपनी बेटी नीरा आर्या की शादी ब्रिटिश भारत के सीआईडी इंस्पेक्टर श्रीकांत जयरंजन दास के साथ कर दी। नीरा आर्या के पति जयकांत एक अंग्रेज भक्त अधिकारी था। अंग्रेजों ने नीरा आर्या के पति जयकांत को सुभाष बाबू की जासूसी करने और उन्हें मौत के घाट उतारने की जिम्मेदारी दी थी।

आज़ाद हिन्द फौज की पहली जासूस:-

नीरा आर्या को आज़ाद हिन्द फौज का पहला जासूस के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो पवित्र मोहन रॉय आज़ाद हिन्द फौज के गुप्तचर विभाग के अध्यक्ष थे। महिला विभाग और पुरुष विभाग दोनों ही गुप्तचर विभाग के अंदर ही आते थे। पहली जासूसी का सौभाग्य नीरा आर्या को मिला। सुभाष चंद्र बोस ने नीरा आर्या को स्वयं यह जिम्मेदारी दी थी। नीरा आर्या ने अपने साथी बर्मा की सरस्वती राजामणि, मानवती आर्या, दुर्गामल गोरखा और डेनियल काले के साथ मिलकर नेताजी के लिए अंग्रेजो की जासूसी भी की थी। जासूसी की घटनाओं को याद करते हुवे नीरा जी अपने आत्मकथा में लिखती हैं कि ” मेरे साथ एक लड़की  मूलतः बर्मा की थी, जिसका नाम सरस्वती था उसे और मुझे एक बार अंग्रेजो की जासूसी करने का कार्य सौपा गया।
हम लड़कियों ने लड़को की वेशभूषा अपना ली और अंग्रेज अफसरों के घरो और मिलिट्री कैंपो में काम करना शुरू किया। हमने आज़ाद हिन्द फौज के लिए बहुत सूचनाएँ इकठ्ठी की। हमारा काम होता था अपने कान खुले रखना, हासिल जानकारियों को साथियों के साथ डिस्कस करना, फिर उसे नेताजी तक पहुँचाना। कभी-कभार हमारे हाथ महत्वपूर्ण दस्तावेज भी लग जाते थे। जब सभी लड़कियों को जासूसी के लिए भेजा गया था, तब हमें साफ़ तौर से बताया गया था कि पकडे जाने पर हमें खुद को गोली मार लेनी हैं। एक लड़की ऐसा करने से चूक गई और जिन्दा गिरफ्तार हो गई। इससे तमाम साथियों और ओर्गनाइजेशन पर खतरा मण्डराने लाना।
मैंने और सरस्वती राजमणि ने फैसला किया कि हम अपनी साथी को छुड़ा लाएंगी। हमने हिजड़े नर्तकी की वेशभूषा पहनी और पहुँच गईं उस जगह जहाँ हमारी साथी दुर्गा को बंदी बना के रखा हुआ था। हमने अफसरों को नशीली दवा खिला दी और अपनी उस साथी को लेकर भाग लीं। यहाँ तक तो सब ठीक रहा लेकिन भागते वक़्त एक दुर्घटना घट गई, जो सिपाही पहरे पर थे, उनमे से एक की बन्दुक से निकली गोली राजामणि की दाई टांग में धस गई, खून का फव्वारा छूटा। किसी तरह लंगड़ाती हुई वो मेरे और दुर्गा के साथ एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गई।
नीचे सर्च ऑपरेशन चलता रहा, जिसकी वजह से तीन दिन तक हमें पेड़ पर ही भूखे-प्यासे रहना पड़ा। तीन दिन बाद ही हमने हिम्मत की और सकुशल अपनी साथी के साथ आज़ाद हिन्द फौज के बेस पर लौट आई। तीन दिन तक टांग में रही गोली ने राजमणि को हमेशा के लिए लंगड़ाहट बख्श दी। राजामणि की इस बहादुरी से नेताजी बहुत खुश हुए और उन्हें आईएनए की रानी झाँसी ब्रिगेड में लेफ्टिनेंट का पद दिया और मै कप्तान बना दी गई।
नीरा आर्य ने आज़ादी के बाद अपने जीवन के अंतिम समय में फूल बेचकर गुजरा किया था तथा फलकनुमा, हैदराबाद में एक झोपडी में रहीं। अंतिम समय में इनकी झोंपडी को भी तोड़ दिया गया। क्योंकि वह सरकारी जमीन पर थी। वृद्धावस्था में चारमीनार के पास उस्मानिया अस्पताल में 26 जुलाई 1998 में एक गरीब, असहाय, निराश्रित, बीमार वृद्धा के रूप में मौत को आलिंगन कर लिया। एक पत्रकार ने अपने साथियों संग मिलकर इनका अंतिम संस्कार किया।
नीरा आर्या द्वारा रचित ग्रन्थ:-

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अंत में बस इतना ही कहूंगा –

उनकी तुरबत पर एक दिया भी नहीं
जिनके खून से जले थे चिराग ए वतन।
आज दमकते हैं उनके मकबरे
जो चुराते थे शहीदों का कफन।।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

 

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