कभी गुजरात सिर्फ में भारत ही नहीं बल्कि एशिया का सबसे सूखा प्रदेश माना जाता था।
उसमें कच्छ तो एकदम सूखा था।कच्छ के तमाम लोग अपनी मातृभूमि को छोड़कर भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में बसने को मजबूर हो गए थे क्योंकि इंसान के लिए पानी की सबसे मूलभूत जरूरत होती है।
सौराष्ट्र का भी हालत ऐसा ही था वहां भी पानी बिल्कुल नहीं था।
गुजरात से होकर सिर्फ नर्मदा नदी ही एकमात्र ऐसी नदी थी जो हर वक्त पानी से भरी रहती थी लेकिन यह गुजरात में बहुत कम दूरी तय करती है और गुजरात में भरूच के पास समुद्र में जा कर गिर जाती है।
आजादी के बाद से ही गुजरात में नर्मदा नदी पर डैम बनाने का सपना सरदार वल्लभ भाई पटेल ने देखा था और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने नर्मदा पर बांध बनाने की मंजूरी दी।लेकिन कुछ सालों बाद सरदार वल्लभभाई पटेल का निधन हो गया।
केंद्र में कांग्रेस और लगभग पूरे भारत में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद भी कांग्रेस ने जान-बूझ कर इस परियोजना को लटका दिया।
फिर जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी तब उन्होंने नर्मदा डैम की परियोजना में रुचि लिया और इसे तेजी से पूरा करने के निर्देश दिए लेकिन फिर अचानक नर्मदा परियोजना रुक गई। हालांकि 2006 में सरदार सरोवर नर्मदा निगम लिमिटेड में कई ऐसे दस्तावेज सार्वजनिक किए जिसमें गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष और कई बड़े नेता इंदिरा गांधी को पत्र लिख कर कहे थे यदि चिमन भाई पटेल के समय में नर्मदा परियोजना पूरी हो गई तब कांग्रेस गुजरात में कभी भी सत्ता में नहीं आ पाएगी। क्योंकि चिमन भाई पटेल इसकी इसे अपनी उपलब्धि बता कर पूरे प्रदेश में प्रसारित करेंगे इसलिए आप अविलंब नर्मदा परियोजना रुकवा दीजिए।
फिर इंदिरा गांधी के निर्देश पर महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश सरकार ने आपत्ति पत्र भेजा और फिर इंदिरा गांधी ने इस परियोजना को लटकाने के लिए नर्मदा परियोजना ट्रिब्यूनल का गठन कर दिया ताकि उस ट्रिब्यूनल में दशकों तक सुनवाई होती रहे और यह परियोजना कभी पूरी ना हो सके।
जब नरेंद्र मोदी जी गुजरात के मुख्यमंत्री बने तब नरेंद्र मोदी जी इस परियोजना के लिए बहुत मेहनत किये।यहां तक कि वह भारत के पहले मुख्यमंत्री थे जो 8 दिनों तक आमरण अनशन पर बैठे थे तब जाकर मनमोहन सिंह दबाव में आए और उन्होंने परियोजना पर काम करने की अनुमति दी।
सुप्रीम कोर्ट में गुजरात सरकार ने बड़े-बड़े वकील रख कर सुनवाई खत्म करवाई।नर्मदा ट्रिब्यूनल में भी गुजरात सरकार ने दशकों तक पैसे खर्च कर के सुनवाई करवाई। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के विस्थापित लोगों के लिए गुजरात सरकार ने गुजरात में कई गांव बनाए।अंततः इस परियोजना की अनुमति मिली।लेकिन उसने भी दो पेंच फंसा दिए गए पहला इसकी ऊंचाई कम रखी गई और दूसरी डैम के ऊपर जो लोहे के विशाल गेट लगाने थे,उसकी मंजूरी केंद्र सरकार ने नहीं दी।
इससे सबसे बड़ी समस्या यह थी कि नर्मदा के मेन कैनाल से सौराष्ट्र और कच्छ की ऊंचाई लगभग 70 मीटर है यानी लगभग 30 मंजिला ऊंची अब नीचे से 70 मीटर ऊंचाई तक पानी ग्रैविटी से नहीं जा सकता था उसके लिए नर्मदा डैम की ऊंचाई बढ़ाना जरूरी था और साथ ही साथ डैम के ऊपर लोहे के दरवाजे लगाने भी जरूरी थी।
नरेंद्र मोदी जब पहली बार प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठते ही सबसे पहले नर्मदा परियोजना की फाइल मंगाई और उन्होंने नर्मदा परियोजना पर गेट लगाने ऊंचाई बढ़ाने की मंजूरी वाली फाइल पर दस्तखत किया।
फिर केंद्र सरकार की मंजूरी मिलते ही यहां रात दिन काम कर के नर्मदा कैनाल,नर्मदा परियोजना शुरू हुआ।डैम की ऊंचाई भी बढ़ी और ऊपर दरवाजे भी लगाए गए।
मुझे याद है 2003 में इंडिया टुडे का एक स्पेशल अंक पानी की समस्या पर था और उसनेअपने मुख्य पन्ने पर थ्रस्टी इंडिया लिखकर एक फोटो छापा था वह जो गुजरात के सौराष्ट्र के सुरेंद्रनगर जिले के लिमडी कस्बे की थी जहां 200 किलोमीटर के बीच में सिर्फ एक ही कुआं था जो पानी जिसमें बहुत नीचे था और हर रोज हजारों महिलाएं उस कुएं से पानी लेने दूर-दूर तक आती थी और उस कुएं पर हमेशा हजारों महिलाओं की भीड़ लगी रहती थी।उस कुएं पर महिलाओं की भारी भीड़ जो पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बनी थी।
उसके बाद गुजरात सरकार ने बड़े पैमाने पर वाटर कंजर्वेशन कार्यक्रम शुरू किया चेक डैम बनाने के लिए सरकार ने खजाना खोल दिया नर्मदा कैनाल का पानी जगह-जगह पहुंचा और आज इंडिया टुडे ने उसी लिमडी जगह की ठीक उसी जगह की फोटो अपने मेन पेज पर छापा है जो पानी से लबालब भरा हुआ है।
मैंने परसों का अभी इंडिया टुडे का गुजरात में गुजरात मॉडल के बारे में विस्तार से पढा जो उसने लिखा है कि पूरी दुनिया को एक न एक दिन पानी की समस्या के खात्मे के लिए गुजरात मॉडल को ही अपनाना पड़ेगा।पूरा लेख तो मुझे बहुत अच्छा लगा लेकिन मैं यह देख कर चौक गया कि इस पूरे लेख में नर्मदा केनाल की खूब तारीफ की गई है।मेन कैनाल,ब्रांच कैनाल,माइनर सब के बारे में विस्तार से बताया गया है कि किस तरह से ना सिर्फ गुजरात बल्कि राजस्थान के जालोर और बाड़मेर जिले तक पानी पहुंचा दिया गया है और यह सारे जिले फसल से लहलहा उठे हैं।
लेकिन कहीं भी आमिर खान,आम आदमी पार्टी की नेता,मेधा पाटेकर,अरुंधति राय और कांग्रेस के तमाम नेताओं के बारे में नहीं लिखा गया है जिन्होंने इस परियोजना को रोकने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था।
मेघा पाटेकर का तो जैसे सपना था कि यह परियोजना जिंदगी में कभी पूरा ना हो और गुजरात यूं ही प्यासा रहे।गुजरात की जमीन सुखी रहे।गुजरात के लोग पानी के लिए मरते रहें। गुजरात के किसान कभी सुखी ना रहें।
इस परियोजना के समय मेघा पाटकर जो बड़ी-बड़ी बातें करती थी की भूकंप आएगा,बाढ़ आएगा,यह होगा,वह होगा इस परियोजना को संपूर्ण रूप से पूरा हुए लगभग 7 साल गुजर चुके हैं ना कहीं भूकंप आया ना कहीं बाढ़ आई ।
आप यह जानकर चौक जाएंगे कि पूरे विश्व का सबसे बड़ा पंपिंग स्टेशन नर्मदा के पानी को सौराष्ट्र और कच्छ में भेजने के लिए बनाया गया है पहले यह पंपिंग स्टेशन बिजली से चलता था लेकिन अब इस पंपिंग स्टेशन को चलाने के लिए सोलर एनर्जी का इस्तेमाल किया जा रहा है क्योंकि पानी को ग्रैविटी के विपरीत 70 मीटर ऊंचाई तक पंप करना था इसीलिए बगैर पंप की यह संभव नहीं है।
नर्मदा का मेन कैनाल आप देखेंगे तब आपको वह किसी नदी जैसा लगता है।एकदम साफ पानी से साल के 12 महीने भरा हुआ रहता है।
जब गुजरात के चारों तरफ फैला इससे सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि भूगर्भ वाटर लेवल भी ऊंचा हो गया और पिछले 20 सालों का गुजरात में बारिश का पैटर्न हरियाली की वजह से बदल गया यानी अब गुजरात में बहुत अच्छी बारिश हो रही है और गुजरात सरकार ने जो चेक डैम परियोजना बनाया उससे गुजरात में पानी के तमाम प्राकृतिक स्रोत लबालब भरे हुए रहते हैं।
इतना ही नहीं मोदी जी ने एक और नया आईडिया नर्मदा के इंजीनियर को दिया कि आप नर्मदा कैनाल पर सोलर पैनल लगाइए इससे बहुत फायदे होंगे क्योंकि पानी का भाप बनकर उड़ना रुकेगा।सोलर पैनल लगाने के लिए अतिरिक्त जमीन की जरूरत नहीं पड़ेगी।अगर सोलर पैनल की सफाई करना हो तो पानी ठीक नीचे ही है और मुफ्त की बिजली भी मिलेगी। नर्मदा कैनाल पर कई सौ किलोमीटर तक सोलर पैनल लगा दिए गए हैं और दुनिया के कई देशों ने इसकी तारीफ़ की है।
( सोशल मीडिया से साभार)