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पुस्तक समीक्षा

अवध यह समय नहीं अनुकूल

शैल शिखर से गिरतीं नदियाँ,
वसुधा के आँचल में।
उच्छृंखल अनियंत्रित जल को,
कूल सहेजे पल में।।
हाहाकार मचातीं लहरें,
तोड़ रहीं निज कूल।
अवध यह समय –
नहीं अनुकूल।।
माली ने भगवान सरिस ही,
नन्हा बीज उगाया।
मातु-पिता ज्यों पाल-पोशकर,
खिलने योग्य बनाया।।
फूलों ने पंखुड़ियों के सँग,
छुपा रखा है शूल।
अवध यह समय-
नहीं अनुकूल।।
शीतल सम्यक सौम्य सुभाषित,
चंदन पड़ा किनारे।
बन बैठे सरताज जगत में,
सूरज सम्मुख तारे।।
चंदन के धोखे में माथे,
पर चढ़ बैठी धूल।
अवध यह समय –
नहीं अनुकूल।।
कैकेयी माता जब होंगी,
पिता धूर्त कुरुराजन।
ऐसे घर में सम्बंधों का,
निश्चय होगा दोहन।।
पुत्र मोह में रहा सहोदर,
भाई को जग भूल।
अवध यह समय –
नहीं अनुकूल।।
संस्कार को छोड़ जमाना,
है विकास अनुगामी।
किन्तु राह केवल विकास का,
सतपथ अन्तर्यामी।।
बनावटीपन के चंगुल में,
काट नहीं रे मूल।
अवध यह समय –
नहीं अनुकूल।।
परसेवा समान इस जग में,
काम नहीं है दूजा।
सच्ची भक्ति यही ईश्वर की,
यही सत्य शुचि पूजा।।
दीन-दुखी असहाय देख मत,
मद के झूले झूल।
अवध यह समय –
नहीं अनुकूल।।
जो आया है, जाना तय है,
सत्य सनातन मानो।
मानवता ही सत्य साधना,
अच्छे से पहचानो।।
चार दिवस का छंणभंगुर जग,
मत खुशियों में फूल।
अवध यह समय –
नहीं अनुकूल।।
असहायों का एक सहारा,
श्रीहरि विष्णु विधाता।
यही पिता,माता,गुरु,स्वामी,
ऋद्धि-सिद्धि के दाता।।
सिया रामजी आएँगे ही,
देख समय प्रतिकूल।
अवध यह समय-
नहीं अनुकूल।।
डॉ अवधेश कुमार अवध
मेघालय – 8787573644
awadhesh.gvil@gmail.com

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