यज्ञ से वायु व जल सुगन्धित होते हैं। सुगन्धित वायु व जल से उत्तम स्वास्थ्य होकर व रोगों के नष्ट होने से प्राणियों को सुख प्राप्त होता है। यज्ञ में डाले हुए घृत व सामग्री आदि पदार्थ नष्ट नहीं होते हैं क्योंकि पदार्थ विद्या का नियम यह है कि किसी द्रव्य का अभाव नहीं होता है।ये अग्नि में डाली गयी आहुतियां सूक्ष्म होकर व फैलकर वायु के साथ दूर दूर तक जाकर दुर्गन्ध की निवृत्ति व सुगन्ध का विस्तार करती हैं।
हवन के अग्नि में भेदक शक्ति होती है,इसलिये जिस घर में हवन हो रहा होता है वहां के दुर्गन्धयुक्त वायु और पदार्थों को छिन्न भिन्न व हल्का करके घर से बाहर निकालकर पवित्र वायु को प्रवेश करा देता है। यज्ञ में वेदमन्त्रों के पाठ करने का प्रयोजन है कि मन्त्रों में हवन से होने वाले लाभों का पता चलत है ,मन्त्रों को बार बार पढ़ने से वे कण्ठस्थ हो जाते हैं तथा ईश्वरीय वाणी वेदों का पठन-पाठन व उनकी रक्षा भी होती है।इस कारण यज्ञ में वेदमन्त्रों का पाठ करना आवश्यक है। प्राचीन काल में आर्य शिरोमणि ॠषि महर्षि व राजा महाराजा लोग बड़े- बड़े यज्ञ करते और कराते थे। इसलिये आर्यावर्त्त देश में जब तक हवन करने का विशेष प्रचार रहा तब तक देश दु:खों से रहित व सुखों से युक्त रहा।अब भी यदि यज्ञों का प्रचार हो जाये तो सर्वत्र सुखों की वृद्धि हो जाये।
🌹🎶 ओ३म् 🎶🌹(RPC)