प्राय देखने में आता है कि समाज में सभी जातियों में मृत्यु भोज का चलन आज भी प्रचलित है l इस प्रथा का उद्देश्य वर्तमान में पुरानी पद्धति पर ही आधारित है जो आज के वर्तमान परिपेक्ष में तर्कसंगत नहीं है और ना ही व्यवहारिक l
मेरे विचार में यह फिजूलखर्ची है तथा महंगाई के इस युग में कई लोग कर्ज लेकर भी इस प्रथा को संचालित करते हैं और कई लोग बहुत बड़े आयोजन के कारण कर्ज में डूब जाते हैं या कुछ लोग दिखावा करने के लिए इस प्रथा को आज भी जारी रखे हुए हैं l
मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि जीवन काल के दौरान जिन लोगों ने अपने माता पिता यानी बुजुर्गों की भरपूर सेवा नहीं की वो केवल दिखावा करने के लिए और झूठी शान बनाए रखने के लिए बहुत बड़ी दावत का आयोजन करते हैं जो निरर्थक और फिजूलखर्ची है l
हम मृत्यु उपरांत तेरहवीं के अवसर पर यज्ञ का आयोजन करते ही हैं और हवन मात्र से मृतक की आत्मा की शांति के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं जो सर्वोत्तम विधि है l
आज के शिक्षित समाज विशेषकर युवा वर्ग को इस प्रथा के प्रचलन को बंद करना चाहिए और सामाजिक रुप से जागरूकता प्रदान कर समाज में फैली इस बुराई को बंद करने का आवाहन करना चाहिए l
कुछ धर्मांध लोगों को यह विचार ए व्यवहारिक लग सकता है लेकिन सही विचार प्रदान करने से ही समाज का सुधार होता है और सर्वांगीण विकास के लिए प्राचीन प्रथाएं वर्तमान समय में व्यावहारिक नहीं है यह लोगों को समझाना चाहिए l
मैंने ऐसे कई आयोजनों का बहिष्कार किया है तथा जब आयोजन कर्ताओं ने मुझसे फोन करके पूछा कि आप शामिल क्यों नहीं हुए तो मैंने स्पष्ट रूप से कह दिया कि मैं मृत्यु भोज के विरुद्ध हूं और समाज को भी जागरूक करने का काम कर रहा हूं l मैंने यह भी बताया कि मृत्यु के उपरांत कई लोग जब संवेदना व्यक्त करने जाते हैं तो चाय या जलपान आदि की प्रथा भी बंद होनी चाहिए l
हम सुधरेंगे जग सुधरेगा इसी आवाहन के साथ मैं शिक्षित वर्ग को आवाहन करता हूं की ऐसी प्रथाएं अभिलंब बंद होनी चाहिए और उनका सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिए l
मेजर रूप सिंह नागर
राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित शिक्षाविद एवं समाजसेवी