ओ३म्
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रविवार दिनांक 28-3-2021 को वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून में दिनांक 7 मार्च, 2021 से चल रहे तीन सप्ताह के चतुर्वेद पारायण एवं गायत्री यज्ञ का समापन हुआ। यज्ञ के ब्रह्मा आचार्य सन्दीप जी थे। यज्ञ में मन्त्रोच्चार गुरुकुल पौंधा-देहरादून के चार ब्रह्मचारियों ने किया। स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में यह वृहद आयोजन सम्पन्न हुआ। स्वामी जी ही इस यज्ञ के प्रेरक एवं संचालक रहे। यज्ञ की दिनांक 28-3-2021 को पूर्णाहुति के पश्चात अनेक विद्वानों ने अपने प्रेरक विचार प्रस्तुत किये। आयोजन में साध्वी प्रज्ञा जी भी उपस्थित थी। उन्होंने तीन बार तीन-तीन वर्ष के मौन व्रत किये हैं। उनके यह मौनव्रत अदर्शन व्रत भी थे। उनका तीसरा मौन अदर्शन व्रत मार्च, 2021 में ही समाप्त हुआ, अतः वह देहरादून के धौलास आश्रम से वैदिक साधन आश्रम, तपोवन के चतुर्वेद पारायण यज्ञ के समापन आयोजन में पधारी थी। आश्रम की यज्ञशाला में उन्होंने पूरे यज्ञ में उपस्थित होकर आहुतियां दी। यज्ञ के बाद उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना प्रस्तुत की। उनके कुछ शब्द हमने नोट किये जिन्हें हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं।
साध्वी प्रज्ञा जी ने पहले ईश्वर भक्ति का स्वरचित भजन प्रस्तुत किया। उसके बाद उन्होंने दीर्घ स्वर से ओ३म् का उच्चारण कराया। इसके पश्चात उन्होंने सन्ध्या के नमस्कार मन्त्र ‘ओ३म् नमः शम्भवाय च’ को ईश्वर में लीन होकर मधुर स्वरों से पाठ किया। ऐसा करने के बाद उन्होंने हिन्दी भाषा में ईश्वर से प्रार्थना की। उन्होंने परमात्मा को प्रार्थना करते हुए कहा कि उन्होंने नौ वर्ष तक अदर्शन मौनव्रत किया है। वह अपने इस व्रत को करने में किये गये श्रम व तप वा साधना को ईश्वर को समर्पित करती हैं। साध्वी प्रज्ञा जी ने कहा कि हमारा अन्तःकरण दोषों से भरा है। हममें मलीनता भरी पड़ी है। ईश्वर से उन्होंने सभी दुरितों व क्लेषों को दूर करने की प्रार्थना की। उन्होंने कहा कि परमात्मा उनमें वैराग्य का आधान करें। उन्होंने ईश्वर से अनन्य भक्ति देने की भी प्रार्थना विनीत, सरस व मधुर स्वरों में बोलकर की और कहा कि हम आपसे यही याचना करते हैं।
साध्वी प्रज्ञा जी न स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी के श्रेष्ठ गुणों सहित उनके आचारण व व्यवहार पर प्रकाश डाला और उनकी भूरि भूरि प्रशंसा कृतज्ञता के भावों में भर कर की। उन्होंने देहरादून के धौलास आश्रम के संचालक स्वामी विशुद्धानन्द तथा संन्यासिनी माता सुनन्दा जी के अत्यन्त प्रेम एवं सम्मानजनक व्यवहार के लिए भी आभार एवं कृतज्ञता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि आश्रम में उनके व्रत को पूरा करने में इन सभी ने उनसे पूरा पूरा सहयोग किया जिससे वह इस मौनव्रत व अदर्शन व्रत को सफलतापूर्वक सम्पन्न कर सकीं हैं। स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी के देवत्व से भरे गुणों को प्रस्तुत कर साध्वी प्रज्ञा जी रो पड़ी और कुछ देर रुक कर उन्होंने अपना सम्बोधन जारी रखा।
साध्वी प्रज्ञा जी ने कहा कि सभी ऋषि व वेदभक्तों सहित अन्य इतर सभी मनुष्य सुपथ के अनुगामी हों। सब लोग सभी तापों से मुक्ति पाने वाले हों। साध्वी प्रज्ञा ने अपनी ईश्वर से प्रार्थना में विश्व के कल्याण की कामना भी की। साध्वी जी ने सभी लोगों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी के स्वस्थ जीवन एवं दीर्घायु की कामना की। उन्होंने कहा कि हम भी उनके समान उदार तथा पावन बन सकें। मानव मात्र एक दूसरे के सहयोगी हांे। सब मनुष्य धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष की प्राप्ति के साधक बनें। उन्होंने अन्त में कहा कि मैं जीवन भर परमात्मा से जुड़ी रहूं और उनका सदैव ध्यान, चिन्तन व उपासना करती रहूं। ईश्वर मेरी प्रार्थना को स्वीकार करेंगे ऐसा उन्होंने विश्वास व्यक्त किया।
साध्वी प्रज्ञा जी के बाद डा. महावीर अग्रवाल तथा स्वामी आशुतोष जी के सम्बोधन भी हुए। इसके बाद साध्वी प्रज्ञा जी ने अपने व्रत व साधना के कुछ अनुभव सुनाये। इससे सम्बन्धित उपलब्ध सामग्री को हम आगामी कुछ लेखों के माध्यम से प्रस्तुत करेंगे। हमने प्रज्ञा जी का संक्षिप्त परिचय फेसबुक तथा व्हटशप के माध्यम से अपने मित्रों व कुछ ग्रुपों में प्रसारित किया था। बड़ी संख्या में लोगों ने इसे पसन्द किया है। कुछ लोगों ने फोन पर भी इस बारे में हमसे बात की। हम आशा करते हैं कि साध्वी प्रज्ञा जी भविष्य में वैदिक धर्म के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
हम यह भी बता दें कि साध्वी प्रज्ञा जी की दो पुस्तकें हमें प्राप्त हुई हैं। एक पुस्तक का नाम ब्रह्मयज्ञ है। इस पुस्तक में ब्रह्मयज्ञ के मन्त्रों को सरस व प्रभावशाली कविताओं में प्रस्तुत किया गया है। उनके विभिन्नविषयों पर कविताओं का एक संग्रह काव्यधारा के नाम से प्रकाशित हुआ है। यह पुस्तक 185 पृष्ठों की है। उनकी एक कविता की चार पंक्तियां यहां नमूने के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं:
तन-मन-प्राण दिये ईश्वर ने, उसका ही गुणगान करो।
सर्वेश्वर को पाने हेतु, एक जन्म तो दान करो।।
एक बार तो परमेश्वर से अपना नाता जोड़ के देखो।
नश्वर जग के सारे बन्धन, एक बार तो तोड़ के देखो।।
यह पूरी कविता बाद में पृथक से प्रस्तुत करेंगे। हमें साध्वी प्रज्ञा जी का व्यक्तित्व अत्यन्त पावन एवं प्रभावशाली लगा। उनके व्यक्तित्व में दिव्यता व सरलता दृष्टिगोचर होती है। वह योग, ध्यान एवं वेदभक्ति सहित कविता में उच्च प्रतिभा से सम्पन्न हैं। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य