औरंगज़ेब का आतंकी शासन
औरंगज़ेब का इतिहास में एक क्रूरतम मुगल बादशाह के रूप में स्थान है । उसने हिन्दुओं के प्रति मजहबी क्रूरता और निर्दयता की सभी सीमाएं पार कर दी थीं। यद्यपि वामपंथी और मुस्लिम इतिहासकारों की दृष्टि में उसे भारत के उदारतम शासकों में से एक माना गया है और ऐसे प्रयास किए गए हैं कि उसकी क्रूरता और निर्दयता को उसकी तथाकथित उदारता के समक्ष नगण्य कर दिया जाए । मुगल काल के इस शासक ने 1658 से लेकर 1707 ईसवी तक शासन किया। उसने अपनी सारी राजनीतिक व्यवस्था को इस्लामिक चोला पहनाने का हरसम्भव प्रयास किया। यही कारण था कि उसने अपने कानून को भी :फतवा -ए -आलमगीरी’ का नाम दिया । इस ‘फतवा- ए- आलमगीरी’ नामक कानून में शरीयत की वे सारी व्यवस्थाएं सम्मिलित की गई थीं जो गैर मुस्लिमों के प्रति शासक को अत्याचार करने की खुली छूट प्रदान करती हैं । ‘फतवा -ए -आलमगीरी’ की इन व्यवस्थाओं के चलते भी जिन इतिहासकारों ने औरंगजेब के शासन को भारत के लिए वरदान सिद्ध करने का प्रयास किया है , उनके ऐसे प्रयासों पर सचमुच तरस आता है ।
औरंगजेब ने अपनी इस शरीयती कानून व्यवस्था के अनुसार शासन करते हुए गैर-मुस्लिमों के अधिकार अत्यंत सीमित कर दिए । इस व्यवस्था को लागू होते ही मुस्लिमों को हिन्दुओं की संपत्ति पर जबरन कब्ज़ा कर लेने, स्त्रियों को गुलाम बना लेने आदि जैसे कई अधिकार भी प्राप्त हो गए ।
हिन्दुओं का उत्पीड़न करने और उन्हें मुस्लिम बनाने के दृष्टिकोण से औरंगजेब ने गैर मुस्लिम प्रजाजनों पर असीमित अत्याचार किए। उनके साथ असामानता का बर्ताव किया गया। मुस्लिमों को कुछ विशेष सुविधाएं प्रदान की गईं और काफिरों के मौलिक अधिकारों का हनन किया गया ।सन 1665 से हिन्दू व्यापारियों से दोगुनी चुंगी वसूली जाने लगी और मुस्लिम व्यापारियों के लिए चुंगी माफ़ कर दी गई। सन 1679 में औरंगज़ेब ने हिन्दुओं पर ‘जज़िया’ कर लागू किया । यह जजिया कर वास्तव में हिन्दुओं का खून निचोड़ने का एक ऐसा यन्त्र था,जिसे प्रत्येक मुस्लिम बादशाह या सुल्तान ने अपने शासनकाल में उन पर लगाया था । औरंगजेब के शासनकाल में तो इसे और भी अधिक निर्दयता के साथ लागू किया गया। जिससे उनकी हड्डियों तक से रक्त निचोड़ लिया जाए अर्थात उनकी आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक जीवन व्यवस्था को पूर्णतया नष्ट -भ्रष्ट कर दिया जाए और उन्नति के सभी मार्ग अवरुद्ध कर दिया जाएं।
औरंगजेब अपने अधिकारियों पर भी पूर्ण निगरानी रखता था, जिससे कि वह उसकी हिन्दू प्रजा के साथ किसी प्रकार की उदारता का व्यवहार न कर सकें। यदि कोई अधिकारी हिन्दुओं के प्रति उदारता का व्यवहार करता हुआ पाया जाता था तो उसके साथ भी कठोर यातना भरी कार्यवाही की जाती थी। हिन्दुओं को धार्मिक उत्पीड़न का शिकार बनाते हुए औरंगजेब ने उनके सभी धार्मिक त्योहारों को मनाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। दीपावली सहित कोई भी धार्मिक त्यौहार हिन्दू अब मना नहीं सकते थे। हिंदुओं के धार्मिक आयोजनों को भी उसने बन्द करवा दिया था । इतना ही नहीं हिन्दू प्रजा में हीन भावना उत्पन्न करने के दृष्टिकोण से औरंगजेब ने हिन्दुओं के पालकियों में बैठने या हाथियों व अरबी घोड़ों की सवारी करने का अधिकार भी उनसे छीन लिया था।
किया धर्म स्थलों का विध्वंस
औरंगजेब ने हिन्दुओं के धर्म स्थलों का विध्वंस करने में भी गहरी रुचि दिखाई थी । वह हिन्दुस्तान को दारुल – इस्लाम में परिवर्तित कर देना चाहता था। इस दृष्टिकोण से हिन्दू धर्म-स्थल उसकी आंखों में कांटे की भांति चुभते थे। अपने इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए औरंगजेब ने हिन्दू धर्म स्थलों का विध्वंस कराना अपनी सरकारी नीति का एक अंग ही बना लिया था।
हिंदुओं की आस्था का नहीं दीखा मोल।
मसल दई पैरों तले , रोके बजते ढोल।।
12 सितंबर 1667 को उसने दिल्ली के कालकाजी मन्दिर का विध्वंस करने का सरकारी अर्थात शाही फरमान जारी किया था। समकालीन लेखकों इतिहासकारों के विवरण से जानकारी मिलती है कि 9 अप्रैल 1669 को उसने अपने राज्य के सभी हिन्दू मन्दिरों व हिन्दू पाठशालाओं को तोड़ देने का आदेश दिया था। ऐसा करने का उद्देश्य केवल यह था कि हिन्दू जब अपने धर्म स्थलों में नहीं जा सकेंगे तो वह देर सवेर इस्लाम की शरण में आने के लिए बाध्य हो जाएंगे। जिससे सारे भारतवर्ष में इस्लाम का तेजी से प्रचार-प्रसार होने में सहायता मिलेगी। इसके अतिरिक्त हिन्दू धर्म स्थलों के विध्वंस का एक कारण यह भी था कि ईश्वर या अल्लाह मन्दिरों में नहीं मस्जिदों में रहता है और कुरान पाक द्वारा उसे प्राप्त करने की जो व्यवस्था बताई गई है वहीं अंतिम है। उसके अतिरिक्त यदि कोई अन्य मजहब का व्यक्ति अपनी मजहबी प्रार्थना करता है तो वह पूर्णतया अनुचित है।
राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष : भारतीय इतिहास पुनर्लेखन समिति
मुख्य संपादक, उगता भारत