ओ३म्
-वैदिक साधन आश्रम तपोवन देहरादून में चतुर्वेद पारायण यज्ञ, पूर्णाहुति
हमें आज दिनांक 27-3-2021 को सायं वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून में दिनांक 7-3-2021 से चल रहे चतुर्वेद पारायण यज्ञ में सम्मिलित होने का सुअवसर मिला। यज्ञ अपरान्ह 3.00 बजे से आरम्भ एवं सायं 5.00 बजे समाप्त हुआ। यज्ञ के ब्रह्मा सोनीपत से पधारे आचार्य सन्दीप आर्य जी हैं। यज्ञ स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती के सान्निध्य में उनकी ही प्रेरणा व सहयोग से सम्पन्न किया जा रहा है। स्वामी जी यज्ञ के प्रथम दिन से पारायण यज्ञ में उपस्थित हैं और सामूहिक प्रार्थना करने सहित सबको आशीर्वाद देते हैं। इसके साथ वह यज्ञ में कुछ आहुतियां भी देते हैं। यज्ञ में मन्त्रोच्चार देहरादून स्थित आर्ष गुरुकुल पौंधा के चार ब्रह्मचारी कर रहे हैं। आश्रम की पर्वतीय ईकाई तपोभूमि में अपनी भव्य एवं विशाल यज्ञशाला है जहां पांच कुण्डों में यज्ञ चल रहा है। लगभग 60 साधक इस शिविर व यज्ञ में सम्मिलित हैं। आज के यज्ञ में आश्रम के प्रधान व यशस्वी यज्ञप्रेमी साधक श्री दर्शन कुमार अग्निहोत्री जी भी सम्मिलित हुए। प्रधान जी का सभी बड़ें कार्यों में आर्थिक सहयोग रहता है और वह स्वयं भी उपस्थित होते हैं। उनकी यज्ञ भक्ति प्रशंसनीय है। आश्रम के मंत्री श्री प्रेमप्रकाश शर्मा जी यज्ञ के आरम्भ से ही यज्ञ में यजमान हैं और आश्रम के कार्य भी देख रहे हैं। सभी ऋषिभक्तों को इन अधिकारियों की ऋषिभक्ति तथा आश्रम के कार्यों को समर्पित होकर करने की भावना की प्रशंसा करनी चाहिये। ईश्वर इन्हें स्वस्थ रखे और यह दीर्घायु हों, ऐसी हमारी ईश्वर से प्रार्थना है।
आज यज्ञ में अथर्ववेद के मन्त्रों से आहुतियां दी गईं। आज जिन मन्त्रों का पाठ हुआ उसमें अथर्ववेद का 20.88.6 मन्त्र भी था। इसको अपने सम्बोधन का लक्ष्य बनाकर आचार्य सन्दीप जी ने कहा कि इस मन्त्र में यज्ञ का उद्देश्य वा लक्ष्य बताया गया है। उन्होंने कहा कि हम जो कर्म करते हैं उनका उद्देश्य अपने निजी हित तक सीमित होता है। अपना हित करने के बाद हम संसार का हित व उपकार करने में प्रवृत्त होते हैं। मन्त्र के अनुसार आचार्य जी ने यज्ञ के तीन उद्देश्य वृष्ण, विश्व देवाय तथा पित्रे को बताया। आचार्य जी ने कहा कि मन्त्र में कहा गया है हम बल प्राप्ति के लिये यज्ञ को करते हैं। हमें शारीरिक, मानसिक, आत्मिक तथा इन्द्रिय आदि बलों की आवश्यकता होती है। हमें कर्म करने के लिए शारीरिक बल की आवश्यकता मुख्यतः होती है। यह बल हमें यज्ञ व अग्निहोत्र करने से मिलता है। आचार्य जी ने कहा कि हम यज्ञ में घृत, ओषिधियों, अन्न, मिष्ठान्न आदि अनेक प्रकार के पदार्थों का प्रयोग करते हैं। आचार्य जी ने इस प्रसंग में इन्द्र व वृत्तासुर की एक कथा भी सुनाई। उन्होंने बताया कि इन्द्र वृत्तासुर का वध करने के बाद निर्बल हो गया था। उन्होंने प्रजापति से बल प्राप्ति के उपाय पूछे। उन्हें यज्ञ करने के लिये कहा गया। इन्द्र ने यज्ञ किया और उन्हें बल प्राप्त हो गया। आचार्य सन्दीप जी ने कहा कि हमें यज्ञ को जानना चाहिये। आचार्य जी ने कहा कि हम यज्ञ में जिन पदार्थों की आहुतियां देते हैं वह सूक्ष्म हो जाते हैं और श्वास आदि के द्वारा हमारे शरीर में प्रवेश कर हमें बल प्रदान करते हैं। इससे हमारा शरीर स्वस्थ एवं निरोग बनता है।
आचार्य सन्दीप जी ने कहा कि मन्त्र में जो विश्व देवाय पद आये हैं यह दिव्य गुणों के कहते हैं। हम गुणों की प्राप्ति के लिए ही यज्ञ करते हैं। आचार्य जी ने प्रेम, त्याग, समर्पण तथा विद्या आदि अनेक गुणों की चर्चा की। आचार्य जी ने बताया कि यज्ञ करने से बुद्धि में सात्विकता व पवित्रता आती है। यज्ञ से बुद्धि में पवित्र व दिव्य गुणों को प्राप्त करने व धारण करने की शक्ति प्राप्त होती है। आचार्य जी ने कहा कि यज्ञ करना मेधा बुद्धि की प्राप्ति में हितकारी है। पित्रे शब्द पर प्रकाश डालते हुए आचार्य जी ने कहा कि पित्रे का अर्थ पालन व पोषण होता है। यज्ञ करने से हमारी पुष्टि व पोषण होता है। हमें अपनी आवश्यकता के सभी पदार्थ प्राप्त होते हैं। हमारी आत्मा का पोषण भी यज्ञ करने से होता है। हमें यज्ञ को पूरी श्रद्धा से करना चाहिये। आचार्य जी ने कहा कि ईश्वर सब लोक लोकान्तरों का स्वामी है। मन्त्र में एक प्रार्थना यह भी है कि हम सुप्रजा वाले बने। हमें परिवार व समाज में अच्छे लोगों के साथ रहने से ही सुख की प्राप्ति होती है। हमें वीर भी होना चाहिये। इसके लिए हमें वीर मनुष्यों के साथ मित्रता करनी चाहिये। यज्ञ करने से मनुष्य सभी प्रकार के ऐश्वयों का स्वामी भी हो सकता है। आचार्य जी ने कहा कि हमें यज्ञ के प्रति श्रद्धावान, निष्ठावान तथा आस्थावान होना चाहिये। आचार्य जी ने अथर्ववेद के एक अन्य मन्त्र की भी व्याख्या की। उन्होंने कहा कि वेद में अग्नि को दूत कहा गया है। उन्होंने बताया कि अग्नि दूत का काम करता है। यजमान यज्ञ में घृत आदि उत्तम पदार्थों की आहुतियां देता है। अग्नि इस आहुति को सूक्ष्म कर सभी स्थानों पर पहुंचाता है। आचार्य जी ने कहा कि अग्नि एक दूत है। हम सब अग्नि का वरण करते हैं।
आचार्य सन्दीप आर्य जी ने कहा कि यजमान अग्नि के गुणों को अपने जीवन में धारण करते हैं। आचार्य जी ने सभी याज्ञिकों को अग्नि सहित श्रेष्ठ विचारों, व्यक्तियों तथा गुणों का वरण करने का उपदेश किया। उन्होंने कहा कि हमारे व्यवहार में भी अग्नि के गुण होने चाहिये। अग्नि के समान हम पवित्र व दिव्य गुणों को स्थान स्थान पर प्रेषित, प्रसारित और फैलाते रहें। अग्नि यज्ञ के पदार्थों को सर्वत्र फैला देता है। हम भी विश्व में सभी स्थानों पर जाकर यज्ञ व वेद का प्रचार करें। हमारा जीवन व यज्ञ परोपकार के लिए है। आचार्य जी ने कहा कि ईश्वर के आशीर्वाद से हमने इस यज्ञ को किया है। आचार्य जी ने कहा कि हम अग्नि के गुणों को धारण करें। वैदिक धर्म तथा संस्कृति को दूर दूर तक फैलायें। आचार्य जी ने वेद पारायण यज्ञ मे ंमन्त्र पाठ करने वाले गुरुकुल पौंधा के ब्रह्मचारियों की प्रशंसा की। उन्होंने उनका धन्यवाद भी किया। उन्होंने अन्त में कहा कि वैदिक जीवन जीने से हमारी संस्कृति बचती है।
स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने याजकों को कहा कि आपने तप किया है। इसलिये आप प्रशंसा के पात्र हैं। स्वामी जी ने कहा कि आपने यहां आश्रम में रहकर इतने दिनों तक नमक तथा मीठे भोजन का भी त्याग किया है, यह भी आपका तप है। स्वामी जी ने यज्ञ में सम्मिलित सभी यजमानों का धन्यवाद भी किया। स्वामी जी ने आचार्य सन्दीप जी की प्रशंसा की। यज्ञ सुचारू रूप से चलता रहा और हम समापन के निकट है, इसके लिए स्वामी जी ने परमात्मा का धन्यवाद किया। यज्ञ की समाप्ति के बाद स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने भावविभोर होकर सामूहिक प्रार्थना कराई। उन्होंने परमात्मा की दया तथा महान उपकारों को स्मरण किया व कराया। उन्होंने कहा कि परमात्मा सबको आहार दे रहे हैं। परमात्मा से ही हमें जल, वायु व जीवन मिल रहा है। परमात्मा ने हमें जीवित रखने के लिए वायु दान दी है, इसके लिए भी परमात्मा का धन्यवाद है। स्वामी जी ने परमात्मा का कोटि कोटि वन्दन किया। ऋषियों के देश में जन्म देने के लिए भी स्वामी जी ने परमात्मा को धन्यवाद दिया।
स्वामी जी ने कहा कि महाभारत के बाद हमसे वेद छूट गये थे। हमारी माता व बहिनों तथा पूर्वजों को अनेक अपमान झेलने पड़े। आपकी महान कृपा से हमारे देश में एक महान आत्मा दयानन्द जी का जन्म हुआ। स्वामी दयानन्द वेद मार्ग पर चले। उन्होंने हमें वेद व वेद मन्त्रों के सत्य अर्थ बताये। उन्होंने वेद विरोधियों व अज्ञानियों से शास्त्रार्थ किये। वेदों का प्रचार करते हुए उन्होंने सहर्ष जहर पीया। हमारा दुर्भाग्य था कि काम पूरा होने से पहले ही उनका बलिदान हो गया। स्वामी जी ने परमात्मा से प्रार्थना करते हुए कहा कि आप हमें ऋषि दयानन्द जैसा एक और ऋषि दें जिससे वेद प्रचार का अधूरा कार्य पूरा हो सके। उन्होंने परमात्मा से प्रार्थना करते हुए कहा कि वैदिक धर्म एवं संस्कृति विश्व धर्म बने। स्वामी जी ने प्रार्थना की कि कोरोना हमारे देश से तथा विश्व से भी दूर हो जाये। स्वामी जी ने सब प्राणियों की रक्षा की प्रार्थना की। स्वामी जी ने भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी तथा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री आदित्यनाथ योगी जी के गुणों व कार्यों की भी प्रशंसा की। उन्होंने प्रार्थना करते हुए कहा कि हमारा देश उन्नति करे। स्वामी जी ने हमारे देश के प्रधान मंत्री और धर्म और संस्कृति के रक्षक नेताओं की रक्षा करने की प्रार्थना भी परमात्मा से की। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के कार्यकाल में काम होता दीख रहा है तथा देश सभी क्षेत्रों में तेजी से उन्नति कर रहा है। स्वामी जी ने कहा कि ईश्वर सबको वेद ज्ञान प्राप्त कराये और सभी परस्पर मधुर व्यवहार करें। देश से अभाव व अन्याय दूर हों। हमारा यह यज्ञ सबके लिए कल्याणकारी हो। हम अपने घरों में प्रतिदिन यज्ञ करें। स्वामी जी ने ईश्वर को कहा कि हमें आपकी कृपा की आवश्यकता है। आप सबका कल्याण करें। इसके बाद यज्ञ प्रार्थना हुई और वेद मन्त्रोच्चार के मध्य स्वामी जी ने सब यजमानों पर जल छिड़क कर आशीर्वाद दिया। कल प्रातः 7.00 बजे से चतुर्वेद पारायण यज्ञ की पूर्णाहुति आरम्भ होगी। 95 वर्षीय माता सुनन्दा जी का उनकी सेवाओं के लिए अभिनन्दन भी किया जायेगा। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य