औषधीय कृषि से सुधरेगी बुंदेलखंड की दशा
महोबा जिला के सिचौरा गांव में अश्वगंधा की औषधीय खेती की शुरुआत :-
युवा शिक्षित किसान सचिन खरे ने नई कृषि की शुरुआत की
महोबा। ( संवाददाता ) बदलते मौसम और पारंपरिक कृषि से लगातार हो रहे घाटे ने जिले के किसानों को सोचने पर मजबूर कर दिया है । सरकार द्वारा लगातार जागरूक करने पर महोबा जिले के प्रगतिशील किसान राजनारायण खरे पुत्र नंदगोपाल ने पारंपरिक खेती से अलग औषधीय खेती की शुरुआत की है। मॉडल के तौर पर उन्होंने नवंबर माह में लगभग 1 एकड़ खेत में अश्वगंधा की खेती की । जिसकी फसल अगले माह तैयार हो जायेगी।
उन्होंने बताया कि एक चौथाई भाग में बीजों का जमाव बहुत उत्कृष्ट हुआ। खेत की चार बार जुताई करके जैविक उर्वरक का प्रयोग किया गया। संशोधित बीज की सीडड्रिल और छिटकाव दोनों विधियों से बुवाई की गई। जिसमें छिटकाव विधि से बोए गए बीजों का जर्मिनेशन बहुत अच्छा हुआ। मॉडल के तौर पर कुछ हिस्से में अश्वगंधा की फसल बहुत अच्छी देखी जा रही है। युवा किसान सचिन खरे ने बताया कि लगभग एक एकड़ खेत में अश्वगंधा लगाया गया था। जिसमें 15 हजार की लागत आई थी । एक एकड़ में आपने 10 किलो बीज का प्रयोग किया था । 1 चौथाई खेत में बीज का जर्मिनेशन अच्छा होने से उन्हें बाकी के खेत की भरपाई भी हो जायेगी । सचिन खरे ने बताया की वो औषधीय खेती की शुरुआत करके बहुत खुश हैं । पहली बार इसकी शुरुआत करने में बहुत कठिनाई भी आई एवं बहुत कुछ सीखने को मिला । उनका दावा है कि अगली बार वो 90 प्रतिशत से ज्यादा जर्मिनेशन करवाके कृषि की दिशा बदलने में कामयाब होंगे। इस वर्ष तुलसी और अश्वगंधा की औषधीय खेती में आपने जुताई, गुड़ाई, सिंचाई, कटाई इत्यादि में 50 से ज्यादा लोगों को लगातार रोजगार भी दिया। ज्ञात हो कि भारत में अश्वगंधा की मांग लगातार बढ़ती जा रही है । इस समय देश में लगभग 5000 हेक्टेयर में 2000 टन अश्वगंधा का उत्पादन प्रति वर्ष किया जा रहा है । जबकि इसकी मांग 7000 टन प्रति वर्ष है। ऐसे में यदि बुन्देलखण्ड में औषधीय कृषि के अंतर्गत अश्वगंधा की खेती की जाएगी तो न केवल बुन्देलखण्ड के किसान समृद्ध होंगे अपितु देश को स्वस्थ बनाने में भी अपना योगदान दे पाएंगे।
साथ ही आपने मांग की है कि औषधीय खेती की मॉडल के तौर पर शुरुआत करने वाले किसानों को सरकारी सहायता जरूर मिलनी चाहिए ताकि वो इस दिशा में जिले और प्रदेश का नाम रौशन कर सकें । इससे पहले आपने तुलसी की भी खेती की थी । उसमें में भी कोई प्रशासनिक या शासन स्तर पर मदद नहीं मिली ।