सतीष भारतीय
विश्व में जनसंख्या की दृष्टि से द्वितीय स्थान रखने वाले हमारे इस मुल्क में जिस गति से जनसंख्या वृद्धि में इजाफा हो रहा है वह कुतूहलजनक है क्योंकि जनसंख्या वृद्धि प्रथक-प्रथक समस्याओं को प्रजनित कर रही है जिससे आवाम को उपयुक्त जरूरतों की पूर्ति के साथ जीवन जीना इस कल्प में मुहाल हो गया है।
हमारे मुल्क में आज से ही नहीं बल्कि प्राचीन समय से समाज में यह परंपरा चली आ रही है कि बच्चे ईश्वर की देन होते जिसका नतीजा यह रहा है कि एक परिवार में पहले 8 से 10 या उससे भी अधिक बच्चे हो जाते थे तथा आज भी हम कहीं- कहीं देखते है कि एक परिवार 5 से 6 बच्चे हो जाते हैं यदि वह परिवार आर्थिक रूप से संपन्न है तो भी उन बच्चों को सामान्य सुविधाएं मिल पाती है और यदि किसी परिवार की आर्थिक दशा निकृष्ट है तो आप तसव्वुर कर लीजिए कि वह परिवार इस वक्त 5 से 6 बच्चों की गुजर-बसर कैसे करता होगा, किस हद तक मुनासिब तालीम दे पाता होगा तथा किस मात्रा में सुविधाएं दे सकता है या फिर ऐसे परिवार अधिक बच्चे पैदा करके गरीबी के दलदल में जीने को मजबूर हो जाते हैं।
भारत में मुसलसल जनसंख्या वृद्धि की समस्या दिन-ब-दिन दुर्भेद्य रूप ले रही है जिससे आलम यह है कि कई समस्याएं प्रादुर्भूत हो रही और आवाम का यथोचित सुविधाओं में जीवन जीना दुरूह होता जा रहा है।
जनसंख्या वृद्धि के कारणों में अशिक्षा, लड़का-लड़की का असरार, सरकार की नाकाम नीतियां, प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण कानून की कमी जैसे आदि कारण हो सकते हैं।
आज के कल्प में हमारे मुल्क में जनसंख्या वृद्धि से गरीबी, बेरोजगारी, कुपोषण, महगाई, अशिक्षा, उपयुक्त आवास की कमीं, कृषि विकास में कमीं आदि में इजाफा होने के साथ-साथ हमारे पर्यावरण पर भी निकृष्ट प्रभाव पड़ रहा है और हमें जो शहरों का भीड़-भाड़ वाला माहौल देखने मिल रहा है उससे जगह-जगह प्रदूषण तथा गंदगी उत्पन्न हो रही है एवं ट्राफिक की समस्याएं तो समान्य हो गई है।
यदि हम भारत में जनसंख्या नियंत्रण कानून की पहल के बारे में जिक्र करें तो वर्ष 1976 में संविधान के 42वें संशोधन के तहत सातवीं अनुसूची की तीसरी सूची में जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन जोड़ा गया था। इसके मुताबिक केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन के लिए कानून बनाने का इख्तियार दिया गया लेकिन तब से लेकर अब तक कोई कारगर कानून जनसंख्या नियंत्रण के लिए नहीं बनाया गया है, हालांकि मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पिछले कार्यकाल के दौरान 15 अगस्त 2019 को लाल किले से जनसंख्या विस्फोट पर चिंता जताते हुए छोटा परिवार रखने को देशभक्ति बताया था तथा इसके कुछ समय पूर्व ही बजट सत्र में नामांकित संसद सदस्य द्वारा जनसंख्या को नियंत्रित करने हेतु जनसंख्या नियंत्रण विधेयक 2019 राज्य सभा में प्रस्तुत किया गया था लेकिन निजी विधेयक होने के कारण यह संसद में पारित नहीं हो सका।
आपको सचेत कर दें कि वर्ष 1951 में भारत की आबादी 10 करोड़ 38 लाख थी जो साल 2011 में बढ़कर 121 करोड़ के पार पहुंच गयी और साल 2025 तक इसके बढ़कर 150 करोड़ के पार पहुंचने का अनुमान है वहीं 2021 में भारत की जनसंख्या तकरीबन 1 अरब 39 करोड़ के आस-पास है जिसमें राज्यों में उत्तर प्रदेश की जनसंख्या सबसे ज्यादा 20 करोड़ के लगभग है।
वहीं यूनिसेफ के अनुसार, वर्ष 2020 के पहले दिन यानी 1 जनवरी को दुनियाभर में 3,92,078 बच्चे
पैदा हुए उनमें से 67,385 बच्चों की डिलीवरी भारत में हुई और 1 जनवरी 2021 को विश्व में 3,71,504 शिशुओं का जन्म हुआ जिसमें सबसे ज्यादा करीब 60 हजार शिशुओं का जन्म भारत में हुआ तथा सर्वाधिक बच्चों के जन्म वाले देशों में भारत सबसे शीर्ष पायदान पर है।
ध्यानतव्य है कि जनसंख्या नियंत्रण को लेकर भारत में प्रथक-प्रथक राज्यों की सरकार ने जो समय-समय पर प्रतिबंध लगाये है वह बेहद महत्वपूर्ण तो नहीं रहे है लेकिन जनसंख्या नियंत्रण के पक्षधर जरूर रहे है उनमें साल 2019 में असम, की सर्बानंद सोनोवाल सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए निर्णय लिया था कि 1 जनवरी 2021 के उपरांत दो से अधिक बच्चे वाले व्यक्तियों को कोई सरकारी नौकरी नहीं दी जाएगी। ओडिशा, में दो से अधिक बच्चे वालों को अरबन लोकल बॉडी इलेक्शन लड़ने की इजाजत नहीं है। बिहार, में भी टू चाइल्ड पॉलिसी है, लेकिन सिर्फ नगर पालिका चुनावों तक सीमित है
उत्तराखंड, में टू चाइल्ड पॉलिसी है, लेकिन यहां भी सिर्फ नगर पालिका चुनावों तक सीमित है महाराष्ट्र, में जिन लोगों के दो से अधिक बच्चे हैं उन्हें ग्राम पंचायत और नगर पालिका के चुनाव लड़ने पर रोक है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना, में 1994 में पंचायती राज एक्ट ने एक शख्स पर चुनाव लड़ने से सिर्फ इसलिए रोक लगा दी थी, क्योंकि उसके दो से अधिक बच्चे थे। राजस्थान, में राजस्थान पंचायती एक्ट 1994 के अनुसार अगर किसी के दो से अधिक बच्चे हैं तो उसे सरकारी नौकरी के लिए अयोग्य माना जाता है। गुजरात, में लोकल अथॉरिटीज एक्ट को 2005 में बदल दिया गया था तथा मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़, में 2001 में ही टू चाइल्ड पॉलिसी के तहत सरकारी नौकरियों और स्थानीय चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई थी हालांकि, सरकारी नौकरियों और ज्यूडिशियल सेवाओं में अभी भी टू चाइल्ड पॉलिसी लागू है 2005 में दोनों ही राज्यों ने चुनाव से पहले फैसला उलट दिया, क्योंकि शिकायत मिली थी कि ये विधानसभा और लोकसभा चुनाव में लागू नहीं है।
इन सब कानूनों के बावजूद भी जनसंख्या नियंत्रण में हम सफल साबित नहीं हो पा रहे है जिसका एक अस्वाब यह है कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए संपूर्ण राज्यों में कोई प्रभावी कानून लागू नहीं है और आज के युग में जिस तरह जनसंख्या वृद्धि में इजाफा हो रहा है उसे देखकर यह प्रतीत हो रहा है कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को मिलकर एक विस्तृत तथा प्रभावोत्पादक कानून बनाने कि बेहद दरकार है एवं जनसंख्या नियंत्रण कानून सरकार की प्राथमिकता होना नितांत अपरिहार्य है। क्योंकि बढ़ती आबादी से रोज नई-नई समस्याएं प्रजनित हो रही है जिनका खामियाजा गरीब आवाम को ही भुगतना पड़ रहा है इसलिए वक्त की मांग भी जनसंख्या नियंत्रण कानून है जिसे बनाकर हम मुल्क के उत्कृष्ट मुस्तकबिल की सफल कामना कर सकते हैं।