अजय कुमार
कांग्रेस की प्रियंका वाड्रा को ही ले लीजिए वह उत्तर प्रदेश में बहुत एक्टिव रहती हैं। खासकर, किसी को कांटा भी चुभ जाए तो वह योगी सरकार पर राशन-पानी लेकर चढ़ जाती हैं, लेकिन जब उनकी ही पंजाब सरकार उत्तर प्रदेश के बाहुबली को ‘राज्य अतिथि’ बना लेती है तो वह चुप हो जाती हैं।
राजनीति के रंग भी निराले होते हैं। यहां वही ‘दिखता’ है जो सियासत के बाजार में आसानी से ‘बिकता’ है। इसीलिए तो एक मुख्यमंत्री के लड़कियों के पहनावे (जींस) पर दिया बयान तो इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया में सुर्खियां बटोर लेता हैं। तमाम बुद्धिजीवी और महिला संगठन महिलाओं के पहनावे-ओढ़ने की आजादी पर इसे कुठाराघात मान लेते हैं, लेकिन उस अलका राय (स्वर्गीय भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की पत्नी) की गुहार कहीं नहीं सुनाई देती है जो इस बात से दुखी हैं कि उनके पति के हत्यारे बाहुबली मुख्तार अंसारी को पंजाब की सरकार और गांधी परिवार संरक्षण दे रहा है। इसी तरह से इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुलपति जब यह कहती हैं कि प्रातःकाल लाउडस्पीकर के द्वारा मस्जिद से दी वाली अजान के कारण उनकी नींद खुल जाती है तो उन्हें लोग ट्रोल करने लगते हैं, जिसके कारण वह छुट्टी तक पर जाने को मजबूर हो जाती हैं। यह सब तब हो रहा है, जबकि अदालत तक ने अपने आदेश में रात्रि दस बजे से प्रातः छह बजे तक पूरे प्रदेश में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल वर्जित कर रखा है।
यह वही देश है जहां नवनियुक्त उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत जब लड़कियों के फटी हुई जींस जैसे पहनावे पर कुछ कहते हैं तो इस पर तो बवंडर खड़ा हो जाता है, हर तरफ शोर होने लगता है। लेकिन समझ में नहीं आता है कि जहां फटी जींस पर सीएम के एक बयान से बखेड़ा खड़ा हो जाता है, उसी देश में एक बार में तीन तलाक जैसे अमानवीय कृत्य के खिलाफ क्यों लोग चुप्पी साधे रहे ? मोदी सरकार से पूर्व किसी सरकार या बुद्धिजीवियों ने इतनी हिम्मत क्यों नहीं दिखाई कि वह तीन तलाक के खिलाफ आवाज उठाएं या बुर्के जैसी अमानवीय प्रथा के खिलाफ आवाज उठाएं, जबकि दुनिया के कई देश जिमसें मुस्लिम देश भी शामिल हैं वर्षों पूर्व एक बार में तीन तलाक और बुर्का जैसी कुप्रथा पर प्रतिबंध लगा चुके हैं। बुर्का ठीक वैसी ही कुप्रथा है, जैसे हिन्दुओं में कभी सती प्रथा हुआ करती थी। इतना ही नहीं बुर्के या उसके जैसे पहनावे की आड़ में कुछ लोग आपराधिक घटनाओं को अंजाम देकर पुलिस और सीसीटीवी से बच निकलते हैं। इसी तरह से धर्म की आड़ में हलाला प्रथा, खतना प्रथा, सुन्नत का भी विरोध होना चाहिए, जो पूरी तरह से अमानवीय है।
तात्पर्य यह है कि कभी किसी एक जैसे दो मामलों में अलग-अलग मापदंड नहीं हो सकते हैं। यदि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री का बयान आपत्तिजनक हो सकता है तो भर्त्सना उन लोगों की भी की जानी चाहिए जो धर्म की आड़ में महिलाओं को अपमानित करते हैं। इलाहाबाद विवि की कुलपति के साथ जो हो रहा है, वह इसकी बानगी है। इविवि कुलपति के उस पत्र को छात्रसंघ के पुराने पदाधिकारी दुर्भाग्यपूर्ण बता रहे हैं, जिसके द्वारा उन्होंने (कुलपति ने) जिलाधिकारी और एसएसपी को पत्र लिखकर अजान के चलते नींद में खलन पड़ने की बात कही थी, जो उनका मौलिक अधिकार था। कुलपति का दर्द समझने की बजाए कुछ नेता और बुद्धिजीवी कुलपति की मंशा पर सवाल खड़े कर रहे हैं। कहा यह जा रहा है कि ऐसा पहली बार हुआ है कि जब विश्वविद्यालय की किसी कुलपति ने विवि के हित को दरकिनार कर समाज में सांप्रदायिक विभाजन का बीड़ा उठाया है।
बात यहीं तक सीमित नहीं है। दरअसल, हमारे नेताओं की समस्या यह है कि वह हर घटना को सियासी नजरिए से देखते हैं। इसीलिए तो कुछ घटनाओं पर नेता जमीन-आसमान एक कर देते हैं तो वहीं कुछ घटनाओं पर ऐसी चुप्पी साधते हैं कि मानवता भी शर्मशार हो जाती है। कांग्रेस की प्रियंका वाड्रा को ही ले लीजिए वह उत्तर प्रदेश में बहुत एक्टिव रहती हैं। खासकर, किसी को कांटा भी चुभ जाए तो वह योगी सरकार पर राशन-पानी लेकर चढ़ जाती हैं, लेकिन जब उनकी ही पंजाब सरकार उत्तर प्रदेश के एक बाहुबली को अपना ‘राज्य अतिथि’ बना लेती है तो न सोनिया-राहुल के और न प्रियंका के कान पर जूं रेंगती है। उन्हें उस विधवा की गुहार नहीं सुनाई देती है जो गांधी परिवार को बार-बार पत्र लिखकर गुहार लगाती हैं कि वह (प्रियंका वाड्रा) पंजाब की कांग्रेस सरकार को आदेश दें कि उसके पति के हत्यारे बाहुबली मुख्तार अंसारी को पंजाब से उत्तर प्रदेश भेजा जाए। जहां कांग्रेस की अमरिंदर सरकार एक मामूली से केस की आड़ लेकर मुख्तार को यूपी न भेजने के लिए तमाम तरह के हथकंडे अपना रही है। यहां तक की बाहुबली को यूपी आने से बचाने के लिए पंजाब सरकार सरकारी पैसा पानी की तरह बहा कर कोर्ट तक को बरगला रही है। अलका राय तीन बार प्रियंका को पत्र लिख चुकी हैं, लेकिन उन्हें जवाब नहीं मिला है। हाल ही में प्रियंका को लिखे पत्र में अलका ने मुख्तार से जान को खतरा बताया है।
मुहम्मदाबाद से भाजपा विधायक अलका राय ने कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका वाड्रा को 15 मार्च को दूसरा पत्र लिखा। पत्र में अलका राय ने लिखा है कि एक तरफ आपने माफिया मुख्तार अंसारी को पंजाब की जेल में संरक्षण देते हुए राज्य अतिथि बनाया हुआ है, वहीं दूसरी तरफ आपकी पंजाब सरकार के जेल मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा माफिया मुख्तार अंसारी के मेहमान बनकर उनके गुर्गों के साथ उत्तर प्रदेश में गुपचुप यात्राएं करते हैं। मैं एक विधवा हूं, मुझे लगता था कि एक महिला होने के नाते आप मेरे दर्द को समझेंगी, लेकिन आपने मेरे किसी भी चिट्ठी का जवाब के उलट मुख्तार अंसारी को बचाने के लिए लाखों रुपये के वकील सुप्रीम कोर्ट में जरूर खड़े कर दिए। मेरे साथ जो हुआ या जो घटित हो रहा है, वह अगर आपके साथ हुआ होता तो दर्द का एहसास होता।
अलका राय ने प्रियंका वाड्रा को चेताया भी है कि वह एक बार फिर कह रही हैं कि मुख्तार अंसारी के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे किसी भी व्यक्ति को अगर कुछ होता है तो उसकी जिम्मेदारी आपकी और आपकी पार्टी की पंजाब सरकार की होगी। गौरतलब है मुख्तार अंसारी को पंजाब से जेल से यूपी में लाने के लिए इससे पहले भी विधायक अलका राय प्रियंका वाड्रा को दो बार पत्र लिख चुकी हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि देश की आधी आबादी को इंसाफ मिले इसके लिए अधूरे मन से लड़ाई नहीं लड़ी जानी चाहिए। न ही इसमें सियासी रंग चटक होना चाहिए। अपराध किसके साथ हुआ है और कौन अपराधी है ? इस पर कितना हो-हल्ला मचाया जाए यह पीड़िता या अपराधी की जाति या धर्म देखकर नहीं तय किया जा सकता हैं। अगर ऐसा किया जाता है तो यह मान कर चलना चाहिए कि महिलाओं के हितों के नाम पर जमीन-आसमान एक कर देने वालों की नीयत में खोट है, उन्हें महिलाओं के हितों की रक्षा नहीं करनी है, बल्कि महिलाओं की आड़ में अपनी सियासत चमकानी है। अगर ऐसा नहीं होता तो उत्तर प्रदेश के जिला बलरामपुर में एक दलित लड़की के साथ गैंगरेप कांड पर भी वैसा ही हो-हल्ला हुआ होता जैसा हाथरस कांड पर हुआ था। दोनों ही मामले कुछ दिनों के अंतर पर हुए थे, लेकिन बलरामपुर में आरोपी एक वर्ग विशेष के वोट बैंक का हिस्सा थे इसलिए सबने चुप्पी की चादर ओढ़ ली। बलरामपुर में दुष्कर्म की शिकार 22 वर्षीय लड़की की भी मौत हो गई थी। इस कांड के लिए शाहिद पुत्र हबीबुल्ला निवासी गैंसड़ी और साहिल पुत्र हमीदुल्ला निवासी गैंसड़ी को गिरफ्तार किया गया था। शाहिद और साहिल पर आरोप था कि दोस्ती के बहाने घर ले जाकर दोनों ने लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया और गंभीर हालत में एक रिक्शे पर बैठाकर घर भेज दिया। लड़की की अस्पताल ले जाते समय मौत हो गई। हाथरस की तरह ही बलरामपुर में दलित लड़की से गैंगरैप किया गया, लेकिन यहां आरोपी दूसरे समुदाय से होने के कारण लिबरल-सेकुलरों ने चुप्पी साध रखी। हाथरस पर देशभर में कैंडल मार्च निकालने वाले कथित सेकुलर झंडाबरदारों ने इसकी चर्चा भी करना उचित नहीं समझा था। हाथरस के बाद तीन जगह पर रेप की घटनाएं हुईं। बुलंदशहर में रिजवान अहमद ने 14 साल की बच्ची से रेप किया। आजमगढ़ में दानिश ने 8 साल की बच्ची से रेप किया, लेकिन मुद्दा बना तो हाथरस कांड जहां नेताओं को ज्यादा सियासत दिखाई दे रही थी।