राष्ट्र-चिंतन
आचार्य श्री विष्णु गुप्त
भारतीय राजनीति के केन्द्र में जब से नरेन्द्र मोदी का उदय हुआ है तब से अडानी-अंबानी का जूमला भी सरेआम हुआ है, नरेन्द्र मोदी के विरोधियों के मुंह से बोला जाने वाला सर्वाधिक प्रिय जूमला है। नरेन्द्र मोदी के विरोधी अडानी और अंबानी के जूमले से जनता को आकर्षित करना चाहते हैं, उनकी समझ यह भी है कि इस जूमले से नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक छवि को घूमिल किया जा सकता है, उनकी केन्द्रीय सत्ता को पराजित किया जा सकता है। इसी उद्देश्य से विरोधी देश की राजनीति के केन्द्र में अडानी-अंबानी का विरोध हमेशा रखते है, प्रमुखता के साथ उठाते हैं। अभी-अभी किसान आंदोलन और तीन कृषि कानूनों को लेकर भी अडानी-अंबानी का जूमला विरोध के केन्द्र में हैं।
कृषि कानूनों के विरोधी किसान संगठनों और विपक्षी राजनीतिक पार्टियां यह कह रही हैं कि देश की जमीन अडानी और अंबानी को देने की साजिश है, किसानों की किस्मत पर अडानी-अंबानी की बूरी और टेढी नजर है, अब खेती भी अडानी-अंबानी जैसे कारपोरेट घराने करेंगे, किसान सिर्फ मजदूर बन कर रह जायेंगे। संसद के अंदर में राहुल गांधी ने एक भाषण दिया था जिसमें न केवल नरेन्द्र मोदी-अमित शाह को घेरा था बल्कि अडानी और अंबानी को भी घेरा था। राहुल गांधी ने संसद के अंदर कहा था कि हम दो और हमारे दो की सरकार चल रही है, यही देश के गरीबों को लूटना चाहते हैं, किसानों की किस्मत लूटना चाहते हैं। राहुल गांधी के इस वाक्य का अर्थ राजनीति में खूब चर्चित हुआ। हम दो का मतलब नरेन्द्र मोदी और अमित शाह था और हमारे दो का मतलब अडानी-अंबानी से था। जहां तक राहुल गांधी का प्रश्न है तो वह अपने हर भाषण में, हर कार्यक्रम में अडानी-अंबानी की आलोचना का कोई अवसर नहीं गंवाते हैं। राहुल गांधी और अन्य विपक्षी नेताओं के अडानी-अंबानी समर्थक होने प्रतिकार मोदी यह कह कर करते रहे हैं कि विकास और उन्नति के लिए निजी क्षेत्र का भी सम्मान जरूरी है, निजी क्षेत्र की सहभागिता के बिना देश का विकास और उन्नति संभव नहीं है।
अडानी-अंबानी से संबंधित एक ऐसी खबर सामने आयी है और खबर भी पूरी तरह से सच है जिसमें खुद राहुल गांधी ही नहीं बल्कि अन्य विपक्षी पार्टियां भी प्रश्नों के घेरे में कैद हैं। खासकर राहुल गांधी की कांग्रेस पार्टी का चेहरा बेनकाब होता है, कांग्रेस का भी अडानी-अ्रबानी प्रेम की कहानी उजागर होती है। अब यहां यह प्रश्न उठता है कि अडानी-अंबानी और कांग्रेस से जुडी हुई खबर क्या है? खबर यह है कि कांग्रेस की राजस्थान सरकार और कांग्रेस गठबंधित महाराष्ट सरकार ने जोरदार अडानी प्रेम दिखाया है, सिर्फ प्रेम ही नहीं दिखाया है बल्कि इन दोनों सरकारों ने अपने-अपने यहां अडानी के बडे ठेके भी दिये हैं। राजस्थान के कांग्रेसी गहलौत सरकार ने अडानी ग्रुप को सोलर पावर प्रोजेक्टस और महाराष्ट सरकार ने दिघी पोेर्ट के ठेके दिये हैं। राजस्थान की कांग्रेसी सरकार की इच्छा के अनुसार अडानी ग्रुप राजस्थान में 8700 मेगावाॅट से सोलर हाईब्रिड और विंड एनर्जी पार्क विकसित करेगा। कुल पांच सोलर पावर प्रोजेक्ट में अडानी ग्रुप कोई 50 हजार करोड का निवेश करेगा। राजस्थान सरकार का मानना है कि इन पांचों सोलर प्रोजेक्टों के माध्यम से दो काम होंगे एक तो स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिलेगा और दूसरा कार्य यह होगा कि राजस्थान उर्जा के मामले में आत्मनिर्भर हो जायेगा। उधर महाराष्ट सरकार ने भी अडानी पर कृपा बरसायी है। महाराष्ट सरकार ने अपना दिघी पोर्ट को अडानी ग्रंुप को सौंप दिया है। अडानी ग्रुप ने 705 करोंड़ रूपयों में दिघी पोर्ट की सभी हिस्सेदारियां खरीद ली है। दिघी पोर्ट में 10 हजार करोंड रूपये का निवेश करने की योजना अडानी ग्रुप की है। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि मुबई स्थित जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट के लिए वैकल्पित गेटवे तैयार करने जा रहा है अडानी ग्रुप। महाराष्ट सरकार के अडानी प्रेम का ठिकरा कांग्रेस शिव सेना के सिर पर नहीं फोड सकती है। इसलिए कि पोर्ट मंत्रालय कांग्रेस के पास ही है। इसलिए महाराष्ट की शिव सेना नेतृत्व वाली सरकार कांग्रेस की अवहेलना कर पोर्ट के ठेके और विकास की जिम्मेदारी अडानी ग्रुप को दे ही नहीं सकती है।?
राजस्थान और महाराष्ट सरकारों के अडानी प्रेम को देखने के बाद यह मान लेना चाहिए कि अडानी-अंबानी के हमाम में कौन नहीं नंगा है, सभी नंगे हैं । कांग्रेस भी नहीं नंगी है, शिव सेना भी नंगी है,अन्य विपक्षी पार्टियां भी नंगी है। सिर्फ राजनीतिक पार्टियों के इतिहास को देखने और निष्पक्ष रह कर विश्लेषण करने की जरूरत होनी चाहिए। सिर्फ नरेन्द्र मोदी या भाजपा के लिए ही अंडानी-अंबानी जैसे उद्योगपति और कारापोरेट घराने प्रिय नही है बल्कि ंकांग्रेस के लिए, चन्दबाबू नायडू, जगन रेड्डी, मूलायम-अखिलेश यादव, लालू यादव या फिर सोरेन परिवार, बादल परिवार, करूणानिधि परिवार सभी अडानी-अंबानी जैसे उद्योगपतियों और कारपोरेट घरानों के प्रेम में कैद रहे हैं।
अडानी-अंबानी का इतिहास देख लीजिये। अडानी और अंबानी का इतिहास कोई आज का नहीं है। जब नरेन्द्र मोदी का सत्ता राजनीति में उदय तक नहीं हुआ था तब से अडानी-अंबानी का अस्तित्व है। अडानी ग्रुप 1980 के दौरान अस्तित्व में आया था जबकि अंबानी के रिलायंस ग्रुप का अस्तित्व 1980 के पूर्व से है। जब इन दोनों कंपनियों का उदय 1980 से पूर्व का है तब इनके संबंध केन्दीय और राज्य सरकारों से कैसे नहीं होंगे। उस काल में तो केन्द्रीय सत्त और राज्य सत्ता में कांग्रेस ही होती थी। यह भी एक तथ्य है कि कोई भी उद्योगपति और कारपोरेट घराना बिना सत्ता के सहयोग का आगे नहीं बढता है, इस कसौटी पर जैसे उद्योगपतियों और कारपोरेट घरानों को कांग्रेस की तत्कालीन कांग्रेस की केन्द्रीय और राज्य सरकारों से सहयोग कैसे नहीं मिला होगा।
रिलायंस ग्रुप के संस्थापक धीरू भाई अंबानी थे। धीरू भाई अंबानी के इन्दिरा गांधी के अच्छे संबंध थे। इन्दिरा गांधी के कार्यकाल में ही धीरू भाई अंबानी की किस्मत चमकी थी, धीरू भाई अंबानी देश के अग्रणी टाटा-विडला जैसे उद्योगपतियों की श्रेणी में खड़ा हुआ था। दिल्ली की राजनीति में तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी और धीरू भाई अंबानी के कई आर्थिक किस्से अभी भी कुख्यात रूप से चर्चा के केन्द्र में रहते हैं। इन्दिरा गांधी की सत्ता कार्यकाल में खास कर कम्युनिस्ट पार्टिया हल्ला करती थी कि देश में टाटा-बिडला की सरकार चल रही है। उस काल मेें टाटा-बिड़ला की तूती बोलती थी, देश के सिरमौर औद्योगिक घराने टाटा और बिडला ही थी। मूलायम सिंह यादव का अंबानी प्रेम कौन नहीं जानता है। मुलयाम सिंह यादव ने अनिल अंबानी को राज्य सभा में भेजा था और कहा था कि अनिल अंबानी यूपी का विकास करेंगे। गरीबों की बात करने वाले लालू प्रसाद यादव भी किंग महेन्द्रा जैसे उद्योगपतियों के मददगार रहे हैं। बसपा की राजनीति में कभी संजय डालमियां और अखिलेश दास जैसे उद्योगपति नामित रहे हैं। कम्युनिस्ट पार्टियां भी इससे अलग नहीं रही हैं। पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टियों ने यूनियनबाजी में पश्चिम बंगाल का कबाडा किया और फिर टाटा प्रेम में पागल हो गयी थी। सिंदुर प्रकरण में कम्युनिस्ट पार्टियों की सरकार गयी थी। ममता बनर्जी भी बार-बार निवेशक सम्मेलन कर औद्योगिर घरानों की बांट जोहती रही। इतिहास और तथ्य राजनीतिज्ञों का औद्योगिक घराना प्रेम बहुत ही लम्बा-चैडा है।
निजी क्षेत्र का विकल्प क्या है? यह प्रश्न अब तक अधूरा है। सरकारी क्षेत्र से विकास और उन्नति की बात अब बईमानी हो गयी है। सरकारी क्षेत्र में सक्रियता और समर्पण की कमजोरी है। सरकारी क्षेत्र प्रशिक्षित ढंग से काम नहीं करता है। सरकारी क्षेत्र में एक बार नौकरी पाने के बाद 60 साल की उम्र तक वह शंहशाह बन जाता है, उसे नौकरी जाने का डर नहीं होता है, नौकरी गयी भी तो महंगे वकील और अन्य हथकंडों से न्याय लूट लेता है। सरकारी क्षेत्र की कंपनियां दिन प्रतिदिन अवसान की ओर लुढक रही है उनकी शेयर बाजार कीमत मिट्टी में मिल रही हैं। इसलिए निजी क्षेत्र का डंका बज रहा है।
काला घन सोधन भी बडा प्रश्न है। राजनीतिक पार्टियों और राजनीतिज्ञों के काला धन का संरक्षण अडानी और अंबानी जैसे ही उद्योगपति घराने ही करते हैं। राजनीतिक पार्टियां और राजनीतिज्ञ चुनावों में अपने कालेधन का ही इस्तेमाल करते हैं।यही कारण है कि सभी पार्टियों और नेताओं के अपने-अपने अडानी-अंबानी जैसे उद्योगपति हैं। इसलिए अडानी-अंबानी के प्रेम सभी पार्टियां, सभी नेता पागल हैं। यही कारण है कि मोदी के खिलाफ राहुल गांधी और पूरे विपक्ष का अडानी-अंबानी जूमले पर जनता कोई खास रूचि नहीं दिखाती है।