अल्पसंख्यकों का मुस्लिम देश में भविष्य, लेखमाला -भाग- 5

 

प्रेषक- डॉविवेकआर्य

इस लेखमाला की यह अंतिम कड़ी है। आशा करता हूँ कि हिन्दू समाज को अभी तक यह बोध हो गया होगा की CAA/NRC क्यों आवश्यक हैं। मुसलमान इस रणनीति को भली प्रकार से समझता है। इसीलिए शाहीन बाग़ में सड़क पर बैठा है। जबकि हिन्दू युवा ticktock, whats app, you tube, PUBG, क्रिकेट और बॉलीवुड में ही उलझा दिया गया हैं। इसीलिए आपको अनपढ़ से लेकर पढ़ा लिखा सभी मुसलमान CAA/NRC का विरोध करते मिलेंगे जबकि अनेक भ्रमित हिन्दू भी आपको शाहीन बाग़ में CAA/NRC का विरोध करते मिल जायेंगे।

इस्लामिक आक्रमणकरियों की सदियों से एक रणनीति रही है। वह है शत्रु पक्ष के आराध्य स्थलों पर सख्त से सख्त प्रहार करना। हज़ारों मंदिरों को इसी कारण से या तो नष्ट कर दिया अथवा उनकी मस्जिद बना दी गई। कमाल यह देखिये यह सिलसिला बंगलादेश में भी अनेक वर्षों से होता आया। 1947 से पहले बंगलादेश के सबसे प्रसिद्द दो पीठ ढाका में थे। ढाका का नामकरण ही ढाकेश्वरी मंदिर के नाम पर हुआ था। यह हिन्दुओं का सबसे प्रसिद्द शक्तिपीठ था जिसकी मान्यता यह थी कि यहाँ पर देवी के मुकुट का रत्न गिरा था। दूसरा पीठ था रमना काली मंदिर। यह मंदिर मुग़लों के काल में बना में बना था। 1947 से पहले यह उस दौर के बंगलादेश की सबसे ऊँची ईमारत थी। इसका निर्माण नेपाल नरेश के दान से हुआ था। मंदिर की पताका दूर दूर तक दिखाई देती थी। मंदिर के साथ एक सरोवर भी था जिसमें श्रदालु स्नान कर पूजा अर्चना किया करते थे। 1947 के दौर में पाकिस्तान बनने पर ढाका के प्रसिद्द ढाकेश्वरी मंदिर और रमना काली मंदिर में व्यापक स्तर पर तोड़फोड़ और लूटपाट हुई। मंदिर के पुजारियों को भागकर भारत आना पड़ा। मंदिर के साथ लगती भूमि पर अवैध कब्जे हो गए। जिसे अल्पसंख्यक हिन्दुओं ने छुड़ाने के लिए पुलिस और कोर्ट में अनेक प्रयास किये पर इस्लामिक मुल्क में कोई सफलता नहीं मिली।

1971 के दौर में पाकिस्तानी सेना ने अपनी मज़हबी संकीर्णता की एक नई दास्तान लिखी। 25 मार्च की रात को पाकिस्तान की हवाई सेना ने रमना काली मंदिर को बम गिराकर जमींदोज कर दिया। पाकिस्तानी सेना ने ऑपरेशन सर्चलाईट के नाम से एक अभियान चलाया जिसके अंतर्गत बंगलादेश में रहने वाले सुपठित हिन्दुओं, शिक्षकों, व्यापारियों और छात्रों को निशाना बनाया गया। मंदिर के साथ साथ ढाका विश्वविद्यालय के जगन्नाथ हाल नामक हिन्दू हॉस्टल को भी निशाना बनाया गया। लोग सोच रहे होंगे कि जो पाकिस्तानी सेना बंगलादेश के मुसलमानों को नहीं छोड़ते थे वो हिन्दुओं को क्या छोड़ेंगे। मगर 1971 के बाद भी हालात नहीं सुधरे। मंदिर का पुनरुद्धार करने के स्थान पर बंगलादेश के जनक समझे जाने वाले शेख मुजीब द्वारा मंदिर की भूमि को समतल कर उसे ढाका क्लब को दे दिया गया। हाँ मैं उन्हीं शेख की बात कर रहा हूँ जिन्हें बंग्लादेश का राष्ट्रपिता कहा जाता है। जिनकी सपरिवार 1975 में इस्लामिक कट्टरपंथियों ने हत्या कर दी थी। जिनकी एकमात्र बची बेटी शेख हसीना आजकल बंग्लादेश की प्रधानमंत्री है। अधिकांश लोग नहीं जानते कि 1946 के नोआखाली और 1947 के कोलकाता हिन्दू नरसंहार के दौर में शेख कोलकाता के इस्लामिया कॉलेज के छात्र थे। अपनी छात्रावस्था में आप मुस्लिम लीग की कौंसिल के सदस्य थे और कोलकाता के कसाई कहलाने वाले सुहरावर्दी को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। 1947 के जनमत में शेख ने सिलहट की जनता को भारत की बजाय पाकिस्तान के साथ जाने के लिए तैयार भी किया था। पर 1947 के बाद पाकिस्तान द्वारा उर्दू को राजभाषा और पंजाबी मुसलमान को बंगाली मुसलमान पर वरीयता देने के मुद्दे पर शेख का मुस्लिम लीग से मोहभंग हो गया। 1971 तक उनका संघर्ष समानता के लिए चलता रहा। 1972 में जनवरी में शेख को सत्ता मिलने पर वही पुराने दिन लौट आये। हालत पलटने की देर थी। समानता की उपासना करने वाला कब शैतान की उपासना करने वाला बन गया। पता ही नहीं चला। क्या शेख को बंगलादेश के सबसे बड़े हिन्दू मंदिर का पुनर्निर्माण नहीं करवाना चाहिए था? क्या हिन्दुओं को उनकी मंदिर की कब्ज़ा चुकी भूमि नहीं मिलनी चाहिए थी? क्या भारत भाग कर गए हिन्दुओं को दोबारा वापिस बुलाकर ढाका में बसाना नहीं चाहिए था? पर ऐसा नहीं हुआ। जब सोमनाथ दोबारा बन सकता है तो रमना काली मंदिर क्यों नहीं बन सकता।इतिहास साक्षी है कि एक इस्लामिक मुल्क में गैर मुसलमानों के साथ ऐसा ही होता है। हालाँकि शेख को उसके कर्मों की सजा 1975 में ही मिल गई। जब उसकी और उसके परिवार की इन्हीं इस्लामिक कट्टरपंथियों ने सपरिवार निर्मम हत्या कर दी। ढाका के प्रसिद्द मंदिर का ऐसा हश्र हुआ बाकि गांव-देहात में बसे हिन्दुओं के मंदिरों, महिलाओं, जमीन और धन-सम्पत्ति का क्या हुआ होगा? जरा सोचिये।
अब आप बताये कि क्या ऐसे दो करोड़ गैर मुसलमानों को अपने शोषित जीवन से मुक्ति दिलाकर भारत में यथोचित सम्मान क्यों नहीं मिलना चाहिए ?इसलिए मैं CAA और NRC का समर्थन करता हूँ। क्या आप मेरे साथ है?

सलंग्न चित्र इतिहास के पन्नों में मिट गए बांग्लादेश के सबसे बड़े मंदिर रमना काली मंदिर का है जो 1967 में लिया गया था।

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