कहानी हर प्रकार के ज्ञान को बच्चों के मन में उतारने का सबसे उत्तम और सड़क माध्यम है। जब हम किसी बच्चे को यह बताना आरंभ करते हैं कि – ‘एक राजा था। उसकी एक रानी थी। उस राजा के समय में एक दूसरे देश के राजा ने उसके किले पर चढ़ाई कर दी तो उस चढ़ाई करने वाले राजा को उस राजा की सेना ने मार कर भगा दिया ,आदि आदि। …” तब यह नहीं समझना चाहिए कि वह बच्चा केवल वही सुन रहा है जो हम उसे सुना रहे हैं। इसके विपरीत उस कहानी सुनने वाले बच्चे के मन मस्तिष्क में अपने आप राजा की एक काल्पनिक छवि उभर कर सामने आ जाती है।
जैसे ही हम रानी की बात करते हैं तो रानी का भी एक काल्पनिक चित्र उसके मस्तिष्क पटल पर अंकित होने लगता है। इसी प्रकार सेना और किले की भी वह कोई न कोई काल्पनिक आकृति बना लेता है।
प्रकार हमारा यह सोचना गलत सिद्ध हो जाता है कि बच्चा केवल वही सुन व समझ रहा है जो हम उसे सुना और समझा रहे हैं। उसका मस्तिष्क हमसे कहीं आगे दौड़ने लगता है। उसकी इस दौड़ से उसका अपना ज्ञान वर्धन होता है और साथ ही साथ उसके मस्तिष्क का विकास भी होता है। इस खेल में उसे आनंद की भी बड़ी गहरी अनुभूति होती है।
सचमुच कहानी का अपना अलग ही आनंद है। बच्चे बचपन से ही इस कहानी नाम की विधा को अपने लिए बहुत ही अधिक पसंद आने वाली मानते हैं।
‘ऐसा था नानी का बचपन’ – में डॉ अलका अग्रवाल ने कहानियों के माध्यम से बच्चों के मन मस्तिष्क में ज्ञानवर्धन कर उनकी चेतना के नए अंकुर उपजाने का सराहनीय प्रयास किया है। इस पुस्तक में नानी के संस्मरण को लेखिका ने इतने वैदुष्यपूर्ण ढंग से पिरोने का प्रयास किया है कि यदि पुस्तक को बड़ों ने भी पढ़ना आरंभ कर दिया तो बड़े भी आनंदित होकर झूमने लगेंगे।
पुस्तक को कविताओं के अंशों से भी सजीवता प्रदान करने का सराहनीय प्रयास किया गया है। सुभद्रा कुमारी चौहान की ये पंक्तियां पृष्ठ संख्या 38 पर देकर लेखिका ने मानो समां ही बांध दिया है :-
रोना और मचल जाना भी क्या आनंद दिखाते थे।
बड़े बड़े मोती से आंसू जय माला पहनाते थे।
दादा ने चंदा दिखलाया नेत्र नीर द्रुत चमक उठे ,
धुली हुई मुस्कान देखकर सबके चेहरे दमक उठे।।
वास्तव में कहानियों में संस्मरण छुपे होते हैं और जब वे संस्मरण हमारे मानस पटल पर आकर कभी हमारे अंतर्मन के साथ छेड़छाड़ करते हैं तो अनुभूतियों के वे क्षण अलग ही आनंद देने वाले होते हैं। ऐसे ही अनुभूति पूर्ण क्षणों में शायद कहानी अपना नया रूप लेने लगती है और वह हमें दुनियादारी के लफड़ों और झगड़ों से हटाकर किसी अजनबी से खूबसूरत संसार में ले जाती है।
इसी प्रकार की अनुभूतियों और एहसासात को लेखिका ने इस पुस्तक में बहुत ही बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत किया है। उनकी लेखनी की सरलता को कोई भी पाठक प्रणाम किए बिना नहीं रह सकता। वैसे भी विदुषी लेखिका के द्वारा अबसे पहले 1 दर्जन से अधिक पुस्तकें ऐसे ही ढंग से लिखी जा चुकी हैं। जिनमें लेखिका को विभिन्न प्रकार के सम्मान भी प्राप्त हुए हैं । वह निरंतर इसी प्रकार के उत्कृष्ट लेखन में लगी हुई हैं।
‘ऐसा था नानी का बचपन’- डॉ अलका अग्रवाल की इस पुस्तक में पिछली शताब्दी के छठे और सातवें दशक के बचपन की कहानी है । कहानी जिस ‘बच्चे’ ने लिखी है अब उसे ‘नानी’ की पदवी मिल चुकी है।
कहने का अभिप्राय है कि लेखिका ने अपने स्वयं के संस्मरणों और अनुभवों को इस पुस्तक के माध्यम से कहानी के रूप में प्रस्तुत कर बच्चों के सामने रख दिया है।
पुस्तक बच्चों सहित बड़ों के लिए भी बहुत ही उपयोगी है। भाषा की सरलता व सजीवता बहुत ही ऊर्जा प्रद है।
इस पुस्तक में कुल 112 पृष्ठ हैं। पुस्तक का प्राप्ति स्थान ‘साहित्यागार’ धामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता जयपुर 302003 है।
पुस्तक प्राप्ति के लिए आप फोन नंबर 0141 – 23 10785, 4022382, व 2322382 पर संपर्क कर सकते हैं। पुस्तक का मूल्य ₹225 है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत